भारत का सुनहरा भविष्य अफ्रीका के संग

- संयोग रहा कि भारत-अफ्रीका शिखर सम्मेलन तब आयोजित हुआ जब गांधी जी को साऊथ अफ्रीका से स्वदेश वापसी के 100 साल पूरे हुए हैं। गांधी जी ने वहां अपने करीब दो दशक के प्रवास के दौरान अश्वेतों के हक के लिए प्रतिबद्धता से लड़ाई लड़ी। 
- जैसी कि उम्मीद थी, समिट में भारत-अफ्रीका के बीच व्यापारिक संबंधों को और मजबूती देने पर फोकस रहा।

=>व्यापारिक अवसर :-
- भारत अफ्रीका में बड़ा निवेशक है। टाटा, महिन्द्रा, भारती एयरटेल, बजाज आटो, ओएनजीसी जैसी प्रमुख भारतीय कंपनियां वहां कारोबार कर रही हैं। भारती एयरटेल ने अफीका के करीब 17 देशों में दूरसंचार क्षेत्र में 13 अरब डॉलर का निवेश किया है।

=>" संसाधनों के दोहन में :-
- भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में कोयला, लोहा और मैगनीज खदानों के अधिग्रहण में भी गहरी रुचि जताई है। भारतीय कंपनियां दक्षिण अफ्रीकी कंपनियों से यूरेनियम और परमाणु प्रौद्योगिकी प्राप्त करने की राह भी देख रही हैं।

=> कृषि क्षेत्र में:-
- भारत और विश्व कि खाद्य सुरक्षा के सन्दर्भ में अफ्रीका एक महत्वपूर्ण स्थान रखता हैI अफ्रीकी कंपनियां एग्रो प्रोसेसिंग व कोल्ड चेन, पर्यटन व होटल और रिटेल क्षेत्र में भारतीय कंपनियों के साथ सहयोग कर रही हैं।

=>कहीं हम चीन से पिछड़ तो नहीं गए ?
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भारत ने देर से ही सही अफ्रीकी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत बनाने की ठोस पहल शुरू की है, बावजूद इसके कि भारत को लेकर समूचे अफ्रीका में सदभावना रही, फिर भी भारत ने इतने बड़े क्षेत्र को कमोबेश नजरअंदाज ही किया। हमारा सारा फोकस व्यापार के स्तर पर अमेरिका, खाड़ी और यूरोपीय देशों तक ही सीमित रहा। 
- भारत का अफ्रीकी संघ के देशों के साथ 1990 तक व्यापारिक कारोबार मात्र एक अरब डॉलर तक ही था। यह भारत के कुल विदेशों व्यापार का मात्र दो फीसद था। 
- साल 2005 से लेकर साल 2010 तक दो तरफा व्यापार का आंकड़ा 40 बिलियन डॉलर को पार कर गया है। और २०१५ तक 70 बिलियन डॉलर को पार हो गया I 
- भारत की चाहत है कि भारत व अफीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 2020 तक बढ़ाकर 200 अरब डॉलर तक किया जाए।

=>"भारत की उर्जा जरूरतों को पूरा करने में अफ्रीकी देशों की भूमिका"
- भारत की उर्जा क्षेत्र में तेजी से बढ़ती जरूरतों की रोशनी में भी अफ्रीका अहम है। नाइजीरिया उन देशों में शामिल हैं, जिनसे भारत सर्वाधिक कच्चे तेल का आयात कर रहा।
- पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2012-13 में अफ्रीका से भारत को 3.1 करोड़ टन कच्चे तेल की आपूर्ति हुई जबकि केवल नाइजीरिया से ही 1.23 करोड़ टन तेल का आयात किया गया।

=> भारत की ओर से क्या किया जाना चाहिए?
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याद रखिए कि संबंधों और मैत्री में सिर्फ व्यापार ही सब कुछ नहीं होता। भारत सरकार को सुनिश्चित करना होगा ताकि यहां पर रहने वाले हजारों अफ्रीकी नागरिकों के साथ रंगभेद की नीति न अपनाई जाए। उनके प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया न जाए। 
- बीते कुछ समय पहले इस तरह की अनेक खबरें आ रही थीं जब गोवा,पुणो,पंजाब, दिल्ली में अफ्रीकी नागरिकों को दोयम दर्जे का इंसान माना जा रहा था। 
- अगर भारत में अफ्रीकियों के साथ भेदभाव होता रहा तो मान कर चलिए कि भारत को व्यापारिक स्तर पर अफ्रीकी देशों में पैर जमाने में कठिनाई होगी। तब इस तरह के सम्मेलनों का कोई मतलब नहीं होगा।

- हमारे यहां अफ्रीकी नागरिकों को रंगभेद का शिकार होना पड़ता है। ये सच है। आपको याद होगा कि कुछ समय पहले भारत और नाइजीरिया के बीच कूटनीतिक विवाद पैदा हो गया था क्योंकि गोवा सरकार ने नाइजीरियाई नागरिकों को जबरन राज्य से बाहर निकाले की बात की थी। जवाब में नाइजीरियाई सरकार ने भी कुछ इसी अंदाज में जवाब दिया था। नाइजीरिया में करीब 50,000 भारतीय रहते हैं।

- कुल मिलाकर माना जा सकता है कि भारत को लेकर अफ्रीका में तमाम संभावनाएं मौजूद हैं अपने बिजनेस को तेजी से बढ़ाने के लिहाज से। जो अवरोध हैं, उन्हें दूर किया जा सकता है। अफ्रीका सहयोग के लिए तैयार है। अब हमें उसे उसका वाजिब हक देना होगा ।

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