करीब 6 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद भारत और जापान के बीच असैन्य परमाणु करार हो गया। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के जापान दौरे के दौरान दोनो देशों के बीच इस समझौते पर मुहर लगी।
Background:
2015 में जापान के पीएम शिंजो अबे भारत आए थे तभी दोनों देशों ने सिविल न्यूक्लियर अग्रीमेंट का फैसला किया था। भारत अब तक अमेरिका समेत 11 देशों के साथ सिविल न्यूक्लियर डील कर चुका है लेकिन जापान से डील खास होगी।
इस करार के कई महत्वपूर्ण मायने हैं-
- बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए जापान के साथ इस तरह का परमाणु समझौता करने वाला भारत पहला देश बन गया।
- परमाणु हमले का दंश झेल चुके जापान के साथ बिना एनपीटी पर दस्तखत किए ये समझौता भारत की परमाणु क्षेत्र में विश्वसनीयता और साख को भी बल देता है।
- परमाणु समझौते के बाद जापान, भारत को परमाणु ईंधन, रिएक्टर और तकनीक की सप्लाई करेगा।
- इस समझौते के बाद दो अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत में परमाणु रिएक्टर की स्थापना करने की राह आसान हो गई। क्योंकी दोनो कंपनियों में जापान के कंपनी की हिस्सेदारी होने के कारण जापान के साथ परमाणु समझौता जरूरी था।
- पेरिस समझौते के तहत भारत 2030 तक जीवाश्म ईंधनों के प्रयोग पर काबू करने को लेकर प्रतिबद्ध है। ऐसे में इस इस समझौते से बिजली उत्पादन के लिए कोयला पर भारत की निर्भरता कम होगी और क्लीन एनर्जी को बढ़ावा मिलेगा।
- भारत ने 2021 तक 14 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन करने का लक्ष्य रखा है, जिसे पूरा करने में इस समझौते से मदद मिलेगी।
भारत और जापान के बीच इस समझौते का कूटनीतिक महत्व भी है। इस समझौते के ज़रिए भारत और जापान के रिश्तों के बीच आई नजदीकियां चीन के लिए चिंता बढ़ा सकती है। चीन एनएसजी में सदस्यता और मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने और पाक को अघोषित मदद पहुंचाने, सीमा पर तनाव पैदा करने जैसी कोशिशों के कारण भारत के लिए परेशानी का सबब बनता रहा है। ऐसे में चीन को अलग-थलग करने की कोशिशों के तहत ये समझौता मील का पत्थर साबित हो सकता है।
साभार : सुमित कुमार झा