Editorial_Dainik Bhaskar
Present context
इस समय विश्व राजनीति काफी तेजी से बदल रही है। महाशक्तियों के जो समीकरण पिछले 70 साल से चले आ रहे थे, उनमें बुनियादी परिवर्तन हो रहे हैं। ऐसे में भारत क्या-क्या कदम उठाए, उसकी विदेश नीति कैसे तेवर अख्तियार करे और उसके तात्कालिक और दूरगामी लक्ष्य क्या-क्या हों, इस प्रश्नों पर विचार करने का यह बिल्कुल सही समय है।
Changing US Policy:
Ø अब डोनाल्ड ट्रम्प ने जैसी अमेरिकी दादागिरी की विदेशनीति चला दी है, उसके परिणामस्वरुप यूरोप के राष्ट्र, जो नाटो सैन्य-संगठन के कारण अमेरिका से गहरे जुड़े थे, अब अपनी स्वतंत्र राह खोजने लगे हैं।
Ø जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल ने इस नई दिशा को दो-टूक शब्दों में स्पष्ट भी कर दिया है। अब नाटो के सभी राष्ट्रों बल्कि यूरोप के सभी राष्ट्रों के साथ अब भारत के संबंध निर्बाध रूप से बढ़ सकते हैं।
Ø पिछले सप्ताह नरेंद्र मोदी ने यूरोपीय राष्ट्रों की यात्रा बिल्कुल ठीक समय पर की। इधर ट्रम्प ने यूरोप में घमासान मचाया यानी पेरिस का जलवायु समझौता रद्द किया, यूरोपीय राष्ट्रों को कम सुरक्षा-खर्च करने पर ताना मारा तथा अपना माल अमेरिका पर लादने के लिए हतोत्साहित किया और उधर मोदी ने जर्मनी, स्पेन, रूस और फ्रांस पहुंचकर दर्जनों समझौते कर लिए।
Ø यूरोपीय राष्ट्रों के माल के लिए भारत काफी बड़ा बाजार और उनके अधुनातन शस्त्रों का सबसे बड़ा खरीददार भी हो सकता है। भारत और यूरोप का दर्द भी आजकल एक-जैसा है। जैसे आतंकवाद ने भारत के हृदय को छलनी कर रखा है, बिल्कुल वैसे ही यूरोप के प्रमुख देशों को भी कर रखा है।
Ø अमेरिका ने अपना सुरक्षा-कवच इतना मजबूत बना लिया है कि वह लगभग निश्चिंत है जबकि यूरोपीय राष्ट्र सीरिया और इराक में चल रहे ‘इस्लामी राज्य’ के आतंक से त्रस्त हैं। ये राष्ट्र आतंक का मुकाबला करने में भारत का साथ ज्यादा ईमानदारी से दे सकते हैं।
Russian Policy:
Ø आजकल रूस का रवैया बदला हुआ है। वह पाकिस्तान और तालिबान के प्रति नरम पड़ा है। वह बिल्कुल अमेरिका की तरह सिर्फ उसी आतंक को खत्म करने पर उतारु है, जो उसके खिलाफ है।
Ø उसे उस आतंक की जरा भी परवाह नहीं है, जो किसी दूसरे के खिलाफ है।
Ø रूस को इसीलिए तालिबानी आतंक और पाकिस्तानी आतंक की, जो कि भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ है, जरा भी परवाह नहीं है।
Ø इसीलिए सेंट पीटर्सबर्ग में मोदी ने जब पाकिस्तानी आतंक की बात कहीं तो पुतिन ने आतंक का विरोध तो किया लेकिन, वे पाकिस्तान का नाम गोल कर गए।
TRUMP Policy Towards Russia and China:
अब जबकि अगले सप्ताह भारत-पाकिस्तान, दोनों ही शंघाई सहयोग परिषद के सदस्य बन जाएंगे तो कहीं ऐसा न हो कि उसमें चीन और रूस दोनों मिलकर भारत को दबा लें।
यूं ट्रम्प का अमेरिका चाहे अपने आप को यूरोप से दूर कर रहा है, वह रूस और चीन को पटाने में पीछे नहीं है। ट्रम्प और रूस के गुप्त रिश्तों की पोल रोज ही खुल रही है और उत्तरी कोरिया-जैसे देशों को काबू करने के लिए ट्रम्प चीन की तरफ मुखातिब हो रहे हैं, ऐसे में भारत को इस विश्व-शक्ति त्रिभुज से निपटने के लिए एकदम नई रणनीति बनानी होगी। शंघाई सहयोग परिषद में अगर रूस-चीन से वह यदि पाकिस्तान पर कुछ असर डलवा सके और संबंध थोड़े भी सुधर जाएं तो विश्व में भारत उचित भूमिका निभा सकता है।
INDIA PAK DYNAMICS and CHINA:
यह असंभव नहीं कि जैसे भारत-पाक तनाव के कारण सार्क 30 साल से लंगड़ा रहा है, वैसा ही तनाव ये दोनों पड़ोसी देश शंघाई सहयोग परिषद में भी पैदा कर दें। चीन यदि अपने ‘वन बेल्ट वन रोड’ को सफल करना चाहता है तो उसे इन दोनों देशों में आपसी ताल-मेल बिठाना होगा। यूं भी भारत यदि अमेरिका, रूस और चीन के त्रिभुज में उचित स्थान न ले पाए तो उसके लिए दो ही रास्ते रहते हैं। एक तो यह कि वह विभिन्न राष्ट्रों के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर जोर दे। जैसे जापान के साथ मिलकर वह अपना एक नया सामुद्रिक ‘मखमल मार्ग’ खड़ा कर दे। चीन का ‘रेशम मार्ग’ और हमारा ‘मखमल मार्ग’! इसी तरह ईरान के साथ मिलकर वह मास्को तक सीधा थल-मार्ग बना दे। भारतीय विदेश नीति की सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तान ही है। यदि पाकिस्तानी फौजियों, नेताओं और जनता से सीधे संपर्क बनाकर भारत उन्हें आपसी सहयोग के फायदे गिना सके तो भारतीय उपमहाद्वीप की किस्मत चमक सकती है। नेताओं के घर साड़ियां भेजने, शादी में अचानक शामिल होकर और फर्जीकल स्ट्राइकों का ढेर लगाकर आप पाकिस्तान को न पटा सकते हैं और न डरा सकते हैं। पाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए भारत को वज्र से अधिक कठोर और कुसुम से अधिक कोमल बनना पड़ेगा। यह कैसे किया जाए, इस पर फिर कभी! द्विपक्षीय संबंधों के अलावा भारत का जोर इस बात पर भी होना चाहिए कि दुनिया के पांचों महाद्वीपों में जितने भी क्षेत्रीय संगठन हैं, उनसे अपने संबंध वह गहरे बनाए। अपने पड़ोसी देशों के साथ खास तौर से! यदि दक्षेस लंगड़ाता रहे तो भारत यह कर सकता है कि म्यांमार, ईरान, मॉरिशस और मध्य एशिया के पांचों गणतंत्रों को मिलाकर 15 देशों का नया आर्य महासंघ (प्राचीन आर्यावर्त की तरह) खड़ा कर दे या दक्षेस का ही विस्तार कर दे। बृहद दक्षेस! पाकिस्तान उसमें शामिल होना चाहे तो जरूर आए वरना उसके बिना भी इसे चलाया जाए। जब यह क्षेत्रीय संगठन यूरोपीय संघ और आसियान से भी अधिक सांमजस्यपूर्ण और संपन्न होगा तो जिस त्रिमूर्ति का मैंने ऊपर जिक्र किया है, वह भारत के पास दौड़ी चली आएगी।
Concluding mark:
सांस्कृतिक दृष्टि से देखा जाए तो भारत दुनिया में बेजोड़ है। भारत यदि अपनी विदेश नीति की तलवार पर संस्कृति की धार चढ़ा दे तो वह दुनिया के बहुत-से छल-छिद्रों को चुटकियों में काटकर फेंक सकता है। इसे मैं पंच-भकार की विदेश नीति कहता हूं। आपने चार्वाक ऋषि के पंच मकारों के बारे में सुना होगा। मेरे पंचभकार ये हैं- भाषा, भूषा, भेषज, भोजन और भजन। भेषज और भोजन में योग और आयुर्वेद शामिल हैं। भजन का अर्थ हैं, संगीत। भूषा याने वस्त्र और भाषा याने संस्कृत और अन्य भारतीय भाषाएं। उन भाषाओं में दिया गया शाश्वत ज्ञान ! इन पांचों साधनों के जरिये भारत दुनिया के करोड़ों लोगों को नया जीवन-दान ही नहीं देगा, बल्कि अरबों-खरबों डाॅलरों की कमाई भी करेगा। इस समय दुनिया को नए रास्ते की तलाश है। विदेश नीति के जरिए भारत दुनिया को यह नया रास्ता दिखाएगा।