चीन को चुनौती

#Hindustan

पिछले कुछ दशकों में चीन के आर्थिक उत्थान ने पूरी दुनिया को जितना चौंकाया है, उतना ही उसके राजनीतिक, राजनयिक और सैनिक इरादों ने कई देशों को सशंकित भी किया है। खासकर पाकिस्तान और उत्तर कोरिया को छोड़ दें, तो चीन के सभी पड़ोसी उसके लगातार आक्रामक रवैये को लेकर खासे परेशान हैं।

  • पाकिस्तान और उत्तर कोरिया अगर इस फेहरिस्त में नहीं हैं, तो इसका कारण उनके प्रति चीन की कोई दरियादिली, कोई विशेष दोस्ती या कोई भावनात्मक लगाव नहीं है, बल्कि वह अपने राजनय में इन देशों का इस्तेमाल मोहरे के रूप में कर रहा है।
  • भारत के खिलाफ वह सिर्फ पाकिस्तान को शह ही नहीं देता, बल्कि हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों को लाभ पहुंचा देता है।
  • कई क्षेत्रों में तो यहां तक कहा जाने लगा है कि पाकिस्तान अब चीन का एक प्रदेश भर रह गया है।
  • वह भारत के खिलाफ नेपाल के इस्तेमाल की कोशिश कर चुका है।
  • यही हाल उत्तर कोरिया का है। जब पूरी दुनिया में उसकी सरकार के परमाणु कार्यक्रम का विरोध हो रहा है, तो चीन परोक्ष रूप से उत्तर कोरिया का बचाव करता दिख रहा है।
  • सिर्फ इस कारण से कि वह उत्तर कोरिया का इस्तेमाल दक्षिण कोरिया के खिलाफ कर सके। इन सभी मामलों में पैटर्न एक ही है- एक पड़ोसी को सैनिक व राजनयिक ताकत से दबाओ, और दूसरे को उसके खिलाफ खड़ा करने के लिए आर्थिक ताकत से खरीद लो।

चीन की यह नीति दुनिया भर में अरसे से चर्चा का विषय रही है, लेकिन अब पश्चिमी देशों के विशेषज्ञ इस पर खुलकर बोलने लग पडे़ हैं।  सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक ऐंड इंटरनेशनल स्टडीज की बोनी एस ग्लेसर ने चीन की नीति और नीयत का जो विश्लेषण किया है, वह उसके हाल ही में उठाए गए कदमों की अच्छी व्याख्या करता है। ग्लेसर का कहना है कि भारत के प्रधानमंत्री अपने देश के हितों को लेकर क्षेत्र के अन्य देशों से साथ जो गठजोड़ बना रहे हैं, उसे चीनी राष्ट्रपति अपने लिए सबसे बडे़ खतरे की तरह देखते हैं। इसके अलावा, वह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भारत के गठजोड़ को लेकर खासे चिंतित हैं। अल्पकालिक संदर्भ में जहां भारत के ऐसे गठजोड़ चीन को परेशान कर रहे हैं, तो वहीं दीर्घकालिक स्तर पर वह भारत को ऐसे देश की तरह देखता है, जो तकरीबन सभी मोर्चों पर उसका प्रतिस्पद्र्धी बन सकता है और उसके लिए चुनौती खड़ी कर सकता है। ग्लेसर ने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि भारत दुनिया का अकेला देश है, जिसने चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ नीति का खुलकर विरोध किया।

Need our own thinking to deal China

यह अच्छी बात है कि चीन की विस्तारवादी नीतियों को पश्चिम के विशेषज्ञों ने सही परिप्रेक्ष्य में समझना शुरू किया है। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन अपने समाधान निकालने के लिए हमें पश्चिमी विशेषज्ञों के विश्लेषण पर निर्भर नहीं रहना होगा। एक तो ये समस्याएं क्षेत्रीय हैं और इनके समाधान भी क्षेत्रीय स्तर पर ही निकलेंगे। दूसरे, पश्चिम के विशेषज्ञ भले ही हमारे क्षेत्रीय मसलों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हों, लेकिन वे उसे हमेशा पश्चिमी नजरिये से ही देखते हैं। अच्छी बात यह है कि सरकार इन सभी बातों को अच्छी तरह समझ रही है। एक तरफ वह सीमा पर बढ़ रहे तनाव को लेकर सचेत है, तो दूसरी तरफ उसे यह भी पता है कि इसके लिए क्षेत्रीय, एशियाई और विश्व स्तर पर कैसे राजनयिक प्रयास जरूरी हैं। इससे भी अहम बात यह है कि सरकार युद्ध की व्यर्थता को भी समझ रही है। प्रधानमंत्री भी यह बात कह चुके हैं और विदेश मंत्री इस बारे में राज्यसभा में बयान भी दे चुकी हैं।

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