चीन South China sea के 80 प्रतिशत हिस्से पर अपना दावा करता है..ये इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है..और इस समुद्री रास्ते से हर वर्ष 335 लाख करोड़ रुपये का व्यापार होता है।
- South China sea , प्रशांत महासागर का हिस्सा है और ये इंडोनेशिया से लेकर ताइवान तक 35 लाख वर्ग किलोमीटर के इलाके में फैला है।
- दुनिया भर में समुद्री रास्तों से गुजरने वाले व्यापारिक जहाज़ों में से 33 प्रतिशत जहाज़ आवाजाही के लिए इसी रास्ते का इस्तेमाल करते हैं।
- चीन ये तर्क देता है कि South China Sea में चीन शब्द का इस्तेमाल होता है..इसलिए इस इलाके पर उसका अधिकार है।
- चीन का ये तर्क ना सिर्फ बेतुका है..बल्कि बचकाना भी है..क्योंकि इस तर्क के हिसाब से Mexico की खाड़ी पर मैक्सिको का मालिकाना हक हो जाएगा और पूरे हिंद महासागर यानी Indian Ocean पर भारत का हक हो जाना चाहिए।
- चीन South China Sea पर जो दावा करता है उसका आधार Nine Dash Line हैं।
- Nine Dash Line को 1947 में चीन ने अपने नक्शे में शामिल किया था..और अगर इन रेखाओं को आधार बनाया जाए तो पूरा का पूरा South China Sea चीन का ही हो जाएगा।
- South China Sea पर मलेशिया..ताइवान,,फिलीपींस. वियतनाम और ब्रुनेई भी अपना हक जताते हैं।
- लेकिन इनमें से किसी भी देश ने South China Sea के किसी हिस्से पर अवैध कब्ज़ा नहीं किया.. क्योंकि ये देश चीन की तरह गुंडागर्दी नहीं करते। जबकि चीन अपनी गुंडागर्दी को अपना Exclusive Right यानी विशेषाधिकार मानता है।
- International Court of Arbritation के इस फैसले का असर भारत की समुद्री महत्वकांक्षाओं पर भी पड़ेगा..क्योंकि भारत का 55 प्रतिशत समुद्री व्यापार Strait Of Malcca (मैल्का) के रास्ते होता है. Strait Of Malcca (मैल्का) हिंद महासागर और Pacific Ocean के बीच एक Shipping Channel का काम करता है।
- चीन की ये हार भारत को NSG में एंट्री के लिए जरूरी Discount दिला सकती है..क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय अदालत के फैसले से ये साफ हो गया है कि दूसरों का हक छीनने में माहिर चीन..कभी किसी का सगा नहीं हो सकता..इसलिए संभव है कि NSG की अगली बैठक में चीन अकेला पड़ जाए।
- चीन एक ऐसा देश है..जिसने सभी अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर हस्ताक्षर किए हैं..लेकिन वो इनमें से किसी का भी पालन नहीं करना चाहता। South China Sea भी एक ऐसा ही इलाका है..जहां चीन ने सभी अंतर्राष्ट्रीय नियमों को डुबो दिया है।
- South China Sea के रास्ते पूरी दुनिया का 50 प्रतिशत तेल व्यापार होता है..यानी पूरी दुनिया की ऊर्जा जरूरतों के लिए ये रास्ता किसी Gate Way की तरह है।
- South China Sea के गहरे समुद्र में बहुत बड़ी मात्रा में प्राकृतिक ऊर्जा भंडार भी मौजूद हैं
हालांकि विवाद की वजह से अभी तक यहां खनन का काम शुरू नहीं हो पाया है।
- सैटेलाइट से हासिल की गई तस्वीरों से पता चला है कि चीन ने South China Sea में एक मानव निर्मित द्वीप पर हवाई पट्टी यानी Runway का निर्माण भी किया है।
- आपको बता दें कि चीन उन देशों में शामिल है जिन्होंने United Nations Convention on the Law of the Sea नामक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
- इस समझौते के मुताबिक किसी भी देश के समुद्री किनारे से लेकर 22 किलीमीटर तक के समुद्री हिस्से को उसी देश का भाग माना जाता है।
- जबकि इसके आगे 370 किलोमीटर तक का इलाका EEZ यानी exclusive economic zone कहलाता है।
- ये ऐसा समुद्री इलाका होता है..जिसके संसाधनों पर तो किसी एक देश का अधिकार होता है..लेकिन इस रास्ते से पूरी दुनिया के समुद्री जहाज़ बेरोक टोक आ और जा सकते हैं।
- इनमें नौसैनिक गतिविधियों में इस्तेमाल होने वाले युद्धपोत और जहाज़ भी शामिल हैं..EEZ से गुजरने वाले जहाज़ों को किसी तरह का टैक्स नहीं देना होता है।
- चीन के साथ समस्या ये है कि वो South China Sea में exclusive economic zone से जुड़े कानूनों का पालन नहीं कर रहा है।
- चीन EEZ में किसी देश के Naval Ship को आसानी से दाखिल नहीं होने देता जबकि वो खुद दूसरों के समुद्री इलाकों में घुसपैठ करता रहता है।
- 2014 में चीन ने अमेरिका के हवाई द्वीप समूह के पास अपना जहाज़ जानकारियां जुटाने के लिए भेजा था...और अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत चीन को नहीं रोका...जबकि जब अमेरिका या कोई दूसरा देश अपने युद्धपोत चीन के exclusive economic zone की तरफ भेजता है..तो चीन उसे धमकियां देना शुरू कर देता है।
- चीन की चालाकी का एक और उदाहरण हम आपको देना चाहते हैं..चीन, South China Sea के exclusive economic zone पर हक जताने वाले देशों के साथ एक समझौता करना चाहता है..जिसके तहत वो देश ऊर्जा भंडार का इस्तेमाल तो कर पाएंगे..लेकिन इसके लिए इन देशों को चीन को उसका हिस्सा देना होगा।