ताकतवर जापान भारत के लिए होगा मददगार

 

Japan can be reliable partner for India and can raise its power

#Business_Standard

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने में लगे जापान की रक्षा कंपनियों को भारत से सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देना होगा।

Recent context

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे इस सप्ताह भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। उनकी यह यात्रा उत्तर-पूर्व एशिया में मंडराते नाभिकीय खतरे की पृष्ठभूमि में हो रही है।

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बदलते शक्ति संतुलन के चलते यह इलाका पहले से ही व्यापक और गहरे संकट में फंसा हुआ है।
  • उत्तर कोरिया ने हाल के दिनों में परमाणु प्रक्षेपास्त्रों का परीक्षण किया है जिसने जापान के मन में पनपते असुरक्षा भाव को बढ़ा दिया है।
  • जापान का मानना है कि चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आधिपत्यकारी शक्ति के तौर पर अमेरिका को अपदस्थ करने के लिए चीन पूरा जोर लगा रहा है। राष्ट्रपति शी चिनफिंग के कार्यकाल को देखने से यह संदेह पुख्ता हो जाता है कि चीन का ‘शांतिपूर्ण उभार महज एक सुविधाजनक मिथक है। डॉनल्ड ट्रंप के आगमन ने भी उनके पूर्ववर्ती ओबामा प्रशासन के समय उभरी उन आशंकाओं को सही साबित किया है जिनके मुताबिक चीन के खिलाफ संघर्ष छिडऩे की सूरत में अमेरिका को अब पहले की तरह भरोसेमंद साथी नहीं माना जा सकता है।
  • जापान के लोगों ने पिछली तीन पीढिय़ों से जिस दुनिया को देखा-समझा है अब वह बदल चुका है। लेकिन इसे स्वीकार करने में कई जापानी असहज महसूस कर रहे हैं।

Current Japanese leadership:

आबे जापान के उन चुनिंदा नेताओं में से एक हैं जो बदलते वैश्विक परिदृश्य को यथार्थ के धरातल पर समझने की कोशिश करते हैं। आबे ने अपनी राजनीतिक पूंजी का इस्तेमाल जापान की विदेश एवं रक्षा नीतियों को नए सिरे से गढऩे में किया है। इसके साथ ही उन्होंने जापान के शांतिवादी संविधान में भी संशोधन कराए हैं।

आबे अब भी जापान के लोकप्रिय नेता हैं लेकिन उनकी ही पार्टी के भीतर कुछ ऐसी आवाज मुखर होने लगी है जो रक्षा और सुरक्षा संबंधी उनकी नीतियों से असहमति जताती हैं। कुछ घोटालों के सामने आने से आबे की राजनीतिक पूंजी प्रभावित होने के बावजूद वह अपने सुरक्षा एजेंडे पर आगे बढऩे के लिए वक्त मांग रहे हैं।

  • भले ही वह जापान को अधिक आत्मनिर्भर बनाने के एक नए सफर पर निकल पड़े हैं लेकिन एक सशक्त जापान की जरूरत चीन के प्रभाव-क्षेत्र से बाहर मौजूद हरेक पूर्व एशियाई देश महसूस कर रहा है।
  • वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर सभी चीन के प्रभुत्व के खिलाफ आवाज उठाने की मंशा रखते हैं लेकिन वास्तव में चीन के खिलाफ खड़े होने से जुड़े जोखिम इतने अधिक हैं कि कोई भी ऐसा करने से परहेज करेगा।
  • डोकलाम विवाद में भारत ने यह साबित कर दिया है कि वह चीन की जबरदस्ती का मुकाबला करने में सक्षम है। लेकिन अगर भारतीय सीमा के बजाय दक्षिण चीन सागर में चीन ऐसा ही दुस्साहस करता है तब शायद भारत वैसी जिद नहीं दिखाएगा।
  • ऐसी स्थिति में जापान ही पूर्व एशिया का ऐसा अकेला देश बचता है जो चीन के प्रभुत्व के खिलाफ एक क्षेत्रीय शक्ति संतुलन कायम करने की चाहत और क्षमता दोनों रखता है। जापानी नेतृत्व उसके सहयोगियों में भी चीन के खिलाफ खड़े होने की कूवत भर देगा।
  • अक्सर यह कहा जाता है कि युद्ध से जुड़ी पुरानी स्मृतियां जापानी नेतृत्व के प्रति पूर्व एशियाई देशों के मन में संदेह के बीज डाल सकती हैं। ऐसी दलीलें चीन के हितों के अनुकूल हैं लेकिन यह भी सच है कि विश्व-युद्ध के बाद जापान की तरफ से पूर्व एशियाई देशों को दी गई मदद और निवेश ने उनके आर्थिक विकास में भी खासा योगदान दिया है। वैसे भी भविष्य पर नजर रखने वाली कोई भी सरकार इस बात को लेकर अधिक फिक्रमंद होगी कि मौजूदा दौर में चीन क्या कर रहा है, न कि 1945 से पहले जापान ने उनके साथ क्या किया था? आज के समय में आसियान के बहुत कम देश ही सशक्त जापान का विरोध करेंगे। उनमें से अधिकांश देश तो इसका स्वागत ही करेंगे।

JAPAN & INDIA Defence Cooperation

भारत भी ऐसा ही करेगा। समुद्री नक्शे पर नजर डालने से यह साफ हो जाता है कि अगर जापान पश्चिमी प्रशांत महासागर में भारत की आंशिक मदद से चीन को साध लेता है तो वह भारत के ही हित में होगा। इससे भारतीय नौसेना जापान की थोड़ी मदद से हिंद महासागर में अपना ध्यान केंद्रित कर पाएगी। इस तरह जापान अपने संविधान और भारत अपनी क्षमता के दायरे में रहते हुए काम कर सकेंगे।
भारतीय नौसेना के विस्तार की योजना चमकदार ढंग से आगे बढ़ रही है। भारत में रक्षा खरीद के व्यापक परिदृश्य को देखते हुए इसे उत्साहजनक ही माना जाना चाहिए। चीनी नौसेना की ताकत में हाल में हुई भारी बढ़ोतरी के लिहाज से देखें तो भारतीय नौसेना की ताकत को नए सिरे से आंकने की जरूरत पड़ेगी। सैन्य शक्ति के बारे में आबे के बनाए नए नियमों का परिणाम यह हुआ है कि अब जापान विशाल जहाज, पनडुब्बी, विमान और सूचना प्रणाली मुहैया कराने की क्षमता से लैस हो चुका है। जापानी सैन्य शक्ति भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ाने में मददगार हो सकती है।

इस दिशा में की गई पहली कोशिश तो खैर नाकाम हो गई थी।

  • भारत आकाश और पानी दोनों पर उड़ान भरने में सक्षम विमान शिन्मायवा यूएस-2 को जापान से खरीदना चाहता था लेकिन वह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका। हालांकि अगर दोनों देशों की सरकारें उस प्रकरण से कुछ सीख लेती हैं तो उसे नाकाम नहीं कहा जाएगा। दरअसल जापान की कंपनियां दुनिया भर में अपना परचम लहरा रही हैं लेकिन रक्षा उपकरण कारोबार के मामले में अभी वे नौसिखिया ही हैं।
  • जापान की नौकरशाही का रूढि़वादी अंदाज रक्षा निर्यात कारोबार को और भी जटिल बना देता है। आबे की नीतियों के मुताबिक खुद को ढाल पाने में व्यवस्था के नाकाम रहने से रक्षा उपकरण कारोबार में जापान को अभी तक असफलता ही मिली है। ब्रिटेन और इंडोनेशिया को समुद्री निगरानी विमान बेचने, ऑस्ट्रेलिया को पनडुब्बी देने और भारत को शिन्मायवा विमान बेचने की नाकाम कोशिशें इसके चंद उदाहरण हैं।


जहां तक भारतीय परिप्रेक्ष्य का सवाल है तो हमें जापान के साथ सामरिक रक्षा भागीदारी को बढ़ाने के लिए शिन्मायवा प्रकरण से आगे देखना होगा। प्रधानमंत्री मोदी और आबे तो ऐसी ही मंशा जताते रहे हैं। भारत चाहता है कि उसे जापान से अच्छी कीमतों में सौदा हो और स्थानीय स्तर पर उत्पादन का अधिकार भी मिले। भारत की ये मांगें वाजिब लगती हैं लेकिन कहीं-न-कहीं जापान के साथ एक दीर्घकालिक और दोस्ताना रक्षा भागीदारी कायम करने की बड़ी तस्वीर को हम नजरअंदाज कर देते हैं।

दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों को अपनी मुलाकात के दौरान रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए एक साझा कार्यबल गठित करने का फैसला लेना चाहिए। इस दिशा में तात्कालिक सहयोग का एक मौका भी मौजूद है। भारत अपनी नौसेना के लिए नई पनडुब्बियां खरीदना चाहता है और जापान की सोरयू श्रेणी की पनडुब्बियां काफी अच्छी मानी जाती हैं। कई मायनों में यह सौदा काफी अहम हो सकता है।
इन सभी संभावनाओं को कार्यरूप देने के लिए जापान को आबे का अनुसरण करना होगा। जापान को अब एक बड़ी शक्ति के तौर पर बरताव करना चाहिए। चीन और उत्तर कोरिया की संहारक क्षमता बढऩे के बाद अब अमेरिका पहले की तरह जापान की मदद में संकोच करेगा। ऐसी स्थिति में जापान के सशक्त होने की सबसे ज्यादा जरूरत तो खुद जापान को ही है।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download