ब्रिक्स सम्मेलन : कैसे भारत की कूटनीतिक ‘जीत’ आखिरकार चीन के भी फायदे में है

#Satyagriha

शियामेन ब्रिक्स सम्मेलन (BRICS SUMMIT 2017) का घोषणा पत्र एक बड़ी कूटनीतिक सफलता है. इसमें आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की गई है और पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों – लश्कर-ए-तोएबा, जैश-ए-मोहम्मद और हक्कानी नेटवर्क का जिक्र शामिल है.

  • यह पहली बार है जब ब्रिक्स घोषणापत्र ((BRICS SUMMIT 2017)) में इन आतंकवादी संगठनों का जिक्र किया गया है. हालांकि बीते साल जब यह सम्मेलन गोवा में आयोजित हुआ था तब भी भारत ने संयुक्त घोषणापत्र में इन संगठनों का नाम शामिल कराने की कोशिश की थी, लेकिन चीन ने इसमें अड़ंगा लगा दिया था. चूंकि इस बार का ब्रिक्स सम्मेलन चीन में ही हुआ है तो इस लिहाज से यह घोषणा पत्र काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है.
  • डोकलाम में टकराव के बाद कुछ राजनयिक हलकों में यह आशंका जताई जा रही थी कि चीन भारतीय हितों के खिलाफ सख्त रुख अपना सकता है. हालांकि चीन ने इस बार भी सुझाव दिया था कि घोषणापत्र में पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठनों का जिक्र न किया जाए, लेकिन आखिरी वक्त में वह इस पर सहमत हो गया. माना जा सकता है कि यह कूटनीतिक सफलता इस मुद्दे पर भारत की प्रतिबद्धता और लगातार कोशिश का नतीजा है.
  • इसके अलावा चीन का रुख बदलने की एक और वजह हो सकती है. उसके लिए वैसे तो पाकिस्तान रणनीतिक सहयोगी है, लेकिन हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी उसे आतंकवादी संगठनों को पनाह देने वाला देश बताया था.

IS this win for India

  • शियामेन घोषणापत्र को भारत की कूटनीतिक ‘जीत’ बताना भी ठीक नहीं है. दरअसल दूसरे देशों में मौजूद आतंकवादी संगठनों का न सिर्फ पाकिस्तानी संगठनों के साथ वैचारिक साझापन है बल्कि ये हथियारों और अन्य तरह से भी एक दूसरे की मदद करते हैं. इसलिए सिर्फ उन आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना जो देश की सरकार के खिलाफ हैं और दूसरे संगठनों की तरफ आंख मूंद लेना राष्ट्रीय हित की संकीर्ण परिभाषा है. ऐसे देश कभी-भी आतंकवाद की समस्या से निजात नहीं पा सकते.
  • पाकिस्तान अक्सर यह दावा करता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में उसने सबसे ज्यादा कुर्बानियां दी हैं. इस मुद्दे पर चीन भी उसका समर्थन करता है लेकिन यह दावा पूरी तरह गलत है. पाकिस्तान ने हमेशा कुछ चुनिंदा आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई की है और बाकियों को अपने यहां सुरक्षित पनाहगार उपलब्ध कराई हैं. उसको अगर आज आतंकवाद के घातक नतीजे झेलने पड़ रहे हैं तो इनकी जड़ में यही नीति है. इसलिए यह पाकिस्तान के हित में ही है कि वह सभी प्रकार के आतंकवाद का समर्थन करना बंद करे. एक भरोसेमंद साझीदार का फर्ज निभाते हुए चीन को भी आतंकवाद पर इस नजरिए से उसे सहमत करना चाहिए.

शियामेन घोषणा पत्र के बाद नई दिल्ली को जैश के मुहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी लगवाने के लिए नए सिरे से कोशिश शुरू करनी चाहिए. वहीं बीजिंग को इस पर अपनी आपत्तियां वापस ले लेनी चाहिए.

ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान और इसके अलावा भी दूसरे सार्वजनिक मंचों पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वैश्विक सहयोग की बात करते रहे हैं. यह सही और काबिलेतारीफ सोच है लेकिन इसे भारतीय हितों को नजरअंदाज करके आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. आखिरकार चीन को यह अहसास होना चाहिए कि पाकिस्तान से पैदा होने वाला आतंकवाद हर किसी के हितों को नुकसान पहुंचाएगा और इसमें चीनी हित भी शामिल हैं.

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