- भारत जल्द ही दक्षिणी वियतनाम में सैटेलाइट ट्रैकिंग और इमेजिंग सेंटर स्थापित करेगा, जिसकी बदौलत भारत के पृथ्वी पर नजर रखने वाले उपग्रहों (भारतीय अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइटों) से खींची गई उन तस्वीरों तक वियतनाम की भी पहुंच हो जाएगी।
- भारत के इस सैटेलाइट ट्रैकिंग की जद में चीन तथा दक्षिणी चीन सागर समेत सारा इलाका आ जाएगा।
- माना जा रहा है कि यह भारत को घेर रहे चीन को भारत का जबाब है , साथ ही इससे भारत और वियतनाम के संबंध गहरे होंगे।
***गौरतलब है कि दोनों ही देशों के लंबे समय से चीन के साथ सीमा विवाद चलते रहे हैं।
- हालांकि अर्थ ऑब्ज़र्वेशन सैटेलाइटों में कृषि, वैज्ञानिक तथा पर्यावरण से जुड़ी एप्लीकेशन होती हैं, और इसे नागरिक उपकरण कहा गया है,
- लेकिन उन्नत इमेजिंग तकनीक की वजह से तस्वीरों का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है।
- विवादित दक्षिणी चीन सागर को लेकर चीन के साथ बढ़ते तनाव की वजह से वियतनाम काफी समय से खुफिया जानकारी पाने, निगरानी करने तथा टोह लेने की उन्नत तकनीकों को पाने की कोशिश करता रहा है।
=>"भारत के इस कदम का रणनीतिक महत्व"
- सैन्य नजरिये से देखें, तो यह कदम काफी महत्वपूर्ण है।यह दोनों देशों (भारत और वियतनाम) के लिए फायदे की स्थिति है, क्योंकि जहां एक ओर इस कदम से वियतनाम को अपनी कमजोरियां दूर करने में मदद मिलेगी, वहीं भारत की पहुंच भी बढ़ जाएगी।'
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) इस सैटेलाइट ट्रैकिंग तथा डेटा रिसेप्शन सेंटर का खर्च वहन करेगा, और इसे हो ची मिन्ह शहर में स्थापित किया जाएगा।
- इसकी मदद से भारतीय उपग्रहों के प्रक्षेपण (लॉन्च) पर भी निगरानी रखी जा सकेगी। इसमें लगभग दो करोड़ 30 लाख अमेरिकी डॉलर का खर्चा होगा।
- 54 साल से अंतरिक्ष में अनुसंधानरत भारत का कार्यक्रम इस समय ज़ोर पकड़े हुए है, और हर महीने वह कम से कम एक उपग्रह लॉन्च कर रहा है।
- भारत के ग्राउंड स्टेशन अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के अलावा ब्रूनेई, पूर्वी इंडोनेशिया के बियाक तथा मॉरीशस में भी हैं, जिनके जरिये वह लॉन्च के शुरुआती चरणों में उपग्रहों पर नज़र रख सकता है।
* वियतनाम में स्थापित होने वाले सेंटर के बाद यह क्षमता बढ़ जाएगी।