अमृतसर में संपन्न ‘हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन’ में एक स्वर से आतंकवाद को दक्षिण एशिया में शांति, स्थिरता और सहयोग के रास्ते में सबसे बड़ा खतरा बताया गया। पहली बार सम्मेलन के घोषणापत्र में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद का जिक्र किया गया है।
- घोषणापत्र में कहा गया कि हम आतंकवाद के हर रूप के खात्मे के लिए आपसी सहयोग को मजबूत करने का पुरजोर आह्वान करते हैं। इसमें आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाहों को नष्ट करना और आतंकवाद को मिलने वाली वित्तीय और सामरिक सहायता के रास्तों को खत्म करना शामिल है।
- भारत से भी ज्यादा बढ़-चढ़कर अफगानिस्तान ने इशारों में कहा कि उसके यहां आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान अहम भूमिका निभा रहा है। राष्ट्रपति अशरफ गनी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित करीब 30 संगठन अफगानिस्तान में अपने पांव जमाने की कोशिश में हैं।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकी नेटवर्कों को उखाड़ फेंकने की जरूरत बताई। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने भी इस सम्मेलन में शिरकत की। अफगानिस्तान के मामले में पाकिस्तान खुद को सक्रिय दिखाना चाहता है। वहां की फौज मानती आई है कि भारत से लड़ाई होने पर उसे अफगानिस्तान की जमीन का भी इस्तेमाल करना पड़ेगा। इसे वहां ‘स्ट्रैटजिक डेप्थ डॉक्ट्रीन’ कहा जाता है। पाकिस्तान की कोशिश इस अवसर का उपयोग भारत-पाक द्विपक्षीय वार्ता के लिए करने की थी। लेकिन भारत ने पहले ही कह रखा है कि जब तक सीमापार से हो रही आतंकी गतिविधियां खत्म नहीं होतीं, तब तक कोई बातचीत नहीं होगी।
=>‘हार्ट ऑफ एशिया' क्या है?
★ 2001 में अमेरिकी हमले के बाद ‘हार्ट ऑफ एशिया’ ग्रुप का गठन अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए किया गया था। चीन, ईरान, भारत और पाकिस्तान सहित 14 देश इस समूह के सदस्य हैं।
- बाद में इसकी चिंताओं का दायरा बढ़ा दिया गया। अब इसमें चरमपंथ, ड्रग्स कारोबार, गरीबी और कट्टरपंथ पर अंकुश लगाने जैसे विषयों पर भी चर्चा होती है। इसके सदस्यों के अलावा अमेरिका सहित 20 से ज्यादा अन्य देश भी इसमें सहयोगी भूमिका निभा रहे हैं।
-जाहिर है, विश्व बिरादरी अफगानिस्तान में न सिर्फ अमन-चैन कायम करना चाहती है बल्कि उसका सामाजिक-आर्थिक विकास भी सुनिश्चित करना चाहती है ताकि वह आत्मनिर्भर, आधुनिक और मजबूत देश बन सके। दिक्कत यह है कि अमेरिकी फौजों की वापसी के साथ चरमपंथी वहां फिर से सिर उठाने लगे हैं। उनकी इस कोशिश को पाकिस्तान से पूरा सहयोग मिल रहा है।
=> अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में भारत का योगदान :-
-भारत शुरू से ही अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगा हुआ है। दरअसल मध्य एशिया तक पहुंच बनाने के लिए ईरान और अफगानिस्तान का साथ हमारे लिए बहुत जरूरी है।
- चाबहार पोर्ट के तैयार हो जाने के बाद न सिर्फ भारत और ईरान के आपसी व्यापार में आसानी होगी, बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों तक हमारे सामानों का आना-जाना भी आसान होगा।
- संसद का निर्माण, अस्पतालों और स्कूलों का निर्माण, बांध आदि के निर्माण, वहां के विद्यार्थियों को भारत में अध्यापन हेतु स्कालरशिप आदि की उपलब्धता।