एकध्रुवीय विश्व में बहु- ध्रुवीयता की झलक

- बहुतों ने मान लिया था कि 1980 के दशक के अंत में सोवियत सत्ता के टूटने के साथ ही शीतयुद्ध का समापन हो गया था। इसी के साथ दोध्रुवीय विश्व के बजाय एकध्रुवीय विश्व की बातें कही जाने लगी थीं।

- कोई एक दशक पहले चीन के उभार की परिघटना ने कुछ हद तक इस दृष्टिकोण को बदला। 2008 की मंदी के बाद अमेरिका की ताकत घटी और चीन के नेतृत्व में उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का हस्तक्षेप बढ़ा।

- अब एक और नई परिघटना को वैश्विक पटल पर उभरता देख रहे हैं। यह है 24 साल बाद फिर एक सामरिक महाशक्ति के रूप में रूस का क्रमिक उभार, जो अमेरिका को खुली चुनौती देने के लिए तैयार है। 
- वर्चस्व की इस लड़ाई का संघर्षस्थल बना हुआ है सीरिया, जहां रूस ने इस्लामिक स्टेट के खिलाफ मोर्चा खोल लिया है। अमेरिका अभी भी सुनिश्चित नहीं है कि उसके नियंत्रण से बाहर जा चुके इस आतंकी संगठन की लगाम कसे या अपनी पश्चिम एशिया नीति के महत्वपूर्ण आयाम की तरह उसे इस्तेमाल करे। अमेरिका के इसी असमंजस को रूस ने समझा और इस्लामिक स्टेट पर धावा बोल दिया।

- हालांकि आज रूस दुनिया में उतनी बड़ी ताकत तो नहीं बन पाया है, जितना कि कभी सोवियत संघ हुआ करता था, लेकिन उसके इरादे जाहिर हैं। व्लादीमीर पुतिन के नेतृत्व में अमेरिका को चुनौती देने के खेल की शुरुआत रूस ने अपनी नाक के नीचे यानी यूक्रेन में की थी। 
- इससे भड़के पश्चिमी जगत ने रूस पर अनेक आर्थिक प्रतिबंध लाद दिए और जी-8 देशों के समूह से भी उसे निष्कासित कर दिया। कच्चे तेल की कीमतें नीचे रखने का भी खेल किया गया, इससे रूस की अर्थव्यवस्था कमजोर हुई।

- लेकिन इसके बावजूद पुतिन के हौसले तोड़े नहीं जा सके और अब वे सीरिया में एक नई भूमिका के साथ मौजूद हैं। रूस सीरिया में बशर अल असद का समर्थन कर रहे हैं, जबकि माना जाता है कि सीरियाई गृहयुद्ध अमेरिका की शह पर असद को कमजोर करने के लिए चलाया जा रहा है। दुनिया में रूस का रुतबा इस बात से बढ़ा है कि जिस इस्लामिक स्टेट को अमेरिका द्वारा काबू के बाहर बताया जा रहा था, उसकी नकेल कसने की शुरुआत उसने की है।

- आज दुनिया में चल रहे इस ग्रेट गेम के तीन बड़े खिलाड़ी हैं : व्लादीमीर पुतिन, शी जिनपिंग और बराक ओबामा। ये तीनों अलग-अलग खेल खेल रहे हैं, लेकिन उनके हितों का परस्पर टकराव दिलचस्प समीकरण निर्मित कर रहा है। मध्यपूर्व की राजनीति में अमेरिका का हस्तक्षेप हमेशा से ही निर्णायक रहा है। अब दमिश्क में बमबारी करके रूस वहां अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है।

- इसके बावजूद पुतिन के लिए राह इतनी आसान नहीं है। न तो उनके पास हथियारों का वैसा जखीरा है, जैसा पश्चिमी ताकतों के पास है। और न ही घर में उन्हें एकतरफा समर्थन हासिल है।

- हम यह भी न भूलें कि मंदी में लड़खड़ाने के बाद अमेरिका संभला है और आज भी वह दुनिया में सबसे बड़ी ताकत है। इधर चीन की अर्थव्यवस्था डगमगाई है और रूस के सामने अपनी घरेलू समस्याएं हैं।

- 1945 से 1990 तक चला पहला शीतयुद्ध स्पष्टतया दोध्रुवीय था। लेकिन अब संघर्षों के जो नए मोर्चे खुल रहे हैं, उससे लग रहा है कि शायद आने वाले समय में हम एक बहुध्रुवीय शीतयुद्ध घटित होते देखें। अमेरिका, रूस और चीन के रूप में इसके तीन ध्रुव तो हमारे सामने साफ हैं ही।

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