तुर्की में तख्ता पलट की नाकाम कोशिश और लोकतंत्र मजबूत करने व्यापक प्रयास"

 तुर्की में 15 जुलाई को सेना के एक हिस्से द्वारा लोकतांत्रिक चुनावों में निर्वाचित सरकार को हटाकर सैनिक सत्ता स्थापित करने का प्रयास विफल हो गया। यह लोकतंत्र के लिए बहुत अच्छी खबर है, और इससे भी अच्छी खबर तो यह है कि बड़ी संख्या में नागरिकों ने सडक़ पर आ कर इस तख्ता पलट को विफल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

- जहां तुर्की में लोकतांत्रिक सरकार के समर्थन में संयुक्त राज्य अमेरिका व भारत सहित विश्व के बहुत से देशों के बयान आए हैं और विश्व ने तख्ता पलट के प्रयास के नाकाम होने पर राहत की सांस ली है, वहां इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि चुनावों में कई बार महत्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त करने वाले तुर्की के राष्ट्रपति एड्रोगन में भी कुछ ऐसी प्रवृत्तियां आ गई हैं जो लोकतंत्र के अनुकूल नहीं हैं। 

- हालांकि तुर्की के वर्तमान संविधान में राष्ट्रपति के अधिकार सीमित है, पर एड्रोगन की प्रवृत्ति अपने अधिकार क्षेत्र को अधिक से अधिक बढ़ाने की रही है। वे आलोचकों के प्रति असहिष्णु होते गए हैं, व मीडिया के प्रति दमनकारी रुख अपनाने में भी उन्होंने परहेज नहीं की है।

- हाल के समय में उनके नेतृत्व की सरकार ने ऐसे कई निर्णय लिए हैं जो सवालों के दायरे में आए। रूस के साथ रिश्ते बिगडऩे को समझदारी व धैर्य अपना कर रोका जा सकता था। कुर्द विरोधियों की हिंसा व विरोध हाल में इस कारण तेजी से बढ़ गए क्योंकि सुलह-समझौते से समाधान निकालने पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया।

- तुर्की ने सीरिया में, विशेषकर वहां के युद्ध के आरंभिक दौर में, ऐसी नीतियां अपनाईं तो सवालों से घिरी हुई हैं। जिस तरह सऊदी अरब के शासकों ने बहुत कठोर नीति सीरिया की असद के नेतृत्व वाली सरकार के विरुद्ध उठाई, उसी तरह की नीति तुर्की ने भी अपनाई। यह नीति किसी भी तरह असद को सत्ता से हटाने पर केंद्रित थी, अत: असद के खिलाफ लड़ रहे किसी भी विद्रोही को हथियार व वित्तीय सहायता देना उचित माना गया। इस सोच के कारण सीरिया में ऐसे विद्रोहियों को भी सहायता दी गई जो मूलत: अलकायदा की सोच के या बाद में इस्लामिक स्टेट की सोच के हिमायती थे। ऐसी सहायता से आई.एस. को मजबूत होने में सहायता मिली और सीरिया में बहुत तबाही हुई।

- बाद में तुर्की ने अपनी गलती में सुधार किया व इस्लामिक स्टेट के विरोध की नीति को स्पष्ट रूप से घोषित किया। पर तब तक काफी क्षति हो चुकी थी।

- सीरिया में गृह युद्ध के कारण लाखों शरणार्थी तुर्की पहुंचे व इस कारण भी तुर्की को कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। तुर्की के लिए बेहतर नीति यह होती कि वह आरंभ से पड़ोसी देश सीरिया में शांति और स्थिरता के प्रयासों पर ध्यान केन्द्रित करता।

- कुर्द विद्रोहियों के प्रति सुलह समझौते की राह अपनाकर भी तुर्की की सरकार बहुत सी हिंसा व कई अन्य समस्याओं को रोक सकती थी, पर ऐसा नहीं हो सका।

- बाद में कई समस्याएं एक साथ बढऩे पर एड्रोजन ने रूस व इजराइल से संबंध सुधारने के कुछ हद तक सफल प्रयास किए। पर तब तक स्थितियां तुर्की के लिए काफी कठिन व जटिल हो चुकी थीं।

    तुर्की की आंतरिक कठिनाईयों के मूल में वही पुराना सवाल है कि राजनीति व शासन में धर्म का दखल होना चाहिए कि नहीं। आधुनिक तुर्की के निर्माता मुस्तफा कमाल अतातुर्क ने धर्म निरपेक्ष राज्य की नींव रखी थी। लोकप्रियता की ऊंचाईयां छूने वाले वे ऐसे सैन्य अधिकारी थे जो धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के प्रतीक बने।  उनके दीर्घकालीन व व्यापक असर को तुर्की सेना में देखा गया है व तुर्की की सेना सदा धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में व शासन में धर्म की अधिक दखलंदाजी के विरोध में आगे आई है।

- बहुत से साधारण नागरिकों ने यह महसूस किया कि धर्मनिरपेक्षता को भी कुछ संकीर्ण रूप में ही बढ़ाया जा रहा है व वे ऐसे दलों व नेताओं की ओर आकर्षित होने लगे जो इस्लाम के ऐसे रूप से जुड़े हों जो हिंसक नहीं हैं व लोकतंत्र के प्रतिकूल नहीं हैं। इस तरह के रुझान का लाभ एड्रोजन जैसे नेताओं को मिला व यहां एक बार नहीं कई बार चुनाव जीत कर सेना पर अपनी पकड़ मजबूत की।

- उनके लिए सही रास्ता यह होता है कि तुर्की का बीसवीं शताब्दी का इतिहास देखते हुए वे धर्मनिरपेक्षता की ताकतों के प्रति कुर्द विरोधियों के प्रति सुलह-समझौते की राह अपनाते पर एड्रोजन ने इस ओर समुचित ध्यान नहीं दिया व धीरे-धीरे उनकी यह आलोचना जोर पकडऩे लगी कि उनमें भी तानाशाही प्रवृत्तियां आने लगी हैं। जिस तरह उन्होंने राष्ट्रपति निवास के रूप में लगभग 1000 कमरों का महल बनवाया उससे इस आलोचना को और बल मिला।

- कुछ विश्लेषकों ने यह आशंका व्यक्त की है तख्ता पलट के प्रयास के बाद अपने पास और अधिक शक्ति केंद्रीकृत करने की राष्ट्रपति की प्रवृत्ति और जोर पकड़ सकती है। जिस तरह जल्दबाजी में बहुत से न्यायाधीशों को हटा दिया गया उससे भी यह झलक मिली है। जरूरत इस बात की है कि ऐसी प्रवृत्तियों को छोडक़र एड्रोजन और उनके सहयोगी लोकतंत्र को मजबूत करने पर अधिक ध्यान दें व तनावों को कम करने के लिए सुलह-समझौते की राह अपनाएं।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download