हाल ही में खबरों में क्यों
ताजा मामला यह है कि पाकिस्तान स्थित संगठन जैशे-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने को लेकर जब अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में मामला उठाने की कोशिश की, तो चीन ने इसमें अड़ंगा डाल दिया। इस मुद्दे पर ब्रिटेन और फ्रांस पहले से अमेरिका के साथ थे।
आतंकवाद आज किसी एक देश की समस्या नहीं है, दुनिया भर में गहरी चिंता का विषय बन चुका है। अलग-अलग स्तरों पर इस पर काबू पाने की कोशिशें जारी हैं। मगर हैरानी की बात है कि किसी आतंकी संगठन के मुखिया को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के मामले भी विवाद के घेरे में आ जाते हैं।
- पिछले कुछ हफ्तों के भीतर मसूद पर पाबंदी लगाने के प्रयासों को यह दूसरा धक्का लगा है। इससे पहले भारत की कोशिशों को चीन ने ‘ब्लॉक’ कर दिया था।
- खबरों के मुताबिक उसी के बाद भारत और अमेरिका के बीच इस राय पर सहमति बनी कि अगर जैशे-मोहम्मद एक प्रतिबंधित आतंकी संगठन है, तो इसके नेताओं को इस पाबंदी से आजाद रखने की क्या तुक है! यह बिना किसी बाधा से स्वीकार किया जाने वाला तर्क है
- । अगर आतंकवाद पर लगाम लगाने को लेकर चीन का रुख सकारात्मक रहता, तो मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर उसे प्रतिबंधित करने के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र की मंजूरी मिल सकती थी। इसके बाद अजहर की संपत्ति पर रोक लग जाती और पाकिस्तान सहित किसी भी देश में उसके आने-जाने पर पाबंदी लग जाती।
चीन का पाकिस्तान नीति और आतंकवाद पर मापदंड
- यह समझना मुश्किल है कि आखिर चीन किस स्तर तक जाकर पाकिस्तान से अपनी दोस्ती निभाना चाहता है। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के पहले भी मसूद अजहर पर प्रतिबंध का प्रस्ताव पेश किया गया था। लेकिन चीन ने अमेरिकी कदम का विरोध करते हुए प्रस्ताव को स्थगित करवा दिया था।
- एक तकनीकी समस्या यह है कि ऐसे किसी भी प्रस्ताव को छह महीने के लिए स्थगित किया जा सकता है और इसकी अवधि तीन महीने तक और बढ़ाई जा सकती है। इस बीच अगर कभी इसे ब्लॉक कर दिया गया तो उसी के साथ वह प्रस्ताव भी खत्म हो जाता है। यानी यह साफ देखा जा सकता है कि सुरक्षा परिषद का सदस्य और वीटो का अधिकार होने के नाते चीन किस कदर दुनिया के जटिल हो चुके आतंकवाद की समस्या को लेकर लापरवाही भरा रुख अख्तियार कर रहा है।
क्या करना चाहिए भारत को
संयुक्त राष्ट्र ने जैशे-मोहम्मद पर 2001 में ही प्रतिबंध लगा दिया था। मगर उसके सरगना मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने की कोशिशों का चीन लगातार विरोध करता रहा है। जाहिर है, चीन अगर लगातार इस मसले पर अड़ा हुआ है तो इसका मतलब यह भी है कि भारत की ओर से कूटनीति के स्तर पर अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यों भारत ने इस मामले को चीनी सरकार के सामने उठाने की बात कही है, लेकिन इसके बारे में कोई ब्योरा अब तक सामने नहीं आया है। कूटनीतिक बैठकों के गोपनीय होने की दलील जरूर मानी जा सकती है, मगर इसके साथ ही आतंकी संगठनों और उनके संरक्षकों पर दबाव बनाने के लिए कुछ तथ्य लोगों को बताए जा सकते हैं, ताकि इस मसले पर एक जनमत का निर्माण किया जा सके। आतंकवाद से पीड़ित देश और वहां के लोगों की प्रतिक्रिया इस पर कार्रवाई की दिशा तय करने में सहायक साबित हो सकती है।