सहयोग संभावनाएं: भारत और इजरायल

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भारत और इजरायल के बीच कूटनयिक संबंध 1992 में स्थापित हुए। उसके बाद से दोनों देश निरंतर बहुआयामी साझेदारी का हिस्सा बने हैं। नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जो इजरायल की यात्रा पर गए हैं।

  • इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के साथ उनकी मुलाकात के बाद यह माना जा सकता है कि वृहद आर्थिक प्रबंधन, व्यापारिक उदारीकरण, पर्यावरण संरक्षण और निवेश के मोर्चे पर दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और अधिक गहरा होगा
  • यह मुलाकात द्विपक्षीय कारोबार और निवेश को भी बढ़ावा देगी जो अन्यथा ठहरा रहा है। उदाहरण के लिए दोनों देशों के बीच रक्षा संबंधों में विस्तार की पूरी गुंजाइश है।
  • तथ्य यह है कि भारत दुनिया में रक्षा उपकरणों के सबसे बड़े आयातकों में से एक है और इजरायल दुनिया के सबसे बड़े चार निर्यातकों में शामिल है। इससे यह संकेत साफ है कि यह गठजोड़ भविष्य में और अधिक मजबूत हो सकता है।
  • दोनों देशों के बीच रक्षा और आतंकवाद उन्मूलन कार्रवाई के लिए ड्रोन और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में सहयोग की मदद से आपसी रिश्तों को और मजबूत किया जा सकता है। लेकिन राजनयिक और सामरिक रिश्तों से इतर मोदी की तीन दिवसीय इजरायल यात्रा और अधिक फलदायी हो सकती है, बशर्ते कि यह खेती और जल प्रबंधन तकनीक जैसे क्षेत्रों में भी द्विपक्षीय सहयोग पर ध्यान दे। ये वे क्षेत्र हैं जहां इजरायल को भारी बढ़त हासिल है।

Other areas of cooperation

  • पानी का किफायती इस्तेमाल और खारे और खराब पानी का पुनर्चक्रण वह क्षेत्र है जिसमें दोनों देश साझा सहयोग कर सकते हैं। करीब सात दशक पहले जब इजरायल का गठन हुआ तब वहां पानी की भारी कमी थी। उसके भूभाग का 60 फीसदी हिस्सा रेतीला था और बाकी हिस्सा एकदम शुष्क। बारिश में भी लगातार कमी आ रही थी। इसके बावजूद इजरायल ने न केवल अपनी बढ़ती आबादी के लिए जरूरत का पानी जुटाया बल्कि अपने पड़ोसी मुल्कों को पानी का निर्यात करना भी शुरू किया। इजरायल ने खारे समुद्री जल को मीठा बनाया। अब उसकी कुल खपत में एक तिहाई पानी ऐसा ही है। उसने ऐसी तकनीक विकसित की हैं जिसकी मदद से हवा से पानी खींचकर उसे ऐसे स्थानों पर ले जाया जाता है जहां ताजे पानी की कमी है। भारत में ऐसी अनेक जगह हैं और ये तकनीक भारतीयों की पेय जल संबंधी जरूरतों को पूरा कर सकती हैं।
  • इसी तरह जब प्रधानमंत्री ने भारतीय कृषिविदों को कम पानी और अधिक फसल का नारा दिया तो यह बात जानना जरूरी है कि इजरायल ने कम से कम कीटनाशकों, उर्वरकों आदि के इस्तेमाल से अधिक से अधिक फसल उगाने में विशेषज्ञता हासिल की है।
  •  इजरायल की विशेषज्ञता की मदद से भारत कृषि उत्पादकता में जबरदस्त इजाफा कर सकता है। भारत-इजरायल कृषि परियोजना पहले से ही चल रही है। उसमें ऐसी कृषि तकनीकों का प्रदर्शन किया गया है। बहरहाल, इसका प्रभाव मोटे तौर पर छोटी जगहों तक सीमित है क्योंकि इन प्रौद्योगिकी में भारी पूंजी की आवश्यकता होती है। इसकी एक वजह यह भी है कि भारतीय कृषि प्रसार एजेंसियां किसानों तक इसका ज्ञान सही ढंग से पहुंचा नहीं पातीं।
  • इसके अतिरिक्त कई छोटे और सीमांत किसान, जिनको ऐसी तकनीक की सबसे अधिक आवश्यकता है, वे इन्हें नहीं आजमा पाते हैं क्योंकि इनमें शुरुआती निवेश बहुत ज्यादा है। भारतीय कृषि शोध संस्थान ड्रिप सिंचाई और अन्य सूक्ष्म सिंचाई व्यवस्थाओं को सस्ता बनाने पर काम कर रहे हैं ताकि वे किसानों को सहज उपलब्ध हों। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री की यह यात्रा संयुक्त भारत इजरायल प्रयास का सबब बनेगी और यह रिश्ता देश के किसानों को बेहतरीन तकनीकी सहयोग दिलाएगा। जिसकी कमी फिलहाल उनको खल रही है
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