Trump has announced new Afgan policy which is Marked departure from his precious stand.
#Satyagraha
नई योजना Afgan policy के तहत ट्रंप प्रशासन अब अपने 4000 और सैनिकों को अफगानिस्तान में तैनात करेगा ताकि वे अफगान सुरक्षाबलों को प्रशिक्षित कर सकें
Analyzing the Afgan policy
ट्रंप की यह नई नीति बिलकुल सही मानी जा सकती है क्योंकि अफगानिस्तान से अगर जल्दबाजी में अमेरिकी सैनिकों की वापसी होती है तो इससे आतंकवादियों को बिना किसी रोक-टोक के कार्रवाई करने का मौका मिल जाएगा. इस दौरान यहां इस्लामिक स्टेट (आईएस) भी अपनी जड़ें मजबूत कर सकता है. ओबामा प्रशासन द्वारा सैनिकों को वापस बुलाने के बाद ठीक ऐसा ही इराक में हुआ था और उसी के नतीजे में आईएस जैसे घातक संगठन को उभरने का मौका मिला था.
Why Obama policy towards South Asia failed
ओबामा की अफगानिस्तान-पाकिस्तान नीति कई वजहों से कारगर साबित नहीं हो पाई.
- अमेरिका ने सैनिकों की वापसी की समय सीमा पहले ही घोषित कर दी थी. इससे तालिबान को काफी राहत मिली, क्योंकि उसे अब अमेरिकियों की वापसी का ही इंतजार करना था.
- विद्रोह को तब तक नहीं दबाया जा सकता जब तक कि उसकी सुरक्षित पनाहगार नष्ट न कर दी जाए. अफगानिस्तान के विद्रोही गुटों के लिए यह सुरक्षित पनाहगार पाकिस्तान मुहैया कराता है. अफगानिस्तान के मामले में अमेरिका अब तक पाकिस्तान पर कुछ ज्यादा ही निर्भर रहा है और उसकी अफगान नीति की यह बड़ी कमी थी.
ट्रंप ने पाकिस्तान को चेतावनी दी है. अब पाकिस्तान के लिए सबसे बेहतर होगा कि वह पुराना ढर्रा छोड़े और आतंकवादियों को अपने यहां सुरक्षित ठिकाने मुहैया करवाने से बचे. अगर वह ऐसा नहीं करता तो ट्रंप की नई योजना के तहत कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य तरीकों से उसे इसके लिए मजबूर किया जा सकता है. इस तरह लगातार दबाव बनाकर ही अमेरिका को इस क्षेत्र में कुछ नतीजे हासिल हो सकते हैं. यह भी एक अच्छी बात हुई है कि ट्रंप ने अफगानिस्तान की स्थिरता और विकास में भारत की भूमिका स्वीकार की है. इसके साथ उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वे ईरान को उकसाने की कोई कोशिश न करें क्योंकि अफगानिस्तान की स्थिरता में उसकी भी अहम भूमिका रहने वाली है.