इस वर्ष ने बड़े दायरे में सोचने, साहसी दूरदर्शिता व त्वरित कार्यवाही के जरिये 'भारतीय कहानी' को नई ऊर्जा दी है। इस प्रक्रिया में भारत ने खुद को हर तरह की बहसों, जिसमें वैश्विक प्रशासकीय सुधार, जलवायु परिवर्तन, परा-राष्ट्रीय आंतकवाद व साइबर सुरक्षा भी शामिल हैं, को आकार देने में अपने आप को महत्वपूर्ण हिस्सेदार बनाया है।
पड़ोसी देशों पर सबसे पहले ध्यान देने की नीति जारी है, इस दिशा में बांग्लादेश के साथ ऐतिहासिक समझौता संपन्न हुआ है, नेपाल में भयावह भूकंप की त्रासदी के बाद त्वरित सहायता के लिए भारत तुरंत मौजूद रहा। अफगान राष्ट्रपति यहां बुलावे पर आये, जबकि श्रीलंका के साथ रिश्तों में नई गर्मजोशी रही। वर्ष 2015, भारतीय राजनयिक संबंधों को पी5 शक्तियों के साथ पुनर्जिवित करने के मायने में भी मील का पत्थर साबित हुआ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूएस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन व रूस की यात्रा से इन देशों के साथ बहुमुखी रिश्तों में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। इस वर्ष दुनिया के अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्रों अफ्रीका, पश्चिम एशिया, मध्य एशिया व दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के आपसी सहयोग में नई ऊर्जा, दीर्घकालीन दृष्टि व नई योजनाएं शुरू करने के लिए
तीसरे भारत-अफ्रीका फोरम समिट ने दुनिया के दो उभरते ध्रुवों के बीच पुराने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संबंधों को पुनर्जिवित किया है व इस विशेष साझादारी को विकासित हो रही वैश्विक व्यवस्था में स्थापित किया है। पैसेफिक द्वीपों के साथ भारत के रिश्तों ने भारतीय कूटनीति की नई दिशाओं में जोर को इंगित करता है, इसने निर्णायक शक्तियों साथ ही साथ छोटे व महत्वपूर्ण राज्यों को भी साझे लक्ष्यों व साधे हितों के लिए कदम उठाने को प्रेरित किया है। बहुपक्षीय समूहों जैसे कि ब्रिक्स, जी20 व राष्ट्रमंडल के साथ रिश्ते मजबूत हुए हैं। पिछले बारह महीनों में भारत ने अर्द्ध गोलार्थ में फैले 25 मिलियन भारतीय प्रवासियों के साथ को भी सराहा है और उनके साथ नई पहलकदमियों को मंच दिया है।
घरेलू विकास व समृद्धि का वातावरण तैयार करने संबंधी विदेश नीति के उद्देश्य के साथ वैश्विक स्तर पर देश के कद को ऊंचा करना साल 2015 की उपलब्धियों में अहम हैं। फोटो खिंचाने के मौकों, यात्राओं व समझौतों से इतर, व्यापक संभावनाओं को मूर्त रूप मिला है। आर्थिक मोर्चे पर, निजी निवेश की भावना व विदेशी निवेश का प्रवाह सकारात्मक रहा है। इस वर्ष एफडीआई का अंतर्प्रवाह 40 प्रतिशत तक बढ़ा है। भारतीय विदेश नीति ने महत्वपूर्ण घरेलू पहलकदमियों जैसे कि मेक इन इंडिया, स्कील इंडिया व डिजीटल इंडिया को जरूरत के आधार पर साझेदारी के जरिये लाभ में तब्दील किया है, महत्वपूर्ण देशों के साथ समझौतों में भी इस जरूरत की छाप दिखती है। उदाहरण के लिए मेक इन इंडिया पहल को अद्भुत प्रतिक्रिया मिली, जिसमें कुछ देशों ने तो भारत में निर्माण केंद्र स्थापित करने के लिए विशेष अनुदान आवंटित किया। जैसे कि जापान के साथ हाल के समझौते में विभिन्न क्षेत्रों में ढेर सारी परियोजनाओं के लिए समझौता हुआ जिसमें मुंबई से हैदराबाद के बीच बहुचर्चित बुलेट ट्रेन परियोजना भी शामिल है।
‘स्किल इंडिया’ परियोजना की गूंज सुनाई दी और जर्मनी, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया व जापान जैसे देशों ने भारत के बढ़ते कामगारों के लिए अपनी विशेषज्ञों की सेवाएं प्रदान करने का प्रस्ताव रखा। कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया ‘स्मार्ट सिटिज’ व गंगा के कायाकल्प की पहल पर भी देखने को मिली। कैलिफोर्नियां की अहम यात्रा में प्रधानमंत्री ने डिजिटल इंडिया की जमीन तैयार की जिससे कि तकनीक की पहुंच को जनसंख्या के व्यापक हिस्से तक पहुंच को संभव बनाया जा सके। इस पहल को तकनीक व सोशल मीडिया कंपनियों की तरफ से उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया मिली। विदेशी विशेषज्ञों व उद्यमी साझेदारों के लिए आपसी हितों के आधार पर भारत के दरवाजे खोलते हुए भारतीय कूटनीति ने, घरेलू स्तर पर आम लोगों के भविष्य में परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए विदेशी नीति के उद्देश्यों को पूरा करने की कोशिश की है जैसा पहले कभी नहीं हुआ। पिछले साल भारत के विकास को आर्थिक संस्थाओं व संगठनों ने भी माना है। अर्नेस्ट एंड यंग ने भारत को सबसे आकर्षक निवेश स्थल के रूप में शामिल किया है। 2015 की पहली छमाही में भारत हरित निवेश स्थलों की श्रेणी में सबसे ऊपर रहा। यूएस की विदेश नीति पत्रिका ने भारत को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश स्थलों में सबसे पहले नंबर पर रखा है। यूएनसीटीएडी रैंकिंग में भी भारत की स्थिति में सुधार हुआ है और यह 15वें स्थान से 9वें स्थान पर आ गया है, वर्ल्ड बैंक की व्यापार शुरू करने के लिए सुगम रिपोर्ट 2016 में भारत को 12वें स्थान पर रखा है, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल कंपटेटिव इंडेक्स में 16 स्थानों की छलांग लगाई है। भारत में हो रहे बदलावों को विदेशों में प्रचारित करने को हमारी कूटनीति का मुख्य जोर रहा है।
=>पड़ोसी देश संबंधी कूटनीतिः नई सीमाओं की खोज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके शपथ-ग्रहण समारोह में सभी सार्क नेताओं को आमंत्रित करने की पथ-प्रदर्शक पहलकदमी के साथ भारत ने दक्षिण एशिया में अपने निकट पड़ोसियों के साथ निरंतर जुड़ाव बनाए रखा है।
प्रधानमंत्री के जून में बांग्लादेश दौरे ने बदलती कूटनीति को नई आवाज दी है। इस दौरे में दोनों देशों के बीच भूमि सीमा समझौता की सहमति का आदान-प्रदान भी हुआ। यह समझौता छोटे से जमीन के टुकड़े पर रह रहे हजारों लोगों के लिए एक नई सुबह लेकर आया और 68 साल पुराने भूमि विवाद खत्म हुआ। 161 एनक्लेव के लेन-देन की औपचारिक प्रक्रिया ने इस इलाके में रह रहे 51000 लोगों के जीवन में आशा और सम्मान लेकर आया। इसने उन संभावनाओं को उभारा कि कैसे कूटनीति आम लोगों के जीवन को नई दिशा दे सकती है।
6-7 जून के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा से भारत-बांग्लादेश के बीच विकासशील सहयोग को नई ऊंचाइयां मिली, भारत ने बांग्लादेश को 2 बिलियन डॉलर का कर्ज देने का वचन दिया है जो भारत की तरफ से अब तक किसी देश को दिया गया सबसे ज्यादा कर्ज है। 2 बिलियन डॉलर के कर्ज ने बांग्लादेश के साथ भारत के जुड़ाव की बाधाओं को दूर किया है और दोनों देशों के बीच व्यापार, संपर्क व साझी समृद्धि लाने का प्रयास किया है। दोनों देशों ने संपर्क को और प्रगाढ़ करने के मकसद से दो नई बस सेवाएं शुरू की हैं। दोनों देश बांग्लादेश, भूटान, भारत व नेपाल के बीच उपक्षेत्रीय सहयोग का हिस्सा हैं जिनके बीच संपर्क व क्षेत्रीय एकता को मजबूत किया जा रहा है।
इसी तरह से, भारत का श्रीलंका के साथ रिश्तों ने नई सीमाओं तक पहुंची हैं और दोनों तरफ के नेताओं व विदेश मंत्रियों की यात्राओं से इसमें नई ऊर्जा आई है। श्रीलंका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मैथरिपाला सिरिसेना ने कार्यभार संभालने के एक महीने में के भीतर ही भारत की यात्रा की। मार्च में श्रलंका की यात्रा में प्रधानमंत्री ने भारत की तरफ से श्रीलंका में रेलवे के उन्नति के लिए 318 मिलियन डॉलर कर्ज की वचन दिया (नई दिल्ली का विकास सहयोग पहले से ही तकरीबन 1.6 बिलियन डॉलर का है)। श्रीलंकाई रूपया के स्थायित्व व लंका आईओसी (इंडियन ऑयल कॉर्प की श्रीलंका में सब्सिडरी) व सीलोन पेट्रोलियम कॉरपोरेशन के सहयोग से एक क्षेत्रीय पेट्रोलियम हब के रूप में ट्रीनकोमाली विकसित करने पर भी सहमति के लिए 1.5 बिलियन डॉलर के मुद्रा आदान-प्रदान समझौते की भी घोषणा हुई। दोनों देशों ने चार अन्य समझौते पर दस्तख्त किए जिसमें आधाकारिक पासपोर्ट धारकों के लिए वीजा में छूट, यूथ एक्सचेंज, सीमा-शुल्क समझौता व रुहुना विश्वविद्यालय में भारत के सहयोग से रबिन्द्रनाथ टैगोर सभागार का निर्माण शामिल है।
अफगानिस्तान में बदल रही विकास प्रक्रिया की पृष्टभूमि में, भारत अफगानिस्तान के साथ निरंतर सहयोग का रिश्ता कायम रखे है और जद्दोजहद से गुजर रहे इस देश में दोस्ती के अफसाने को बढ़ावा दे रहा है। अप्रैल 2015 में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की भारत यात्रा में भारत ने अफगानिस्तान के पुनर्निमाण के संकल्पों को दुहराया। अफगानिस्तान में आर्थिक खुशहाली को ध्यान में रखते हुए दोनों तरफ से व्यापारिक वीजा की प्रक्रिया को आसान बनाने पर ध्यान दिया जा रहा है। अफगानिस्तान ने भारत के उस फैसले का स्वागत किया है जिसमें की तरफ से दी जाने वाली 1000 सालाना छात्रवृत्तियों को क्षमता निर्माण की पहल को देखते हुए अगले 5 साल तक के लिए बढ़ा दिया गया है। भारत ने अफगानिस्तान के हेरात प्रांत में भारत के सहयोग से बन रहे भारत-अफगानिस्तान मित्रता (सलमा) बांध के लिए सहयोग को जारी रखेगा। आने वाले साल के पहले छह महीनों में इस बांध के पूरे होने के आसार हैं। काबुल में भारत के सहयोग से बन रहा राष्ट्रपति भवन, साथ ही साथ दोषी और चरीकार पावर स्टेशन का काम पहले ही पूरा हो चुका है।
भारत का हरमौसम मित्र भूटान के साथ रिश्तों को पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी की भूटान यात्रा ने और प्रगाढ़ किया है जो अब चक्रीय रूप में जारी है। भूटान के प्रधानमंत्री तशेरिंग तोब्ग्य की जनवरी में भारत यात्रा में हाइड्रोपावर के क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया गया। अंतरसरकारी मॉडल के तहत कुल 2940 मेगावॉट के तीन मौजूदा एचईपी की प्रगति पर दोनों तरफ से संतोष व्यक्त किया गया। दोनों देशों ने 10,000 मेटावॉट की पहल पर संकल्प व्यक्त किया और इस संदर्भ में कुल 2120 मेगावॉट के चार जेवी-मॉडल प्रोजेक्ट को जल्दी लागू करने की बात भी दुहराई गई।
25 अप्रैल को जब नेपाल में भूंकप आया, भारत इस प्राकृतिक व मानवीय त्रासदी में पहुंचने वाला पहला देश था। इसके साथ ही भारत ने विदेशों में अपनी सबसे वृहद आपात सहायता ऑपरेशन मैत्री शुरू कर दिया। जून में ईएएम की काठमांडू यात्रा के दौरान भारत ने भूकंप प्रभावित नेपाल के पुनर्निमाण के लिए 1 बिलियन डॉलर के कर्ज की घोषणा की। हालांकि नेपाल में नई संविधान, जिसमें की वहां के सभी तरह के लोगों की चिंताओं का ध्यान नहीं रखा गया है, की घोषणा के साथ ही राजनीतिक परिस्थितियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भारत ने नेपाल के आंतरिक संकट का त्वरित समाधान निकालने के लिए समाज के सभी पक्षों के साथ बातचीत और उससे राजनीतिक स्थिति पर आमसहमति बनाने पर जोर दिया।
भारत मालदीव में राजनीतिक हिंसा के बावजूद वहां के नेताओं के साथ भी बातचीत में शामिल रहा है। इसे सितंबर में न्यूयॉर्क में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन से इतर दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत में देखा जा सकता है। इसके बाद विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज ने 10-11 अक्टूबर को इस द्वीप की यात्रा की संबंधों को पुनर्जिवित किया।
भारत लगातार इस बात पर जोर देता रहा है कि वह पाकिस्तान के साथ बेहतर रिश्ते रखना चाहता है, लेकिन यह आतंक व हिंसा मुक्त वातावरण में ही संभव है। आतंकी हमलों की पृष्टभूमि में रिश्तों को सुधारना अभी भी बड़ी चुनौती है लेकिन भारत ने ऊफा, रूस में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच बातचीत के जरिये ठोस शुरुआत की है। बैठक का अंत इस बात के साथ हुआ कि शांति व विकास को बढ़ावा देना भारत व पाकिस्तान दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। दोनों देशों ने आतंकवाद व जनता से जनता के बीच संबंधों को बढ़ाने के लिए पांच सूत्रीय एजेंडे पर जोर दिया है। ऊफा के तुरंत बाद आतंकी हमले जैसे कई तरह की रूकावटों के बावजूद तथा पाकिस्तान द्वारा एनएसए स्तर की शुरुआती बातचीत को स्थगित किए जाने के बाद दिसंबर में बैंकाक में एनएसए की बैठक अहम परिणाम रहा है, इसके बाद ईएएम ने हर्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद गईं। कॉन्फ्रैंस के बाद ईएएम ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित किया और अपने समकक्ष सरताज अजीज से मिलीं जिसके बाद जारी एक साझे बयान में आतंकवाद की आलोचना की गई, साथ ही जोर दिया गया कि एनएसए सभी पक्षों पर निरंतर बातचीत करते रह सकते हैं और पाकिस्तान मुंबई हमलों के मामले पर शीघ्र सुनवाई करेगा। इन सबके बाद दोनों पक्ष समग्र द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने पर सहमत हैं, इसके तौर-तरीकों पर फैसला विदेश सचिवों द्वारा किया जा सकता।
म्यामांर ऐतिहासिक लोकतांत्रिक परिवर्तन की तरफ बढ़ रहा है, भारत ने वहां चुनाव का स्वागत किया और प्रधानमंत्री ने आंग सन सू की को संसदीय चुनाव में जीत पर बधाई दी है। नई दिल्ली में 16 जुलाई, 2015 को हुए पहले इंडिया-म्यामांर ज्वाइंट कंसुल्टेटिव कमीशन (जेसीसी) बैठक से दोनों देशों के बीच द्वीपक्षीय संबंध उर्ध्वाधर हैं, मौजूदा हवाई संपर्क को और आगे बढ़ाने, म्यामांर सरकार को विकास प्राथमिकताओं के लिए 500 करोड़ मिलियन यूएस डॉलर का कर्ज को जारी रखने व बीसीआईएम-ईसी व बिम्सटेक ढांचे के तहत क्षेत्रीय तथा उप-क्षेत्रीय सहयोग को और प्रगाढ़ करने पर संकल्प व्यक्त किया है। कोमेन चक्रवाती तूफान के बाद आई बाढ़ व भूस्खलन के बाद भारत ने म्यामांर में आपदा राहत सहयोग में भी मददगार की भूमिका निभाया।
=>एक्ट ईस्ट पॉलिसीः दृष्टि, जोश व कार्यवाही की योजना
भारत की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी‘ नए नेतृत्व के जोश व दूरदृष्टि पर आधारित है जिसने 2015 में नई ताकत हासिल की है। एसियान देशों व ईस्ट एशियाई क्षेत्रों के साथ आर्थिक व रणनीतिक साझेदारी में मजबूती में इसकी छाप देखी जा सकती है। भारतीय कूटनीति, आर्थिक रूप से इस गतिमान क्षेत्र से जुड़कर तथा इन देशों को भारत के विकास एजेंडे से जोड़ते हुए मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटिज, स्टार्ट-अप इंडिया, एम-गवर्नेंस व स्कील इंडिया जैसे कार्यक्रमों में लाभ उठाना चाहती है।
इस वर्ष इस क्षेत्र के साथ भारत के सुरक्षा सहयोग में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिसमें आतंकवाद को हराने, समुद्री डकैती, पारंपरिक व गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए दोनों तरफ से सहयोग के लिए ठोस कदम की पहचान की गई। एक्ट ईस्ट पॉलिसी के ये मुख्य चालक नवंबर में कुआललंपुर में हुए इंडिया-आसियान व ईएएस समिट में तथा मलेशिया, सिंगापुर व दक्षिण कोरिया की द्विपक्षीय यात्राओं में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी में दिखता है। सिंगापुर के राष्ट्रपति ने भारत की यात्रा की और उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी की लाओस, कंबोडिया व इंडोनेशिया यात्रा, म्यांमार के विदेश मंत्री की भारत यात्रा, विदेश मामलों की मंत्री सुषमा स्वराज की इंडोनेशिया व थाईलैंड की यात्रा ने भारत व ईस्ट एशियाई देशों के साथ रिश्तों को कई स्तरों पर और गहरा व पुनर्जिवित किया।
=>आसियान व ईएएस
दसवें भारत-आसियान समिट 2016 से 2020 तक के लिए आसियान-भारत कार्य योजना “शांति, प्रगति व साझी समृद्धी के लिए साझेदारी” के साथ संपन्न हुआ। इस क्षेत्र में भारत की कूटनीति की पहुंच में आसियान की केंद्रीयता को इस तरह से समझा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी ने 13वें भारत-आसियान समिट कुलाललंपुर में 1 बिलियन यूएस डॉलर के कर्ज का वचन दिया जिसका उद्देश्य उन परियोजनाओं को सहायता देना है जो आर्थिक विकास व समृद्धि के गलियारों तक जोड़ती के लिए डिजिटल व भौतिक संपर्क प्रदान करती हैं। सीएलएमवी देशों में निर्माण केंद्रों के विकास, कम लागत की तकनीकों के व्यावसायिकरण के लिए इनोवेशन प्लेटफॉर्म प्रदान करना, मौजूदा आसियान- इंडिया विज्ञान व तकनीक विकास निधि को 1 मिलियन यूएस डॉलर से बढ़ाकर 5 मिलियन करना परियोजना विकास निधि की कुछ महत्वपूर्ण घोषणाओं में से हैं। व्यापार के मामले में भारत-आसियान निवेश केंद्र जिसके जल्द ही काम करने लगने की उम्मीद है, इससे द्विपक्षीय व्यापार के 100 बिलियन डॉलर तक हो सकेगा।
रक्षा सहयोग में वृद्धि, धर्म व आतंक को अलग-अलग करने को बढ़ावा देना व सीसीआईटी को अपनाने पर जोर देना वो महत्वपूर्ण क्षेत्र थे जिन पर ध्यान दिया गया। वैश्विक समुद्री संचार लाइनों की सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा के केंद्रबिंदु हो गया है, भारत ने आसियान के साथ मिलकर अंतरराष्ट्रीय कानून सिद्धांतों के अनुरूप व 1982 के समुद्री कानूनों के संदर्भ में यूएन कंवेंशन के मुताबिक नौपरिवह की स्वतंत्रता, मुक्त हवाई उड़ान, अबाध वाणिज्य के लिए साझे संकल्पों पर दृढ़ रहा है।
द्विपक्षीय बातचीत के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी की मई में दक्षिण कोरिया की यात्रा व उसके बाद नवंबर में मलेशिया व सिंगापुर की द्विपक्षीय यात्रा, देश के एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर मुख्य जोर को दर्शाता है। पीएम मोदी की मई में यात्रा के दौरान भारत व दक्षिण कोरिया ने अपने द्विपक्षीय रिश्तों को आगे बढ़ाते हुए विशेष रणनीतिक साझेदारी पर सहमत हुए और दोनों पक्ष के बीच देश में या बहुपक्षीय कार्यक्रम से अलग वार्षिक सम्मेलन बैठक करने पर सहमति बनी। दोनों देशों ने अपने बहु-पक्षीय साझेदारी को सात नए द्विपक्षीय समझौतों पर दस्तख्त करके नई ऊर्जा दी। 2+2 के आधार पर कूटनीतिक व रक्षा वार्ता शुरू करने के फैसले साथ कोरियाई गणतंत्र दूसरा ऐसा देश बन गया है जिससे भारत इस तरह की वार्ता कर रहा है। दक्षिण कोरिया भारत के आर्थिक आधुनिकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, इसकी कंपनियां भारत की वृहद उत्पादन परियोजनाओं में सहयोग करने को तत्पर हैं। भारत के महत्वाकांक्षी परियोजनाओं जिसमें की मेक इन इंडिया व स्मार्ट सिटिज शामिल हैं, सिओल 10 बिलियन डॉलर के पैकेज के साथ इसमें सहयोग करने को उत्सुक है।
प्रधानमंत्री मोदी की मलेशिया की द्विपक्षीय यात्रा (23 नवंबर) में तीन समझौतों पर हस्ताक्षर के साथ दोनों देशों ने अपने रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत किया। मलेशिया, मलेशियाई कंपनियों के साथ भारत की स्मार्ट सिटिज परियोजना का हिस्सा बनने व भूमिका अदा करने को उत्सुक है तथा वह भारत के ढांचागत विकास में सहयोग करना चाहता है।
=>सिंगापुर के साथ भारत के रिश्ते, हमारी एक्ट ईस्ट पॉलिसी का अहम हिस्सा, एफडीआई का दूसरा बड़ा स्रोत है जिसने सिंगापुर के राष्ट्रपति की फरवरी में भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने अपने कूटनीतिक रिश्तों की 50वीं सालगिरह मनाई । प्रधानमंत्री मोदी ने भी नवंबर 23-24 को सिंगापुर की यात्रा की। प्रधानमंत्री मोदी विश्व के उन कुछ नेताओं में से थे जिन्हें मार्च 2015 में इसके संस्थापक ली कून यू के निधन के बाद शोक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था। अपनी नवंबर यात्रा के दौरान भारत व सिंगापुर ने रणनीतिक साझेदारी समझौत के संयुक्त घोषणापत्र पर दस्तख्त किए व साथ ही 10 द्विपक्षीय समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए जिसमें रक्षा, साइबर सुरक्षा व नागरिक उड्डयन क्षेत्र से संबंधित समझौते शामिल हैं।
उप राष्ट्रपति की कंबोडिया, लाओस व इंडोनेशिया यात्रा व विदेश मामलों की मंत्री की थाइलैंड व इंडोनेशिया यात्रा ने भी आसियान के मुख्य साझेदारों के साथ हमारे सहयोग को मजबूत किया। थाइलैंड के साथ अपस्केल ट्रेड व निवेश के लिए दोहरे कराधान को दूर करने के लिए संसोधित संधि पर हस्ताक्षर हुए। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना में थाइलैंड को शामिल करने के संबंध में एमओयू व थाई विश्वविद्यालयों में आर्युवेद चेयर स्थापित करने संबंध एमओयू के साथ दोनों देशों के सांस्कृतिक संबंधों को भी नई ऊर्जा मिली है।
=>महत्वपूर्ण शक्तियों के साथ संबंधः नया जोश, नया नजरिया
अपने निकट पड़ोसियों से इतर, नई सरकार, दुनिया की महत्वपूर्ण शक्तियों के साथ सक्रिय प्रभावशाली ढंग से जुड़ी रही और प्रधानमंत्री ने सभी पी5 देशों व जापान व जर्मनी सहित यूएन सुरक्षा परिषद के आशावान सदस्यों देशों की यात्राएं की। स्थापित व उभरते शक्ति केंद्रों के साथ लगातार व बहुरंगी रिश्तों ने नई उम्मीदों के द्वार खोले हैं, इससे इनके साथ अहम साझेदारियों के साथ भारत की उभरती वैश्विक ताकत वाली पदवी पर भी मुहर लगी है।
=>यूएस
नई सरकार के कूटनीतिक कैलेंडर की शुरुआत यूएस राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा से शुरू होता है। राष्ट्रपति ओबामा भारत के गणतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहे और वह ऐसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति हैं जिन्हें इसके लिए आमंत्रित किया गया। पिछले वर्ष प्रधानमंत्री मोदी की यूएस यात्रा और राष्ट्रपति ओबामा की दूसरी भारत यात्रा से भारत-यूएस के रिश्तों में एक नया मील का पत्थर स्थापित होते देखा। दुनिया की सबसे पुराने लोकतंत्र और सबसे विशाल लोकतंत्र के बीच व्यापक सकारात्मक बदलाव के एजेंडे को “साझा प्रयास, सबका विकास” के रूप में जारी संयुक्त बयान में देखा जा सकता है। इस बयान से जाहिर होता है कि भारत के मौजूदा पुनरुत्थान में यूएस एक प्रमुख हिस्सेदार है। भारत-यूएस के बीच इस मौजूदा कायापलट में स्पष्ट नतीजे के रूप में ऐतिहासिक सिविल न्यूक्लियर डील पर अमल महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इन रिश्तों को रक्षा सहयोग में संयुक्त उत्पादन जैसी दिशा दिखाने वाली परियोजनाओं में विस्तार, हरित ऊर्जा, स्मार्ट सिटिज व इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास जैसे विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है। दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को पांच गुना बढ़ाकर 500 बिलियन डॉलर करने का लक्ष्य रखा है।
=>चीन
हमारा विस्तारित पड़ोसी चीन से भारत के रिश्ते में नई स्थिरता आई है साथ ही आर्थिक व रणनीतिक मोर्चे पर भी वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष सितंबर में चीन के राष्ट्रपति शी भारत की यात्रा की जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने चीन के तीन शहरों की यात्रा की जो अपने आप में कई मायनों में अभूतपूर्व रहा। प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले फरवरी में विदेश मामलों की मंत्री ने बीजिंग की यात्रा की जिसके साथ ही चीन में ‘भारत की यात्रा करो’ की पहल शुरू की गई, साथ ही चीनी नेतृत्व के साथ द्विपक्षीय व क्षेत्रीय मुद्दों पर व्यापक चर्चा हुई।
प्रधानमंत्री श्री मोदी की 12-14 नवंबर को हुए पहले ब्रिटेन दौरे के दौरान दोनों देशों ने उच्च विकास चरण में प्रवेश किया। इस दौरान ब्रिटेन में कई स्तरों पर प्रतीकात्मक सद्भाव दिखाया, जिनमें ऐतिहासिक ब्रिटिश स्मारकों को तिरंगे से सजाया गया, प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपने ब्रिटिश समकक्ष डेविड कैमरन के सरकारी मेहमान बने, ब्रिटेन की महारानी के साथ दोपहर का भोज किया और पहली बार ब्रिटिश संसद को किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने संबोधित किया। लंदन में हुई वार्ताओं के ठोस नतीजे रेखांकित करते हैं कि भारत के राष्ट्रीय पुनर्निर्माण संबंधी योजनाओं में ब्रिटेन की कुछ ज्यादा ही बड़ी भूमिका है। इनमें प्रमुख हैं- ‘मेक इन इंडिया’ और स्मार्ट सिटीज।
इसके अलावा दोनों देशों के बीच सहयोग में अहम हैं- आर्थिक रिश्तों में नई जान फूंकने, रक्षा क्षेत्र में नई उछाल और सुरक्षा साझेदारी, ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन पर अलग से संयुक्त बयान और विकासशील देशों में हिस्सेदारी को साझा करने संबंधी वक्तव्य। असैन्य परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर, प्रधानमंत्री स्तर पर दो वर्षों में शिखर बैठक आयोजित करने के फैसले और नई रक्षा और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा हिस्सेदारी संबंधी समझौतों से आने वाले दिनों में दोनों देशों को निश्चित रूप से फायदा पहुंचेगा। ब्रिटेन द्वारा सीसीआईटी पर समर्थन और भारत के पड़ोसी देशों में चल रहे भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाई भी महत्वपूर्ण बिन्दु है। 9 अरब 20 करोड़ पाउंड की भारी भरकम राशि खर्च करके निजी क्षेत्र को नई ऊंचाइयों की ओर ले जाना आर्थिक संबंधों में मजबूती का प्रतीक है। इसमें 1 अरब 30 करोड़ पाउंड राशि वोडाफोन की ओर से निवेश की जाएगी। रेलवे के बुनियादी ढांचे के लिए लंदन स्टॉक बाजार में रुपए के बांड को भी सूचीबद्ध किया जाएगा,
वाणिज्यिक समझौतों के तहत 3 अरब 20 करोड़ पाउंड की लागत से स्वच्छ ऊर्जा पैकेज पर भी काम हुआ है, इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी के दौरे से बराबर की आर्थिक हिस्सेदारी के रूप में सोलीहुल में जगुआर लैंड रोवर संयंत्र भी स्थापित किया जाएगा।
दूसरे क्षेत्र.........
=>पश्चिम एशिया : खुली आर्थिक राह
पश्चिम एशिया के साथ भारत के रिश्ते महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इस क्षेत्र में 70 लाख मजबूत भारतवंशी रहते हैं। पश्चिम एशिया भारत के तेल आयात का 70 प्रतिशत से ज्यादा स्रोत भी है। पिछले 12 महीनों के दौरान इस क्षेत्र से भारत की उम्मीदें सीधे क्षितिज पर पहुंच गई हैं।
2015 के पहले तिमाही में कतर के अमीर ने 24-15 मार्च को भारत का दौरा किया। इससे दोनों देशों के बीच कूटनीतिक, आर्थिक और सामरिक सहयोग में मजबूती आई है। इस दौरे मेंे चार सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर हुए और विभिन्न क्षेत्रों – सूचना प्रौद्योगिकी, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग और मीडिया के क्षेत्रों में दो संधियां हुई हैं। दोनों पक्षों ने सजायाफ्ता व्यक्तियों के स्थानांतरण और सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी मामलो में सहयोग बढ़ाने के अलावा सूचना साझा करने, खुफिया और कार्मिक प्रशिक्षण और मूल्यांकन के क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ाने संबंधी संधियां की हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के 16-17 अगस्त के अमीरात दौरे से पूरा समीकरण बदल गया और दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी और आर्थिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के नए दरवाजे खुले हैं। इसके तुरंत बाद 3-4 सितंबर को संयुक्त अरब अमीरात के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान का दौरा हुआ। दोनों देशों ने वार्ता में अपने रिश्तों को नए सिरे से ढालने के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्रों के अलावा रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा और उच्च शिक्षा में सहयोग बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। आतंकवाद रोधी उपायों को बढ़ाने और सुरक्षा सहयोग, सुरक्षा वार्ता शुरू करने, आतंकवाद रोधी अभियानों में तालमेल संबंधी कदम उठाने, कट्टरता रोधी, खुफिया सूचना साझा करने और क्षमता निर्माण की दिशा में दोनों देशों ने बिल्कुल नई पहल की है। संयुक्त अरब अमीरात ने संयुक्त राष्ट्र में अंतर्राष्ट्रीय आतंक पर व्यापक सम्मेलन बुलाने की भारत की पहल को समर्थन देने का वचन दिया और उसने आतंकवाद को समर्थन देने वाले मुल्कों को अलग-थलग कर आतंकवाद के मूल ढांचे को नष्ट करने में सहयोग का संकल्प भी व्यक्त किया।
अगस्त में भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री जावेद जारिफ ने भारत और ईरान के बीच आर्थिक रिश्तों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया। दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक परमाणु समझौते और सुरक्षा परिषद के स्थायी पांच देशों और एक देश को इसमें और शामिल करने संबंधी बिन्दुओं पर ध्यान केंद्र किया गया। भारत-ईरान के रिश्तों को वार्ता के जरिए नया मोड़ देने और व्यापार और निवेश के दो रास्ते को प्रोत्साहित करने पर भी समझौता हुआ। दोनों के बीच मौजूदा क्रेता-विक्रेता जैसे रिश्तों से आगे बढ़ते हुए बेहतर ऊर्जा साझेदार बनने पर सहमति से निश्चित रूप से व्यापक प्रभाव पड़ा। दोनों देशों के बीच जारी चाहबहार और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारें संबंधी परियोजनाओं और ईरान के रेल क्षेत्र में भारत की भागीदारी भी विचार-विमर्श के केंद्र में थी।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की 10-15 अक्टूबर को जॉर्डन, फिलिस्तीन और इजराइल दौरे के दौरान भारत ने इजराइल और अरब देशों के रिश्तों को साथ-साथ उन्नत करने संबंधी संकेत दिए।
इजराइल में दोनों पक्षों ने सौर ऊर्जा, डेयरी विकास, जल प्रबंधन, बागवानी, पशुधन और कृषि के अलावा दोनों देशों के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए रोडमैप विकसित करने पर सहमति जताई है। भारत और इजराइल ने नई संभावनाओं और विभिन्न क्षेत्रों में बराबर सहयोग करते हुए व्यापार और परस्पर निवेश को बहुमुखी बनाने पर भी वार्ता की है। भारत और इजराइल की शिक्षण संस्थाओं के बीच 8 सहमति पत्रों का आदान-प्रदान और दोनों अंतर सरकारी समझौतों पर हस्ताक्षर हुए।
जॉर्डन में 16 सहमतियों और समझौतों पर सहमति बनी। इनमें शिक्षण संस्थाओं के बीच समझौतों के अलावा दोनों पक्षों ने आतंकवाद रोधी, रक्षा, आईटी और ऊर्जा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की दिशा खोली है।
अपने फिलिस्तीन दौरे के दौरान राष्ट्रपति ने फिलिस्तीनियों की चिंताओं के प्रति भारत के सैद्धांतिक सहमति को दोहराया और संयुक्त फिलिस्तीन की दिशा में वार्ता से समाधान की जरूरत पर जोर दिया। इसके अलावा राष्ट्रपति ने कई स्तरों के रोडमैप और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रासंगिक प्रस्तावों सहित इजराइल के साथ शांतिपूर्ण रिश्ते का समर्थन किया। 6 सहमति पत्रों और समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए जिसके तहत भारत फिलिस्तीन के छात्रों के लिए सालाना 10 से बढ़ाकर आईसीसीआर छात्रवृत्तियां देगा। भारत ने फिलिस्तीन प्राधिकरण को बजट समर्थन भी बढ़ाकर 50 लाख अमेरिकी डॉलर कर दिया। भारत ने फिलिस्तीन में आईटी संबंधी एक उत्तमता केंद्र भी खोला है। इसी तरह का एक और केंद्र गजा में खोलने की घोषणा की है। रामल्ला में एक आईटी पार्क और फिलिस्तीनी राजनयिक संस्थान भी खोले जाने की घोषणा हुई है, जिस पर क्रमश: 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर और 4.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर लागत आने का अनुमान है।
=>अफ्रीका: बदलाव संबंधी कार्यसूची
भारत ने 26-29 अक्टूबर को नई दिल्ली में तीसरे भारत-अफ्रीकी फोरम शिखर सम्मेलन की मेजबानी की। इस तरह यह साल अफ्रीका के लिए भारत की कूटनीति का वर्ष रहा। शिखर सम्मेलन में सभी 54 देशों के शासनाध्यक्षों/ सरकारी प्रतिनिधियों में हिस्सा लिया। सम्मेलन में अफ्रीकी नेताओं का यह सबसे बड़ा जमावड़ा था और इससे अपने संसाधनों की विकास गाथा खोलने के भारत के गतिशील और परिवर्तनकारी एजेंडा पेश करने का मौका मिला।
इस शिखर सम्मेलन के जरिए भारत ने अफ्रीका केंद्रित 2063 एजेंडे की झलक दिखाई। शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अफ्रीकी देशों के सभी नेताओं के साथ अलग-अलग बैठकें कीं। शिखर सम्मेलन के बाद महत्वपूर्ण पहल पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिसमें जनता से जनता के बीच संपर्क बढ़ाने और जानकारी के आदान-प्रदान पर जोर था। इस दौरान संपादकों के फोरम और प्राध्यापकों के फोरम की भी झलक मिली। भारत ने कर्ज में छूट के रूप में अफ्रीका को 10 अरब अमेरिकी डॉलर भी मदद का एलान किया। इस तरह अफ्रीका में विकास संबंधी सहयोग नए मुकाम पर पहुंच गया। इसके अलावा 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त आर्थिक मदद की भी घोषणा की गई। यह मदद 100 मिलियन डॉलर वाले भारत-अफ्रीका विकास फंड और भारत अफ्रीका स्वास्थ्य कोष के लिए 10 मिलियन अमेरिकी डॉलर के भीतर है।
खास बात यह है कि परियोजनाओं पर कुल वित्तीय मदद का लाभ अगले पांच वर्षों यानी 2020 तक पूरा हो जाना है। यह राशि एलओसी से दोगुनी से ज्यादा है और पिछले दो शिखर सम्मेलनों के मौके पर भारत ने पिछली परियोजनाओं के लिए इन्हें देने का वायदा भी किया था। प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना के लिए 100 मिलियन डॉलर का विकास कोष गठित किया गया है और भारत-अफ्रीकी विकास सहयोग जैसी दूसरी परियोजनाओं में भी इस रकम का इस्तेमाल होगा। अगले साल होने वाले सम्मेलन में इस तरह के सहयोग पर कार्य योजना को अंतिम रूप दिया जाएगा।
महाद्वीप की युवा शक्ति का दोहन करने के लिए भारत ने अगले 5 वर्षों में 50,000 अफ्रीकी छात्रों को छात्रवृत्ति देने का फैसला किया है। पहले के मुकाबले छात्रवृत्ति की यह संख्या दोगुनी है। भारत ने पैन अफ्रीका ई-नेटवर्क को विस्तार देने और डिजिटल संपर्क परियोजनाओं में जान फूंकने का भी फैसला किया है। इस समय 54 अफ्रीकी देशों में टेलीमेडिसीन और टेलीएजुकेशन की सुविधा है।
इस तीसरे शिखर सम्मेलन में जलीय अर्थव्यवस्था के संयुक्त विकास के लिए ब्लू-प्रिंट तैयार किया गया है। इसके अतिरिक्त, इसमें व्यापक पैमाने पर सहयोग के ढांचे को भी जोड़ा गया है, जिनमें आतंकवाद, समुद्री डकैती, साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, डब्ल्यूटीओ वार्ताएं और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार जैसे विषय शामिल हैं।
शिखर बैठक में भारत और अफ्रीका के मिलन के जरिए सुरक्षा परिषद के विस्तार को तेज करने पर भी जोर दिया गया। दोनों पक्षों ने इस बात पर बल दिया कि भारत और अफ्रीका के लिए स्थायी सीट के समर्थन के लिए एकजुट हुआ जाए। दोनों ने सहमति वाली परियोजना को तेजी से क्रियान्वित करने के लिए संयुक्त निगरानी तंत्र की स्थापना पर भी सहमति जताई।
शिखर सम्मेलन में भारत-अफ्रीकी रिश्ते सबसे ऊपर थे, लेकिन दक्षिण अफ्रीका और मिस्र के शीर्ष नेताओं के महत्वपूर्ण दौरे हुए। तंजानिया और मोजांबिक के राष्ट्रपतियों के आगामी दौरे भी होने हैं।
18-21 मई को विदेश मंत्री के दौरे ने दोनों देशों में सहयोग के 5 वर्षीय रणनीतिक कार्यक्रम के ढांचागत कार्यों को आगे बढ़ाया। दोनों देशों ने रक्षा, ज्यादा गहराई में खनन, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण और बीमा क्षेत्रों में सहयोग को प्राथमिकता के आधार पर चिन्हित किया। दोनों पक्षों ने भारत-दक्षिण अफ्रीका वरीयतापूर्ण समझौता का भी निश्चय किया। विदेश मंत्री के 23-25 अगस्त को मिस्र के दौरे के दौरान सुरक्षा और आतंकरोधी सहयोग समझौता हुआ। इसके अलावा दोनों ने पर्यटन को बढ़ावा देने और विज्ञान-तकनीकी सहयोग को उन्नत करने के करार पर भी हस्ताक्षर किए। 17-21 जून को भारत के दौरे पर आए तंजानिया के राष्ट्रपति की यात्रा का निष्कर्ष यह रहा कि दोनों के बीच आतंकरोधी सहयोग बढ़ाने के लिए कार्यसमूह की स्थापना, तंजानिया में गैस क्षेत्र के विकास में भारत के सहयोग और पानी को लेकर समझौते हुए। मोजांबिक के राष्ट्रपति के भारत दौरे (4-8 अगस्त) में व्यापार, प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में भारत की नीति साफ परिलक्षित हुई।
=>एपिक :
भारत-प्रशांत द्वीप सहयोग (एपिक) की पहली बैठक में प्रधानमंत्री फिजी पहुंचे। 14 द्वीप वाले देशों के इस दूसरे शिखर सम्मेलन की भारत ने मेजबानी की। इस शिखर बैठक में कई क्षेत्रों में पहल के रास्ते खुले, जिनमें क्षमता निर्माण, विकास संबंधी सहयोग, नवीनीकृत ऊर्जा और जलीय अर्थव्यवस्था पर विशेष्ज्ञ जोर रहा। एपिक के बीच इस महत्वपूर्ण साझेदारी को मजबूत करने के लिए एपिक-2 में भारत ने प्रत्येक प्रशांत स्थित द्वीप देश में सूचना प्रौद्योगिकी प्रयोगशाला की स्थापना का प्रस्ताव किया जिससे टेलीमेडिसीन और टेलीएजुकेशन की इस क्षेत्र के लोगों को सहूलियत मिले। प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के क्षेत्रों में भारत ने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (एटिक) के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रम की सुविधाएं बढ़ाईं। इसके तहत फिजी को 110 तरह की सुविधाएं मिलेंगी और बाकी 13 देशों को 113 से 238 तक दोगुनी सुविधाएं हासिल होंगी। भारत कुछ विशेष पहल के रूप में इस क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों के विकास में हिस्सेदारी करेगा। इसके अलावा, समुद्री जीवों पर अनुसंधान केंद्र सहित भारत इस क्षेत्र में सतत तटीय और महासागरीय अनुसंधान संस्थान स्थापित करेगा। इसके अलावा, भारत ने क्षेत्र के किसी एक देश में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग केंद्र (एसटीएसी) स्थापित करने में भी सहयोग का प्रस्ताव किया है। प्रधानमंत्री ने व्यापक महासागर में स्थित इन देशों के शिखर सम्मेलन में कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुधार और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए नजदीकी सहयोग पर वे ठोस वार्ताएं चाहते हैं।
=>मध्य एशिया : उच्च प्रक्षेपपथ
2015 में भारत की मध्य एशिया से जुड़ने की नीति ने गति पकड़ी। इसके लिए प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अनोखी यात्रा के क्रम में मध्य एशिया के सभी 5 देशों – उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगिस्तान और तजाकिस्तान का (6-13 जुलाई) दौरा किया। रूस के सोच्चि में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन से हमारी भागीदारी तय हुई और इससे भारत के सभ्यतागत रिश्तों और संसाधन संपन्न, रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भारतीय महाद्वीप के महत्व को उभारने का मजबूत संदेश गया। सम्मेलन में भारत के नजरिए को संपूर्ण माना गया और ऊफा में हुए सम्मेलन से मध्य एशिया नीति से हमारी संपर्क को व्यापकतर मजबूती मिली। सम्मेलन का निष्कर्ष यह रहा कि इससे आर्थिक रिश्तों, ऊर्जा साझेदारी, गहरे सुरक्षा सहयोग और क्षेत्र के साथ सांस्कृतिक कूटनीति के गुणात्मक रिश्तों में बदलने में मदद मिली। विदेश मंत्री की अप्रैल में तुर्कमेनिस्तान और मई में तजाकिस्तान का दौरा हुआ जिससे जुलाई में इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री श्री मोदी का असरदार दौरा संभव हो पाया।
भारत और उज्बेकिस्तान ने दोनों देशों के विदेश विभागों के बीच पर्यटन, संस्कृति और सहयोग के क्षेत्रों में तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। भारत को 2000 मीट्रिक टन यूरेनियम की आपूर्ति के ठेके पर तेजी से अमल संबंधी फैसला, आतंकरोधी सहयोग बढ़ाने और स्थिर और समावेशी अफगानिस्तान के निर्माण पर विचार-विमर्श किया गया। प्रधानमंत्री मोदी की उज्बेकिस्तान की यात्रा इन्हीं विषयों पर केंद्रित थीं। कजाकिस्तान में प्रधानमंत्री ने सतपाऐव खंड के पहले तेल कुएं के खनन को देखा, इसमें ओएनजीसी का 25 प्रतिशत हिस्सा है। दोनों देशों ने भारत को प्राकृतिक यूरेनियम की दीर्घावधि आपूर्ति के नवीनीकृत समझौते पर भी हस्ताक्षर किए और पाइप लाइन द्वारा गैस और तेल की आपूर्ति और भारत को कजाकिस्तान से एलएनजी की पाइप लाइन से आपूर्ति के तरीके खोजने पर भी सहमति बनी। संयुक्त बयान में ‘तेज कदम’ पर जोर दिया गया है, जिसमें भारत कजाकिस्तान के रिश्तों के विकास के लिए पांच संधियों पर हस्ताक्षर किए गए हैं, जिनमें रक्षा क्षेत्र में उन्नयन और सैन्य-तकनीकी सहयोग समझौता भी शामिल है।
क्षेत्र में ऊर्जा के मामले में एक और प्रगति तब हुई जब तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (तापी) गैस पाइप लाइन के क्रियान्वयन पर फैसला हुआ। इसको लेकर ऐतिहासिक समारोह हुआ। इसके लिए दिसंबर में अपने दौरे के दौरान उपराष्ट्रपति समारोह में उपस्थित थे। भारत और तुर्कमेनिस्तान ने दीर्घावधि के ऊर्जा हिस्सेदारी की। इसमें ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने तुर्कमेनिस्तान में अपना कार्यालय खोला और दोनों देशों ने एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस पर तुर्कमेनहिमिया और भारत के सार्वजनिक उपक्रम राष्ट्रीय कैमिकल्स और फार्टिलाइजर्स लिमिटेड ने दीर्घावधि के लिए तुर्कमेनिस्तान से यूरिया आयात करने के समझौते किए। रक्षा सहयोग समझौते पर हुए हस्ताक्षर से आतंकरोधी सहयोग बढ़ने की आशा है। किर्गिस्तान से भी रक्षा सहयोग समझौता हुआ। इसके तहत संयुक्त सैन्य अभियान, सैन्य विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों के आदान-प्रदान, सैन्य शिक्षा और प्रशिक्षण के साथ ही क्षमता निर्माण को आगे बढ़ाने की सराहना हुई। भारत ने तजाकिस्तान के 37 स्कूलों को कम्प्यूटर लैब स्थापित करने का भी प्रस्ताव किया है। दोनों पक्षों ने कृषि क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए सात चरणों वाले ढांचागत कार्यों को निष्पादित करने पर भी सहमति जताई।
=>जी-20
प्रधानमंत्री ने तुर्की में हुए जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। वैश्विक आर्थिक वृद्धि को बहाली करने और इसमें वैश्विक लेखा-जोखा शामिल किए जाने की जरूरत पर जोर दिया। भारत ने जी-20 के नतीजों को विकासशील देशों की आकांक्षा पर केंद्रित आर्थिक निवेश रणनीति की विजय बताया और वैकल्पिक वित्तीय ढांचे और पारदर्शी जांच-पड़ताल संबंधी विकल्पों का प्रस्ताव किया। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की भ्रष्टाचार और काला धन पर कोई ढील न देने पर जोर दिया। पेरिस आतंकी हमलों के मद्देनजर आतंकवाद से मुकाबले के लिए 10 सूत्री योजना की घोषणा की। इसमें आतंकी ढांचे को आर्थिक सहयोग रोकने और लक्षित वित्तीय प्रतिबंधों पर जोर दिया, जिससे आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को अलग-थलग किया जा सके।
=>कोप-21 (CoP-21)
पेरिस में हुए इस सम्मेलन में भारत ने समझौते में अहम भूमिका निभाई और विकासशील देशों की चिंता से लोगों का परिचय करवाया। समझौते में कई साझा बातें हैं, लेकिन इनमें जिम्मेदारियां अलग-अलग हैं, जो विभिन्न राष्ट्रीय हालात के आलोक में दिखते हैं। जलवायु वित्त और विकसित देशों के नजरिए को भी प्रावधान बनाते समय इसमें डाला गया है। यह भी कहा गया कि अभी काफी काम किया जाना बाकी है।
=>निष्कर्ष :
2015 खत्म होने के मुहाने पर है। भारत ने अपने कूटनीतिक ग्राफ को विशेष गर्व के साथ नई ऊंचाई दी है और वह कई तरह के चुनौतियों से निपटने और उम्मीद की रोशनी बना है। पड़ोसी देशों से हमारे रिश्ते नई तरह से सुधरे है और बड़ी शक्ति केंद्रों के साथ तालमेल बेहतर हुआ है। अफ्रीका, मध्य एशिया, पश्चिम एशिया में हमारी कामयाबी साफ दिख रही है। 2015 की बहुस्तरीय उपलब्धियां और भारत के वैश्विक भूमिका में आने की सबूत हर स्तर पर दिख रहे हैं। इस तरह से देश की विदेश नीति और कूटनीतिक व्यवस्था मील का पत्थर साबित हुई है। इस तरह नए द्वार भी खुले हैं।