एच-1बी वीजा और भारत

क्या है H-1 B visa

  • एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा है जो  किसी कर्मचारी को अमेरिका में छह साल काम करने के लिए जारी किया जाता है
  •  अमेरिका में कार्यरत कंपनियों को यह वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है जिनकी अमेरिका में कमी हो.
  • इस वीजा के लिए कुछ शर्तें भी हैं. जैसे इसे पाने वाले व्यक्ति को स्नातक होने के साथ किसी एक क्षेत्र में विशेष योग्यता हासिल होनी चाहिए| साथ ही इसे पाने वाले कर्मचारी की सैलरी कम से कम 60 हजार डॉलर यानी करीब 40 लाख रुपए सालाना होना जरूरी है
  • इस वीजा की एक खासियत भी है कि यह अन्य देशों के लोगों के लिए अमेरिका में बसने का रास्ता भी आसान कर देता है, एच-1बी वीजा धारक पांच साल के बाद स्थायी नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं
  • इस वीजा की मांग इतनी ज्यादा है कि इसे हर साल लॉटरी के जरिये जारी किया जाता है. एच-1बी वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस और टेक महिंद्रा जैसी करीब 100 भारतीय आईटी कंपनियों के अलावा माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां भी करती हैं.

इसका विरोध क्यों

  • अमेरिकियों का मानना है कि कंपनियां इस वीजा का गलत तरह से इस्तेमाल करती हैं. उनकी शिकायत है कि यह वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को जारी किया जाना चाहिए जो अमेरिका में मौजूद नहीं हैं, लेकिन कंपनियां इसका इस्तेमाल आम कर्मचारियों को रखने के लिए कर रही हैं. इन लोगों का आरोप है कि कंपनियां एच-1बी वीजा का इस्तेमाल कर अमेरिकियों की जगह कम सैलरी पर विदेशी कर्मचारियों को रख लेती हैं.
  • इस वीजा के गलत इस्तेमाल को लेकर भारतीय आईटी कंपनियों पर भी आरोप लगते रहे हैं. 2013 में भारतीय आईटी कंपनी इंफोसिस को ऐसे ही एक मामले को लेकर करीब 25 करोड़ रुपए का जुर्माना देना पड़ा था
  • अमेरिका में पिछले काफी समय से यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा भी रहा है और चुनाव के समय पार्टियां इस पर शिकंजा कसने को लेकर वादे भी करती हैं. पिछले साल हुए चुनावों में डोनाल्ड ट्रंप ने इसे एक बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया था. ट्रंप ने अपनी कई रैलियों में इस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात भी कही थी

why cause of worry for India

  • प्रमुख IT  कंपनियों का करीब 60 फीसदी राजस्व यानी रेवेन्यू अमेरिका से आता है. साथ ही ये सभी कंपनियां बड़ी संख्या में एच-1बी वीजा धारकों से काम करवाती हैं.
  • हर साल दिए जाने वाले कुल 85000 एच-1बी वीजा में से 60 फीसदी भारतीय कंपनियों को दिए जाते हैं. एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में इंफोसिस के कुल कर्मचारियों में 60 फीसदी से ज्यादा एच 1बी वीजा धारक हैं. इसके अलावा वाशिंगटन और न्यूयॉर्क में एच-1बी वीजा धारकों में करीब 70 प्रतिशत भारतीय हैं.
  • यदि अमेरिका में एच-1बी वीजा दिए जाने के नियमों में कोई बदलाव किया गया तो इससे सबसे ज्यादा भारतीय इंजीनियर और भारतीय कंपनियां प्रभावित होंगी. साथ ही इसका बुरा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. पिछले दिनों भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा था, ‘अगर अमेरिका में एच-1बी वीजा नियम कड़े किये जाते हैं तो इसका सबसे ज्यादा असर भारत की जीडीपी पर पड़ेगा और जो हमने 8-10 फीसदी की जीडीपी का लक्ष्य निर्धारित किया है उसे हम हासिल नहीं कर पाएंगे.’
  • भारतीय जीडीपी में भारतीय आईटी कंपनियों का योगदान 9.5 प्रतिशत के करीब है और इन कंपनियों पर पड़ने वाला कोई भी फर्क सीधे तौर पर अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा. 

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