भयावह प्रतीत होती नई विश्व व्यवस्था

#Editorial_Business_standard

Rise of trump & Global economy & Politics

क्या डॉनल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद के शुरुआती पांच महीने हमें वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था के एक डरावने दौर में ले जा चुके हैं।

Broad dimension

  • व्यापक संदर्भ में बात करें तो दूसरे विश्वयुद्घ के समापन के बाद 70 वर्ष बीत चुके हैं और इस बीच एक उदार वैश्विक आर्थिक व्यवस्था का उदय हुआ। इससे व्यापार, पूंजी की आवक और एक हद तक कुशल श्रम को मदद मिली।
  •  इस दौरान उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों का आर्थिक विकास भी हुआ। उनमें से कई इससे पहले औपनिवेशिक शासन के अधीन थे। इस व्यवस्था को लाने में कई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने मदद की। इनकी स्थापना दूसरे विश्वयुद्घ के बाद अमेरिकी नेतृत्व में ही हुई थी।
  • इनमें अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), विश्व बैंक, जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ्स ऐंड ट्रेड (गैट) और उसके बाद विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ)। गैट और डब्ल्यूटीओ ने बहुपक्षीय व्यापार समझौते के कई दौर देखे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्घ के पश्चात दुनिया में वैश्वीकरण और अप्रत्याशित वैश्विक आर्थिक वृद्घि की राह आसान की
  • पश्चिमी गठजोड़ के उदय के बाद इसे मजबूती मिली। इस गठजोड़ का नेतृत्व अमेरिका के पास था और इसमें पश्चिमी यूरोप के देशों के अलावा जापान भी शामिल था। कई लोगों ने इन सात दशकों को अमेरिका के दशक घोषित किया क्योंकि अमेरिकी आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य नेतृत्व का पूरा रसूख इस दौरान बरकरार रहा।
  • खासतौर पर सोवियत रूस के विभाजन के बाद ऐसा देखने को मिला। अमेरिकी रसूख के दौरान केवल शांति और समृद्घि ही एजेंडे पर नहीं रहे बल्कि अमेरिका ने अपने हितों के लिए कई लंबे युद्घ लड़े और लैटिन अमेरिका तथा पश्चिम एशिया में कई देशों में अनधिकृत और गैरजरूरी हस्तक्षेप भी किया। प
  • रंतु यह मानना होगा कि अमेरिकी नेतृत्च वाले गठजोड़ और उदार आर्थिक नीति वाली व्यवस्था के चलते अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक समृद्घि में अप्रत्याशित इजाफा देखने को मिला। यह इजाफा विकसित और विकासशील सभी तरह के देशों में हुआ। यूरोप और पूर्वी एशियाई देशों को इसका खास लाभ हुआ। इनमें से एक देश चीन तो दुनिया में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और अमेरिका को चुनौती दे रहा है।

 

Rising tension:

परंतु विभिन्न कारकों ने इन दोनों व्यवस्थाओं पर दबाव बनाया और बीते दो दशक से ये तनाव में हैं। इसमें बढ़ती इस्लामिक जिहादी गतिविधियां जिसमें अमेरिका पर हुआ हमला शामिल है, के अलावा अफगानिस्तान और इराक में लंबी चली जंग, वैश्विक वित्तीय संकट और मंदी तथा बड़े देशों पर इसके नकारात्मक प्रभाव आदि शामिल हैं। इसके अलावा अमेरिका तथा कई यूरोपीय देशों में आर्थिक असमानता बढ़ी, राजनीतिक ध्रुवीकरण हुआ और पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका से शरणार्थियों की बाढ़ आई क्योंकि उनके मुल्क तबाह हो चुके हैं। चीन के अप्रत्याशित उभार और उसकी हालिया मंदी तथा ब्रेक्सिट जैसी तमाम घटनाएं जिम्मेदार हैं।

 

Was on track &then all of a sudden…..

इन तमाम दिक्कतों के बावजूद वैश्विक अर्थव्यवस्था और विश्व व्यापार में पिछले साल फिर से गति आनी शुरू हो गई। जलवायु परिवर्तन से निपटने की नीतियों से जुड़ा पेरिस समझौता कमजोर होने के बावजूद 2015 के आखिर तक निपट गया और नवंबर 2016 से इसका प्रवर्तन शुरू हो गया। अटलांटिक पार साझेदारी (टीपीपी) समझौता भी फरवरी 2016 में संपन्न हो गया।

 

लेकिन जनवरी में ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनते ही यह पूरा परिदृश्य बदल गया। बीते पांच माह में ट्रंप प्रशासन की कुछ नीतियों और घोषणाओं पर नजर डालते हैं।

 

  • वैश्विक व्यापार: अमेरिका महज तीन दिन के भीतर ही टीपीपी से अलग हो गया। इससे एशियाई आर्थिक मामलों में उसकी संभावित भूमिका सीमित हुई और चीन के दबदबे की राह प्रशस्त हुई। उत्तरी अटलांटिक मुक्त व्यापार समझौते को भी चुनौती मिल रही है।
  • ट्रंप ने कई ऐसी घोषणाएं कीं जो व्यापार विरोधी हैं। इससे यह संकेत गया कि वह बहुपक्षीय के बदले द्विपक्षीय व्यवस्था के पक्षधर हैं। हालांकि अमेरिका-चीन व्यापार युद्घ को मिला शुरुआती जोखिम कम हुआ है लेकिन वह कभी भी दोबारा पनप सकता है। डब्ल्यूटीओ के लिए भी बहुत अधिक सहयोगी रुख देखने को नहीं मिला है।
  • शांति और सुरक्षा: पश्चिमी गठजोड़ को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब गत मई में ब्रसेल्स में आयोजित नाटो शिखर बैठक में ट्रंप इस संधि के अनुच्छेद 5 को आगे बढ़ाने में नाकाम रहे। यह अनुच्छेद नाटो के सभी सहयोगियों को एक दूसरे से आबद्घ करता है कि वे किसी भी सदस्य पर हमला होने की स्थिति में मदद के लिए आगे आए। इसके बाद पेरिस जलवायु समझौते में उन्होंने वाक्छल दिखाया।
  • जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल ने कहा कि यूरोप अब अमेरिका पर निर्भर नहीं रह गया है। इससे कुछ दिन पहले ट्रंप ने ईरान के साथ प्रतिद्वंद्विता में खुलकर सऊदी अरब के प्रति सहयोग जाहिर किया था।
  • ऐसा तब था जबकि सऊदी अरब बीते चार दशक से दुनिया भर में वहाबी चरमपंथ का प्रसार करने के लिए जाना जाता है। शिया-सुन्नी विवाद में इस तरह पक्षधर बनने के अलावा ट्रंप ने शायद अमेरिका केा भविष्य की आतंकी चुनौतियों के लिए जोखिम में डाल दिया हो। कतर में अमेरिका का एक बड़ा सैन्य अड्डा है लेकिन उसे लेकर अमेरिका के नीतिगत वक्तव्य भी भ्रामक हैं।

 

वैश्विक बेहतरी: अतीत में अमेरिका ने सार्वजनिक रूप से वैश्विक हित के कामों में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है। ट्रंप ने 1 जून को घोषणा कर दी कि अमेरिका पेरिस जलवायु वार्ता से अपने आपको अलग कर रहा है। जाहिर है इससे वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से लड़ाई कमजोर हुई। उनके प्रशासन ने पहले ही कई कार्यकारी आदेश जारी कर दिए हैं जिनकी मदद से कोयला खनन, पाइप लाइन निर्माण आदि को आसान बना दिया गया है। इस तरह पिछले ओबामा प्रशासन द्वारा लिए गए कार्बन उत्सर्जन से निपटने संबंधी फैसले पलट दिए गए। अमेरिकी नेतृत्व में अन्य सार्वजनिक कामों मसलन समुद्री संरक्षण और संचारी रोगों को लेकर उठाए जाने वाले कदमों पर भी संदेह के बादल हैं। ऐसे में आश्चर्य नहीं कि अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार जॉन आइकनबरी लिखते हैं, 'दुनिया का सबसे ताकतवर देश अपनी ही बनाई व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। पूरे परिदृश्य में एक प्रतिकूल संशोधनवादी ताकत दिख रही है जो ओवल कार्यालय में स्थित है। उस जगह जो मुक्त विश्व व्यवस्था की धड़कन है।'

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download