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Glimpse in History
पश्चिम एशिया की हर छोटी-बड़ी उथल-पुथल भारत में सिहरन पैदा करती रही है। यही तब भी हुआ था, जब इराक ने कुवैत पर कब्जा जमा लिया था। रातोंरात काम करने वाले भारतीयों को वहां से निकालना पड़ा था। यह काम भारत ने सफलता के साथ तो किया ही था, साथ ही देश के इतने सारे लोगों को एक साथ निकालने के मामले में विश्व रिकॉर्ड भी बना लिया था। यही पश्चिम एशिया से थोड़ी सी दूरी पर बसे लीबिया के गृह युद्ध के दौरान भी करना पड़ा था। और कुछ समय पहले यही काम इराक के उन हिस्सों में भी करना पड़ा, जहां इस्लामिक स्टेट के उग्रवादियों ने कब्जा जमा लिया था। यह आखिरी वाला काम ज्यादा कठिन था, लेकिन सफलता इसमें भी मिली।
Current context:
फिलहाल कतर में जिस तरह का संकट खड़ा हुआ है, उसमें यह तो नहीं कहा जा सकता कि वहां रह रहे साढ़े छह लाख से अधिक भारतीयों को तुरंत निकालना पड़ेगा। लेकिन वहां जो संकट खड़ा हुआ है, उससे इन लोगों के परिवार वालों के माथे पर चिंता की लकीरें जरूर खिंच गई हैं।
Ø संकट भले ही फिलहाल गहरा न हो, लेकिन एक बात तय है कि सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, लीबिया और मालदीव के कतर से सभी तरह के संबंध तोड़ लेने के बाद अब वहां आना-जाना पहले की तरह सुविधाजनक नहीं रह जाएगा।
Ø इसी के साथ, अगर मौजूदा संकट किसी तरह से गहराता है, तो हमें वहां से सभी भारतीयों को सुरक्षित निकालने की तैयारी भी रखनी होगी।
Ø हालांकि सऊदी अरब का आरोप है कि कतर इस्लामिक स्टेट, मुस्लिम ब्रदरहुड, अल कायदा और शिया अतिवादियों का समर्थन कर रहा है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कतर अब चरमपंथियों के चंगुल में फंस रहा है। सच तो यह है कि अतिवाद को आर्थिक मदद देने का आरोप जितना कतर पर है, उतना ही वह सऊदी अरब पर भी है और उतना ही संयुक्त अरब अमीरात पर भी। यह भी कहा जाता है कि यह आर्थिक मदद इसलिए दी जाती है कि ये कट्टरपंथी उनकी सीमा के बाहर ही रहें।
आम धारणा यही है कि ताजा झगड़े की जड़ यह उग्रवाद नहीं, बल्कि क्षेत्रीय राजनीति है। कहा जाता है कि कुछ समय पहले कतर के शासकों ने कई मामलों में ईरान की तारीफ करनी शुरू कर दी थी, जिससे कई पड़ोसी देश उनसे चिढ़ गए। हालांकि यह तनाव किसी युद्ध की भूमिका हो, इसकी आशंका फिलहाल नहीं दिखती।
कतर ऐसी कोई भी स्थिति नहीं चाहेगा, क्योंकि वह अगले विश्व कप फुटबॉल आयोजन की तैयारी कर रहा है। इस्लामिक स्टेट जैसी आतंकी जमात कतर पर काबिज हो जाए, इसकी आशंका इसलिए भी नहीं है कि वहां अमेरिकी सेना ने बाकायदा अपना एक अड्डा बनाया हुआ है।
Opportunity for India:
ऐसे में, जब वहां रह रहे भारतीयों के खतरे बहुत बड़े नहीं हैं, कुछ लोग कतर में नई संभावनाओं के आसार भी देख रहे हैं। उनका मानना है कि ताजा तनाव के बाद कई अरब देशों की कंपनियां कतर से अपने हाथ खींचेंगी, तो भारतीयों के लिए वहां नए अवसर पैदा होंगे। इसके अलावा, यह भी माना जा रहा है कि कतर के अलग-थलग पड़ जाने से भारत को वहां से पेट्रोलियम पदार्थ ज्यादा आसान शर्तों पर मिल सकते हैं। वैसे भी भारत कतर का बड़ा व्यापारिक सहयोगी है। दोनों के बीच 18 अरब डॉलर का व्यापार हो रहा है। कतर के प्राकृतिक गैस उत्पादन का 15 फीसदी भाग अकेले भारत ही खरीद लेता है। भारत की कई बड़ी कंपनियां कतर में सक्रिय हैं और आने वाले दिनों में यह सक्रियता और बढ़ सकती है। कतर या किसी दूसरे देश में कोई संकट हो या न हो, हमें वहां रह रहे भारतीयों की सुरक्षा के लिए तैयारियां पूरी रखनी होंगी और हमेशा रखनी होंगी।