अफगानिस्तान की अशांति

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काबुल के राजनयिक इलाके में हुआ भीषण विस्फोट अफगानिस्तान की उलझनों को बहुत अच्छी तरह से बयान करता है। अफगानिस्तान में इस समय जिस तरह का युद्ध चल रहा है उसमें घटनाओं की व्याख्या अक्सर कठिन हो जाती है। सरकार के साथ ही एक दूसरे से लड़ते आतंकवादी गुटों और उनके बीच समीकरण बनाते-बिगाड़ते पाकिस्तान की सक्रियता को देखते हुए किसी भी आतंकवादी वारदात के बाद यह बताना आसान नहीं होता कि यह हमला किसने किया और किसके खिलाफ किया? मंगलवार को

Ø  अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में जो भीषण विस्फोट हुआ उसे समझना भी इतनी ही टेढ़ी खीर है। पहले तो यह समझना ही काफी कठिन हो रहा है कि इस हमले का निशाना कौन था? जहां यह विस्फोट हुआ है वहां पास ही में जर्मन दूतावास है, हमले में जर्मन दूतावास के कुछ कर्मचारी घायल भी हुए हैं और दूतावास की इमारत को भी नुकसान पहुंचा है। पश्चिम के देश हमेशा ही तालिबान के निशाने पर रहे हैं, इसलिए पहला शक तालिबान पर ही जाता है।

Ø   इन दिनों अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट के सक्रिय होने की खबरें भी आ रही हैं, जिसकी पश्चिमी देशों से एलर्जी जगजाहिर है, इसलिए एक शक उस पर भी किया जा सकता है। जर्मन दूतावास के ठीक पीछे भारतीय दूतावास है। काबुल का भारतीय दूतावास हमेशा से पाकिस्तान की आईएसआई के निशाने पर रहा है और वहां कई बार पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी हमला बोल चुके हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2008 का आतंकवादी हमला है जब दूतावास के गेट पर भीषण कार बम विस्फोट हुआ था। जिसके बाद अमेरिकी खुफिया संगठन सीआइए भी इस नतीजे पर पहुंची थी कि इसमें पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है। मुमकिन है कि इस बार भी ऐसी ही कोई

कोशिश हो जो सिरे न चढ़ सकी हो। एक और आशंका यह भी है कि जिस रास्ते पर यह विस्फोट हुआ वह अफगान राष्ट्रपति भवन की ओर जाता है, यह भी मुमकिन है कि कोशिश इसी भवन को निशाना बनाने की हो। हमले का निशाना चाहे जर्मन दूतावास हो, भारतीय दूतावास हो, अफगानिस्तान का राष्ट्रपति भवन हो या कोई और हो ये सारी चीजें एक ही बात कहती हैं कि अफगानिस्तान में ऐसी ताकतें अभी भी सक्रिय हैं जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए इस मुल्क को स्थिर नहीं होने देना चाहतीं। दशकों से बाहरी दखल और भीतरी उथल-पुथल से जूझ रहे अफगानिस्तान को शांति और स्थिरिता की ओर कैसे ले जाया जाए यह आज दुनिया की सबसे बड़ी चुनौती है।

Afganistan & ISIS

बल्कि आज दुनिया में जो कई तरह की अशांति दिख रही है उसमें अफगानिस्तान की मौजूदा उलझन की एक बड़ी भूमिका है। आज भले ही इस्लामिक स्टेट को दुनिया का सबसे बड़ा खतरा माना जाता हो लेकिन उसे शह देने में अफगानिस्तान के हालात ने बड़ा काम किया है। लंबे हस्तक्षेप के बाद भी अमेरिका अफगानिस्तान से तालिबान का सफाया नहीं कर सका जिससे यह छवि बनी कि इस तरह के उग्रवाद को खत्म करना अमेरिका के बस में नहीं है। अगर अमेरिका पूरी तरह सफल हो जाता

अफगानिस्तान में पाकिस्तान का वो खेल भी खत्म हो जाता जिसमें वह इस जमीन के इस्तेमाल भारत के खिलाफ कई तरह से करता था। अमेरिका सफल न हो इसमें पाकिस्तान ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया था और आज भी वह इसमें जुटा है।

Journey from Afganistan

दुनिया और खासकर एशिया में अशांति का ताजा दौर इसी अफगानिस्तान से शुरू हुआ था और शांति का सिलसिला भी यहीं से शुरू हो सकता है। इसके लिए जरूरी यही है कि पिछली गलतियों से सीखते हुए, असल गुनहगारों को पहचानकर पूरी दुनिया एक संयुक्त प्रयास करे। अफगानिस्तान स्वाभिमानी लोगों का एक प्रगतिशील देश रहा है वहां के लोग खुद भी बाहरी ताकतों के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहेंगे। जब तक यह नहीं हो जाता, अफगानिस्तान से अच्छी खबरे कम ही आएंगी।

 

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