भारत-जर्मनी के रिश्तों का गणित और उनका मूल्याङ्कन

- जर्मन चांसलर एंगेला मर्केल भारत दौरे पर हैं। भारत से व्यापारिक संबंधों को बढ़ाना बेशक मर्केल की यात्रा का सबसे अहम पहलू है, लेकिन इसके दूसरे आयाम भी हैं।

- साथ ही दोनों देशों में 18 सहमति-पत्रों पर दस्तखत हुए। इनका मकसद भारत में जर्मन कंपनियों के कारोबार की राह आसान बनाना है। अब उन कंपनियों की परियोजनाओं को तेजी से हरी झंडी मिलेगी। इस तरह वे प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इंडियाकार्यक्रम में सकारात्मक भूमिका निभा सकेंगी।

- मोदी और मर्केल की बातचीत में रक्षा उत्पादन, खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी रजामंदी हुई। एक अहम घोषणा यह है कि जर्मनी हरित (पर्यावरण अनुकूल) ऊर्जा का कॉरिडोर बनाने और सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए एक अरब यूरो की सहायता देगा।

- मोदी की जर्मनी यात्रा के तकीरबन छह महीने बाद ही भारत आना मर्केल की प्राथमिकताओं में भारत के बढ़े महत्व को इंगित करता है। दरअसल, इस समय भारत और जर्मनी ऐसी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिनमें अनेक पूरक पहलू हैं।

- यानी कह सकते हैं कि व्यापार भले भारत-जर्मनी संबंधों की बुनियाद हो, मगर शांति और सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग भी इसका अभिन्न् अंग बन गए हैं। खासकर इस वक्त जलवायु परिवर्तन का मुद्दा अहम है, क्योंकि अगले महीने पेरिस में नई जलवायु संधि को तय करने के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन होना है। 
- इस मौके पर कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लिए भारत ने अपनी कार्ययोजना पेश की है। हरित ऊर्जा को बढ़ावा देना उसका अहम हिस्सा है। ऐसे में जर्मनी की सहायता भारत के लिए बेहद उपयोगी होगी। फिर जर्मनी की बातें यूरोपीय संघ और उस नाते वैश्विक मामलों में खासा वजन रखती हैं। भारत का उस पर जितना प्रभाव बनेगा, जलवायु मसले सहित तमाम अंतरराष्ट्रीय वार्ताओं में वह भारत के लिए लाभदायक सिद्ध होगा।

- यूरोपीय संघ में इस वक्त जर्मनी की हैसियत उस समूह के स्वाभाविक नेता की है। ऐसे में जर्मनी से कारोबारी संबंध बढ़े तो पूरे यूरोपीय बाजार से भारत की निकटता बढ़ेगी। राजनीतिक या कूटनीतिक मोर्चे पर भारत और जर्मनी में नज़दीकी का एक बड़ा कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए दोनों देशों का साझा अभियान है। यानी दोनों देश इस वक्त स्वाभाविक सहयोगी हैं।

- आज की दुनिया में प्रभाव कारोबारी क्षेत्र में जुड़ने वाले हितों से तय होता है। मर्केल इसीलिए आईं, क्योंकि भारत से जुड़ाव गहराने में उन्हें अपने देश का फायदा नजर आता है। भारत जर्मनी को अनुकूल निवेश माहौल और बड़ा बाजार मुहैया कराने की स्थिति में है। फिलहाल भारत और जर्मनी के बीच सालाना कारोबार करीब 16 अरब यूरो का है। आशा की जा सकती है कि जर्मन चांसलर की वर्तमान यात्रा के बाद इसमें काफी बढ़ोतरी होगी।

- भारत की कुशल श्रमशक्ति अपेक्षाकृत सस्ती है, जो जर्मन कंपनियों का उत्पादन बढ़ाने में सहायक हो सकती है। वहीं जर्मनी भारत की पूंजी की जरूरतें पूरी कर सकता है। भारत में उसके निवेश से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

- चांसलर मर्केल का भी एक डिजिटल एजेंडा है, जिसे वहां 4.0 के नाम से जाना जाता है। उसके तहत जर्मनी डिजिटल तकनीक अपने कारोबार में विस्तार चाहता है। भारत उसमें सहायक बन सकता है। भारत को आधुनिक तकनीक और निवेश की जरूरत है, जबकि जर्मनी को आईटी में कुशल कर्मियों और बाजार की। यानी जर्मनी और भारत एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करते हुए विकास के अपने मकसदों को पाने की स्थिति में हैं।

- यानी ये दोनों देश एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं। यही बात भारत-जर्मन संबंधों को नया रूप दे रही है। इसमें प्रगति हुई, तो बाकी मामलों में दोनों देश साझा रुख अपनाने के लिए स्वत: प्रेरित होंगे।

- 'भारत के आर्थिक रूपांतरण को हासिल करने के अपने नजरिए में हम जर्मनी को स्वाभाविक सहभागी के रूप में देखते हैं। जर्मनी की शक्तियां और भारत की प्राथमिकताएं आज आपस में जुड़ गई हैं।" ऐसे साझा हित ही अंतरराष्ट्रीय संबंधों का आधार होते हैं। जर्मनी और भारत ऐसे साझापन देख रहे हैं, इसलिए उनके रिश्ते नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहे हैं।

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