-तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्मित चीन की सबसे बड़ी पनबिजली परियोजना ‘जाम हाइड्रो पॉवर’ (जांगमू हाइड्रोपावर) शुरू हो चुकी है.
- जांगमू के अलावा चीन कुछ और बांध बना रहा है जिनका उल्लेख ब्रह्मपुत्र पर बने भारत के एक अंतर-मंत्रालय विशेषज्ञ समूह ने भी किया था. जिएशू, जांगमू और जियाचा नाम के ये बांध एक दूसरे से 25 किलोमीटर के दायरे में और भारतीय सीमा से 550 किलोमीटर की दूरी पर हैं.
- चीन द्वारा ब्रह्मपुत्र नदी पर बांध बनाए जाने से भारत में नदी के बहाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना हैI
- भारत सरकार द्वारा आधिकारिक द्विपक्षीय वार्ताओं में इसे उठाया गया था. लेकिन चीन ने कोई संतोषजनक कदम अब तक नहीं उठाया, बल्कि भारत की चिंताओं को खारिज करते हुए उसने जवाब दिया था कि ये ‘रन-अफ-द-रिवर’ परियोजनाएं हैं, जिनका डिजाइन पानी के भंडारण के लिए नहीं किया गया है.
- पर्यावरणविदों के तर्क और शंकाएं इसके विपरीत हैं. उनका मानना है कि चीन की इस परियोजना से भारत और बांग्लादेश दोनों ही जगहों पर बाढ़ और भूस्खलन का खतरा अब बढ़ जाएगा. यही नहीं, ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह के साथ छेड़छाड़ का असर असम और अरुणाचल प्रदेश समेत पूरे उत्तर-पूर्व क्षेत्र पर पड़ेगा.
- दरअसल ब्रह्मपुत्र (सांगपो-ब्रह्मपुत्र) ‘ट्रांस-बाउंड्री नदी’ है; इसलिए इस पर बनने वाले बांध या इसकी धारा में किसी तरह का अवरोध अथवा परिवर्तन नीचे के क्षेत्रों पर प्रभाव अवश्य डालेगा.
- इसलिए भारत को अपने सामरिक हितों को ध्यान में रखते हुए ही आगे की रणनीति तय करनी चाहिए.
=> चीन क्यों बना रहा है बांध :-
- दरअसल, चीन ने अपने औद्योगिक विकास के कारण प्रकृति को काफी क्षति पहुंचाई जिसके कारण उसकी कई नदियां जलविहीन हो चुकी हैं. उसकी यांग्त्ज नदी, जो कि एशिया की सबसे बड़ी नदी है, भी पिछले पचास वर्षों में सूखेपन की शिकार हुई है.
- इसका मूल कारण है प्यासे उत्तरी चीनी पठार को साउथ-नार्थ ट्रांसफर प्रोजेक्ट के जरिए पर्याप्त पानी मुहैया कराना. उसकी नीतियों के कारण तिब्बत के 46 हजार ग्लेशियर संकट की चपेट में आ गये और बीस प्रतिशत हिमनद पीछे सरक गये.
- इसी को देखते हुए वांग गुआंगक्यिान के नेतृत्व में चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंस वैज्ञानिकों ने चीनी सरकार के समक्ष प्रस्ताव रखा था कि यांग्त्ज की सहायक नदियों से परे जाने की जरूरत है यानी यांग्त्ज के बजाय और यारलंग-शांगपो (ब्रह्मपुत्र) की धारा को परिवर्तित किये जाने की आवश्यकता है.
- इस संदर्भ में भी तर्क रखा गया था कि यारलंग-शांगपो/ब्रह्मपुत्र को महान मोड़ के पास से परिवर्तित न करके पुराने चीनी पठार से परिवर्तित किया जाए जिसे लाल राष्ट्रवादी ली लिंग ने अपनी पुस्तक ‘तिब्बत्स वॉटर विल सेव चाइना’ में चिह्नित किया था. इसका कारण यह था कि यह क्षेत्र समुद्र तल से 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जहां से इस नदी के पानी को पम्प करना आसान होगा.
- चीन के नेता यह भली भांति जानते हैं कि उनके ‘थ्री गार्ज डैम’ भूगर्भिक, मानवीय और पारिस्थितिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं. इसका मतलब तो यही हुआ कि चीन के तर्क झूठे हैं. वैसे चीन द्वारा आरम्भ की जाने वाली महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में यह परियोजना उस अभियान का आरम्भिक हिस्सा है, जो उसने तिब्बत के पानी के विशाल भंडारों पर अपने नियंत्रण के लिए शुरू की है.
- अगर चीन इस दिशा में यों ही धता बताते हुए आगे बढ़ता रहा तो वह आगे चलकर भारत, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, थाईलैंड, लाओस, कम्बोडिया और वियतनाम जैसे देशों के साथ भू-सामरिक सौदेबाजी पर भी उतर सकता है.
- कुछ अध्ययनों पर नजर डालें तो यह संकेत मिलता है कि इन झांगम या थ्री गार्जिस बांध के पीछे चीन का उद्देश्य केवल आर्थिक नहीं, बल्कि भू-सामरिक भी है. इसके पीछे चीन की एक योजना यह है कि वह ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को पम्प करके उत्तरी चीन की मृतप्राय हो चुकी हुआंग हो (येलो रिवर) को जिंदा करने के साथ-साथ उसे शिंजियांग के मरुस्थल को पानी देना चाहता है.
- स्वाभाविक है इससे भारत के पूर्वोत्तर भाग और बांग्लादेश की मिलने वाले पानी में कमी हो जाएगी. दूसरी तरफ इस परियोजना के पूर्ण हो जाने के बाद चीन की सरकार और चीन की रेड आर्मी ब्रह्मपुत्र के पानी को संघर्ष की स्थितियों में ‘वॉर वीपन’ की तरह भी प्रयुक्त कर सकती है. इसका एक प्रयोग भारत की सेना की आवाजाही के नियंत्रण के लिए भी किया जा सकता है क्योंकि आकस्मात पानी छोड़ना भारतीय सेना को रोक देगा.
- यह जरूरी हो गया है कि भारत ब्रह्मपुत्र-मेकांग देशों के साथ मिलकर चीन के खिलाफ दबाव समूह निर्मित करे. स्वाभाविक है कि भारत को ‘सक्रिय विदेश नीति’ के साथ आगे बढ़ना होगा. सच तो यह है कि अब ‘प्रोएक्टिवनेस’ की जरूरत है क्योंकि नई विव्यवस्था में ‘पोस्ट एक्टिवनेस’ का दौर अप्रासंगिक घोषित हो चुका है.