भारत- जर्मनी संबंध

- जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल की तीन दिवसीय भारत यात्रा बदले परिवेश में दोनों देशों के रिश्तों की बढ़ी अहमियत को रेखांकित करती है। दोनों देशों ने इस यात्रा के दौरान 18 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए, जिसमें सोलर प्रॉजेक्ट्स और ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर के लिए जर्मनी की ओर से सौ करोड़ यूरो (करीब 225 करोड़ डॉलर) की सहायता सबसे ज्यादा उल्लेखनीय है।

- गैर पारंपरिक ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच बढ़ता आपसी तालमेल दिसंबर में क्लाइमेट चेंज पर होने वाले पेरिस सम्मेलन को ध्यान में रखते हुए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

- भारत में नौकरशाही लेटलतीफी और लालफीताशाही को लेकर निवेशकों में काफी शिकायत रही है। इसके मद्देनजर यहां जर्मन कंपनियों को फास्ट ट्रैक बिजनेस अप्रूवल की खास सहूलियत देने पर सहमति बनी है। इसके तहत उन्हें भारतीय प्रशासन में सिंगल पॉइंट कंटैक्ट सिस्टम मुहैया कराया जाएगा। अगर जर्मन कंपनियों के साथ इस तरह की व्यवस्था काम कर जाती है तो इसे अन्य देशों की कंपनियों के साथ भी लागू किया जा सकता है। ऐसा करके भारत में नौकरशाही को लेकर विदेशी निवेशकों के बीच बनी नकारात्मक धारणा को बदला जा सकेगा।

- दोनों देशों के नजरिए से एक अहम डिवेलपमेंट यह है कि जर्मनी ने खुले मन से भारत को एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्वीकार कर लिया है। शुरू में वह भारत के परमाणु कार्यक्रम को लेकर काफी शंकालु था, मगर अब उसने न केवल न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी), मिसाइल टेक्नॉलजी कंट्रोल रीजीम (एमटीसीआर), ऑस्ट्रेलिया ग्रुप आदि आपूर्तिकर्ता समूहों के साथ भारत के संपर्कों का स्वागत किया है, बल्कि उसे इन समूहों की सदस्यता दिलाने में सहयोग करने का वादा भी किया है।

- दोनों देशों के एक-दूसरे पर बढ़ते इस विश्वास का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि दोनों की नजदीकी बढ़ने की शुरुआत सुरक्षा परिषद के विस्तार की साझा मांग को लेकर जी 4 (जर्मनी, ब्राजील, जापान और भारत) देशों की संयुक्त पहल से हुई है। 
- ये चारों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं, इसलिए इस बात को लेकर खास सावधानी बरती जानी चाहिए कि जब मामला सुरक्षा परिषद में विस्तार की मांग से आगे बढ़कर एक या दो स्थायी सदस्य चुनने पर आए, तब भी इनका रिश्ता इतना ही मजबूत बना रहे।

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