पुरानी मानसिकता :
- तीन-चार दशक पहले तक भारत से बाहर जाकर बसे भारतीयों को हमारा समाज हेय भाव से देखता था
- कहा जाता था कि देश के संसाधनों का उपयोग करके देश को छोड़ना अनुचित ही नहीं, मिट्टी के साथ विश्वासघात है।
पर अब इस मानसिकता में बदलाव
- लेकिन अब वह मानसिकता नहीं रही। अब तो भारत से बाहर जाकर बसे भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों (एनआरआई) को देश के ब्रांड एंबेसेडर के रूप में ही देखा जाने लगा है।
- सरकार के स्तर पर भी सोच बदली है और हमारी विदेश निति भी इस तथ्य को स्वीकार रही है | विदेश नीति के केंद्र में आ गए हैं विदेशों में बसे भारतीय।
इसका साक्ष्य हमें प्रधानमन्त्री की यात्राओ में मिल सकता है
- सिडनी से लेकर न्यूयार्क और नैरोबी से लेकर दुबई, जिधर भी प्रधानमन्त्री गए वहां पर रहने वाले भारतीय मूल के लोगों से गर्मजोशी से मिले।
- बड़ी-बड़ी सभाएं कर उन्हें संबोधित किया। उनके मसलों को उन देशों की सरकारों के सामने उठाया।
- यह अभी तक होता यही था कि जब भारत से राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री अपने विदेशी दौरों पर जाते थे तो उन देशों में स्थित भारतीय दूतावास कुछ खास भारतीयों को राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से चाय पर मिलवा देते थे। कुल मिलाकर एक रस्मी आयोजन होता था। वह भी हर बार नहीं। समय मिलने पर।
भारतवंशी बाहर
- देश से बाहर गए और बसे भारतीयों में कोका कोला की सीईओ इंदिरा नूई, ब्रिटेन के लार्ड स्वराज पाल, लार्ड करन बिलमोरिया, मास्टर कार्ड के ग्लोबल हेड अजय बंगा जैसे खासमखास और प्रख्यात लोग कम हैं।
- 1970 के पूर्व बाहर गए अधिकतर तो मेहनतकश कुशल और अकुशल मजदूर ही हैं। खाड़ी के देशों में लाखों भारतीय मजदूर काम कर रहे हैं। इनके बहुत-से प्रतिनिधि पीबीडी में मिलेंगे।
- लेकिन 1970 के बाद बड़ी संख्या में भारतीय डॉक्टर और इंजीनियर, विशेषकर सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट विदेश पहुंचे और उन्होंने विदेशों में भारत की छवि बदली।
A paradigm change towards PIOs
- भारत सरकार अब इनके सुख-दुख का खयाल रखने लगी है। सरकार के कठिन व दृढ़ प्रयासों के चलते साल 2015 में यमन में फंसे हजारों भारतीय सुरक्षित स्वदेश लौटे पाए थे। भारतीयों को निकालने के लिए भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना ने राहत अभियान चलाया था। भारत के सफल राहत अभियान को देखते हुए अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी समेत छब्बीस देशों ने अपने नागरिकों को यमन से निकालने के लिए भारत की मदद मांगी थी। तब विदेश राज्यमंत्री राहत अभियान की शुरुआत से यमन में स्वयं मौजूद रहे और खुद राहत के काम की देखरेख की।
- प्रधानमंत्री बीते महीनों के दौरान संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की यात्रा पर गए थे। उन्होंने वहां के नेताओं से भारतीय श्रमिकों से जुड़े मसलों के संबंध में भी बात की। उसका तत्काल लाभ हुआ
- यूएई और बाकी खाड़ी देशों में लाखों भारतीय कुशल-अकुशल श्रमिक के तौ पर काम कर रहे हैं, विनिर्माण परियोजनाओं से लेकर दुकानों वगैरह में। निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री की यूएई यात्रा से भारतीय मजदूरों की खराब हालत में सुधार शुरू हुआ। यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है कि खाड़ी देशों में बंधुआ मजदूरों की हालत में भारतीय श्रमिक काम करते रहे हैं।