वैश्विक शांति और सुरक्षा के सम्मुख चुनौती के रूप में उत्तर कोरिया

- उत्तर कोरिया पिछले एक दशक से विवादों को जन्म देने वाला देश रहा है। 2006 से 2016 के बीच चार बार परमाणु परीक्षण और रॉकेट प्रक्षेपण करके वह सुर्खियों में है। साथ ही ऐसा कहा जा रहा है कि वह पांचवें परमाणु परीक्षण की तैयारी में भी है। उत्तर कोरिया अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद लगातार अपने परमाणु क्षमता को बढ़ाने के दुस्साहस से पीछे नहीं हट रहा है। हालांकि उसका कहना है कि उसने एक उपग्रह को कक्षा में स्थापित करने के लिए रॉकेट छोड़ा है पर इस बात पर विश्वास करना मुनासिब नहीं समझा गया।

- यह माना जा रहा है कि इसके बहाने उसका असल मकसद बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण करना है। माना तो यह भी जाता है कि उत्तर कोरिया के पास छोटे परमाणु हथियार और कम और मध्यम दूरी की मिसाइलें हैं, परंतु जिस प्रकार उसकी हरकतों से विश्व बिरादरी तनाव में है उसे देखते हुए हथियारों के मामले में इसे क्लीन चिट नहीं दिया जा सकता।

- बावजूद यक्ष प्रश्न यही है कि उत्तर कोरिया की इन हरकतों से कैसे निजात पाया जा सकता है। क्या चीन के रहते हुए उस पर कारगर प्रतिबंध लगाना संभव है। संयुक्त राष्ट्र में वीटो देशों के समूह में चीन भी है जिसके अड़ंगेबाजी के चलते प्रतिबंध मुमकिन नहीं है। हालांकि चीन सहित रूस ने मिसाइल परीक्षण की निंदा की है। 
- देखा जाए तो परमाणु परीक्षण रोकने के लिए बीते जनवरी में उत्तर कोरिया ने शांति संधि की मांग की थी जो एक प्रकार से पहले के प्रस्तावों की भांति ही था, जिसमें उसने कहा था कि वह अमेरिका के साथ एक शांति संधि पर हस्ताक्षर करने और अमेरिका व दक्षिण कोरिया के बीच सालाना सैन्य अभ्यास रोकने के बदले अपने परमाणु परीक्षण बंद कर सकता है जिसे अमेरिका ने सिरे से पहले की भांति ही ठुकरा दिया था।

- बदलते हुए अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अपनी सुरक्षा और आत्मविश्वास के लिए कई देश परमाणु सामग्रियों को जुटाने में अनावश्यक ऊर्जा खर्च कर रहे हैं जबकि वे खतरे से या तो बाहर हैं या उसके निशाने से काफी नीचे हैं। असल में किम जोंग अपने निजी समस्याओं के चलते भी इस अंधेरगर्दी पर उतर हुआ है और अंतरराष्ट्रीय ताकतें इस मामले में खुलकर कुछ खास नहीं कर पा रही हैं।

- संयुक्त राष्ट्र परमाणु हथियारों की समाप्ति की कवायद में सत्तर के दशक से लगा हुआ है और उसे फिर एक बार झटका लगा है। इस मामले में सीटीबीटी व एनपीटी जैसी नीतियां देखी जा सकती हैं।

** सीटीबीटी का उद्देश्य है कि कोई भी देश चाहे वह परमाणुशस्त्र धारक है या नहीं, किसी भी तरह का परीक्षण नहीं कर सकता। इस संधि के अनुछेद चार में यह भी है कि संदेह के आधार पर किसी भी देश में जाकर निरीक्षण भी किया जा सकता है। हालांकि भारत सहित कुछ देशों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि यह किसी भी देश की संप्रभुता के विरुद्ध है।

** परमाणु अस्त्र अप्रसार संधि (एनपीटी) भी इसी प्रकार की एक संधि है जिसके अनुछेद छह में यह वर्णित है कि परमाणु शस्त्र संपन्न राष्ट्र परमाणु शस्त्र को समाप्त करने के लिए प्रत्येक 25 वर्ष में इसका निरीक्षण करेंगे जिसे लेकर वर्ष 1995 में सम्मेलन किया गया पर बिना किसी नतीजे के यह अनिश्चितकाल के लिए आगे बढ़ा दिया गया। 
- हालांकि संधियों की परिस्थितियों को देखते हुए भारत सीटीबीटी और एनपीटी दोनों का विरोध करता रहा है।

** उत्तर कोरिया विश्व के लिए बीते पांच साल में तुलनात्मक रूप से कहीं अधिक खतरनाक बनता जा रहा है। इसके पीछे वजह दिसंबर, 2011 में तानाशाह किम जोंग का सत्ता पर काबिज होना है। किम जोंग के अब तक के कार्यकाल की पड़ताल भी यही बताती है कि यहां पर व्याप्त समस्याएं बड़े पैमाने पर बढ़ चुकी हैं। बावजूद इसके किम जोंग इससे बेअसर रहते हुए अपने निजी एजेंडे मसलन परमाणु शस्त्र एवं मिसाइल आदि को तवजो देने में लगा हुआ है। 
- यह बात भी समुचित है कि जब कोई तानाशाह लोककल्याण की अवधारणा से विमुख होता है और लोकतंत्र को मटियामेट कर अनाप-शनाप निर्णय पर उतारू हो जाता है तो ऐसे ही कृत्य उनकी प्राथमिकताओं में होते हैं। भुखमरी, बीमारी और बेरोजगारी समेत अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे उत्तर कोरिया के तानाशाह के दुस्साहस से दुनिया स्तब्ध है।
 

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