इजरायल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन की भारत यात्रा का महत्त्व
इजरायल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन की भारत यात्रा इस तथ्य को रेखांकित करती है कि दोनों के बीच के रिश्ते तेजी से पनप रहे हैं। रिवलिन भारत की यात्रा करने वाले पहले राष्ट्राध्यक्ष नहीं हैं लेकिन उनकी यात्रा दिखाती है कि दोनों देशों के बीच माहौल कुछ बदला हुआ है।
Bilateral visits of leadership:
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी उसके बाद ही इजरायल गए। यह किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली इजरायल यात्रा थी और अब वंहा के राष्ट्र पति भारत आए है |
प्रगाढ़ होते सम्बन्ध :
बहरहाल, दोनों देशों के बीच के रिश्ते बीते दशकों के दौरान चरणबद्घ तरीके से बेहतर होते गए हैं। रिवलिन के साथ कारोबारियों का एक बड़ा समूह आया है और उनके मुंबई, आगरा, चंडीगढ़ और करनाल की यात्रा करने की योजना है। ये यात्राएं दोनों देशों के बीच बढ़ते सहयोग की बानगी पेश करती हैं।
- करनाल ही वह जगह है जहां कृषि का सेंटर फॉर एक्सिलेंस मौजूद है। यह केंद्र भारत और इजरायल ने सहयोग से विकसित किया है।
- इजरायल को अपेक्षाकृत विपरीत अद्र्घ शुष्क इलाके में कृषि उत्पादकता बढ़ाने में उल्लेखनीय अनुभव हासिल है। उक्त इलाका काफी हद तक भारत के पश्चिमी और पश्चिमोत्तर भाग की तरह है।
- भारत और इजरायल के बीच होने वाले कारोबार में हीरे का दबदबा रहा है लेकिन समय बीतने के साथ यह दायरा भी विस्तृत हुआ है।
- भारत की तरह इजरायल में भी स्टार्ट उद्यमिता की जीवंत संस्कृति मौजूद है और इसका मतलब यह हुआ कि दोनों देशों के बीच उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों को खास बढ़त मिल सकती है।
- इजरायल अब रक्षा उपकरण क्षेत्र में भारत का तीसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। उससे आगे रूस और अमेरिका का स्थान है।
- भारत सैन्य हार्डवेयर के मामले में इजरायल का सबसे बड़ा ग्राहक बन चुका है। बीते एक दशक में उसने इजरायल से 12 अरब डॉलर के हथियार खरीदे हैं। बतौर आपूर्तिकर्ता इजरायल की विश्वसनीयता भी खासी मायने रखती है।
Balancing the Relation keeping in mind Arab Peninsula
- भारत अभी भी संतुलनकारी भूमिका में है। घरेलू संवेदनशीलता को लेकर सरकारी चिंता से इतर हमें खाड़ी देशों और सऊदी अरब के साथ अपने रिश्तों का भी ध्यान रखना होगा। ये देश हमारे यहां धनप्रेषण का प्रमुख स्रोत हैं।
- इसके अलावा लाखों मेहनतकश भारतीय इन देशों में रोजगारशुदा हैं। ऐसे में इन देशों के साथ हमारे रिश्तों का भी ध्यान रखना होगा।
- इसके अलावा आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर भी इन देशों का सहयोग आवश्यक है। हाल के वर्षों में यह सहयोग बढ़ा ही है। इसकी बदौलत आतंकवाद के खिलाफ कुछ उल्लेखनीय सफलता मिली है।
इसलिए इजरायल के साथ रिश्ते गहरे करने चाहिए लेकिन इस दौरान यह गलत छवि नहीं बनने देनी चाहिए कि हम इजरायल की ओर झुक रहे हैं। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की इजरायल यात्रा इस बारे में अहम उदाहरण है। राष्ट्रपति मुखर्जी यह कहने में नहीं हिचकिचाए कि भारत फिलीस्तीन के लोगों के प्रति किस तरह प्रतिबद्घ है और कैसे वह लंबे समय से विवादों से जूझ रहे इस क्षेत्र में शांतिपूर्ण हल की कामना करता है। मोदी जब इजरायल की यात्रा पर जाएं तो उनको यह बात ध्यान रखनी चाहिए।