दक्षिण एशिया उपग्रह और पडौस नीति

#Business_Standard_Editorial

प्रक्षेपित किया गया दक्षिण एशियाई संचार उपग्रह (जीसैट-9) प्रौद्योगिकी के लिहाज से कोई नए आयाम नहीं छूता। लेकिन इससे यह पता चलता है कि स्वदेशी क्रायोजेनिक तकनीक अब स्थिर हो चली है। कुल 2,230 किलोग्राम वजन वाला यह उपग्रह संचार, आपदा राहत, मौसम के पूर्वानुमान और समुद्री परिवहन की निगरानी जैसे काम करेगा।

 लेकिन यह भारत के अपनी ताकत के सुलझे हुए इस्तेमाल का भी प्रदर्शन करता है। भारत ने पड़ोसी देशों को यह सेवा देकर अपनी प्रतिष्ठा  मजबूत की है।

  • श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान को इसका फायदा मिलेगा।
  • अफगानिस्तान से भी इसके इस्तेमाल को लेकर बातचीत चल रही है।
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पहले भी उपग्रह से ऐसी सेवाएं दी हैं लेकिन भारत की क्षेत्रीय शक्ति बनने की महत्त्वाकांक्षा को लेकर देखा जाए तो जीसैट-9 पड़ोसी अर्थव्यवस्थाओं के अहम क्षेत्रों के आंकड़े जुटाने में मदद करेगा। इससे हासिल होने वाले अधिकांश आंकड़े साझा किए जाएंगे।
  • इन देशों के वैज्ञानिक प्रतिष्ठानों के बीच निकट सहयोग संभव हो सकेगा। 

 क्या सेवाएं उपलब्ध कराएगा :

  • जीसैट-9 कई संचार सेवाओं से लैस है।
  • इसमें शिक्षा और दूरवर्ती चिकित्सा संबंधी टेलीविजन और डायरेक्ट टु होम सेवाएं शामिल हैं।
  •  इस उपग्रह में 12 केयू बैंड ट्रांसपॉन्डर लगे हैं। प्रत्येक साझेदार देश को दूरसंचार सेवाओं के लिए ऐसा कम से कम एक ट्रांसपॉन्डर दिया जाएगा। हालांकि उनको इसके इस्तेमाल के लिए जमीनी सुविधाएं स्वयं जुटानी होंगी।
  • यह उपग्रह अपने साथ रिमोट सेंसिंग तकनीक भी ले गया है ताकि मौसम संबंधी अद्यतन आंकड़े जुटा सके। इसमें भौगोलिक और पृथ्वी से जुड़े आंकड़े शामिल होंगे।
  • इसकी मदद से मौसम का बेहतर अनुमान लगाया जा सकेगा और आपदा प्रबंधन कहीं अधिक बेहतर हो सकेगा। भविष्य में कोई तूफान, भूकंप, बाढ़ या सूनामी आने पर यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • जीसैट-9 देश के जीपीएस और भूसंवद्र्घित नेविगेशन सिस्टम गगन के लिए एक फोर्स मल्टीप्लायर भी ले गया है। इससे गगन की पहुंच में सुधार होगा और अमेरिकी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के मुक्त वाणिज्यिक संकेतक को और अधिक सटीक बनाने में मदद करेगा। ये बेहतर सिग्नल केवल चुनिंदा भारतीय उपयोगकर्ताओं को ही उपलब्ध होंगे। 

 

इससे हम दोहरे उपयोग के क्षेत्र में प्रवेश कर जाएंगे। शायद पाकिस्तान द्वारा जीसैट-9 में साझेदारी से इनकार करने की यह भी एक वजह रही होगी। चीन की मदद से पाकिस्तान के पास पहले ही कई संचार उपग्रह मौजूद हैं। श्रीलंका पर भी यही बात लागू होती है। अफगानिस्तान भारत द्वारा निर्मित एक पुराना उपग्रह प्रयोग में लाता है। बांग्लादेश भी फ्रांस की मदद से अपना संचार उपग्रह स्थापित करने की योजना पर काम कर रहा है। अंतरिक्ष में विशेषज्ञता और क्षमताओं की बात करें तो भारत अपने तमाम पड़ोसी मुल्कों से मीलों आगे हैं। यह बात भारत की मदद कर सकती है। वह इसकी बदौलत अंतरिक्ष संबंधी क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर सकता है। जीसैट-9 पड़ोसियों की मदद की नीति में एक और आयाम जोड़ता है। इसकी मदद से भारत अपने निकटस्थ पड़ोसियों के साथ रिश्ते मजबूत कर रहा है। इसरो ने जीसैट-9 उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिए अपने जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल का इस्तेमाल किया। इसरो ने कूटनीतिक रूप से अहम मिशन के लिए जीएसएलवी का प्रयोग किया जो बताता है कि वह इस तकनीक को लेकर आश्वस्त हो चला है। इसरो को इस दिशा में तेज विकास और आपूर्ति के लिए और अधिक फंड की जरूरत है। आधिकारिक अनुमान के मुताबिक इस परियोजना पर करीब 7 करोड़ डॉलर की लागत आई यानी करीब 450 करोड़ रुपये। यह उपग्रह 12 वर्ष तक काम करेगा। वाणिज्यिक आधार पर देखें तो इस अवधि में यह आसानी से 10,000 करोड़ रुपये मूल्य की सेवा देगा।

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