# द टेलीग्राफ की संपादकीय
कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में चल रहे राजनीतिक टकराव के चलते वहां भारी हिंसा का खतरा पैदा हो गया है. यह खतरा अब और भी बड़ा हो गया है क्योंकि राष्ट्रपति जोसेफ कबीला पद छोड़ने से इनकार कर चुके हैं. वे विपक्ष की जरा भी सुनने के लिए तैयार नहीं दिखते|
जातीय हिंसा अभी भी
- कांगो के कई हिस्से अब भी उस जातीय हिंसा की आग की चपेट में हैं जिसकी लपट 1990 के दशक में पड़ोसी रवांडा से यहां आई थी.
- अभी भी रवांडा के हुतु या नंदे नाम के उग्रवादी गुट कांगो की सीमा के भीतर आकर हमले और लूटपाट करते हैं. इन कवायदों का मकसद जमीन पर कब्जे करना होता है.
- इसके अलावा युगांडा के विद्रोही समूह एलाइड डेमोक्रेटिक फोर्सेज की समस्या भी है ही. कई नरसंहारों को अंजाम देने वाला यह संगठन इस इलाके में शरीयत कानून चलाना चाहता है.
- ऊपर से अब कांगों की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों और सेना के बीच हो रही झड़पें हिंसा की इस लहर का दायरा और फैला रही हैं. बल्कि ऐसा लगता है कि राजनीतिक उथल-पुथल ने जैसे विद्रोही समूहों, उग्रवादी संगठनों और सेना को मनमर्जी से काम करने का लाइसेंस दे दिया है
इनमें से हर एक अपने संकीर्ण हितों की रक्षा के लिए लड़ रहा है. कबीला की जिद है कि चुनाव कम से कम 2018 तक टाले जाए. विपक्ष ऐसा न होने देने पर अड़ा हुआ है. यह सब देखते हुए आशंका है कि आने वाले दिनों में कांगो में हिंसा बढ़ सकती है.
कई अफ्रीकन देश इसी से गुजर रहे है
- अफ्रीका के कई देशों में सरकारों के मुखिया या तो चुनाव टाल रहे हैं या फिर चुनाव के नतीजों को मानने से इनकार कर रहे हैं.
- चुनाव करवाए भी जा रहे हैं तो इसलिए कि लंबे समय से राज कर रहे तानाशाहों को जनता की मंजूरी मिलने की औपचारिकता पूरी की जा सके.
ताजा उदाहरण गांबिया का है. जिंबाब्वे में 92 साल के रॉबर्ट मुगाबे फिर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो तानाशाह लोकतंत्र की आड़ ले रहे हैं और जनता पर जुल्म ढाकर अपनी सत्ता बनाए हुए हैं. इस काम में वे सेना की मदद लेते हैं जो लूट की साझीदार होती है.
और इसका सीधा असर अफ्रीका के कई देशों में गरीबी, निरक्षरता और पिछड़ेपन के भयानक स्तर में दीखता है | ताकतवर और भ्रष्ट नेतृत्व की यह जकड़ तोड़ना मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं. कांगो में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल दिखाती है कि अफ्रीका में तानाशाही अब उतनी आसान नहीं रही जैसी वह पहले हुआ करती थी. अंतरराष्ट्रीय समुदाय पहले ही कबीला सरकार पर प्रतिबंधों की चेतावनी दे चुका है. इसमें अगर विपक्ष की दृढ़ता भी मिल जाती है तो हो सकता है कबीला सुधर जाएं