- देश में निर्यात की स्थिति गिरती हुई देख भारत सरकार अब यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर स्थगित वार्ता को ज्यादा दिनों तक टालना नहीं चाहती। ऐसे में जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल की शुरू हो रही भारत यात्र भारत व यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत को नए सिरे से बढ़ाने का रास्ता साफ कर सकती है।
-मार्केल की इस यात्र के दौरान जो उचस्तरीय बातचीत होगी उसमें यह मुद्दा गंभीरता से उठेगा कि किस तरह से यूरोपीय संघ और भारत एफटीए के मुद्दे पर मौजूदा संवादहीनता से कैसे आगे बढ़ा जाए।
- यूरोपीय संघ (ईयू) इस समय दो अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों के ब्लाकों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के कगार पर है। एक समझौता (टीपीपी - ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप) अमेरिका के साथ दूसरा (टीटीआइपी- ट्रांसअटलांटिक ट्रेड एंड इनवेस्टमेंट पार्टनरशिप) एशियाई और दक्षिण अमेरिका के विकासशील देशों के दक्षिणी देशों के साथ किया जा रहा है।
- अगर भारत ने यूरोपीय संघ के साथ समझौता करने में अब देरी की तो यूरोपीय संघ के बाजारों पर उक्त देशों के उत्पादों का कब्जा हो सकता है। भारत अभी भी एफटीए के लिए बातचीत शुरू करता है तो इसे अंजाम तक पहुंचाने में दो वर्ष तो लग ही जाएंगे।
- भारत के विचार में बदलाव आने के पीछे एक दूसरी वजह यह है कि मोदी सरकार के कई कार्यक्रमों जैसे मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया में यूरोपीय संघ से होने वाले निवेश की राह मुक्त व्यापार समझौता होने के बाद आसान हो सकती है।
- एफटीए होने से भारत को यूरोपीय संघ से होने वाले निवेशों को ज्यादा वरीयता देना होगा। यही वजह है कि भारत ईयू के साथ एफटीए पर अपनी संवादहीनता खत्म करना चाहता है।
- जर्मनी न सिर्फ यूरोपीय संघ का सबसे मजबूत देश है बल्कि वह भारत का एक महत्वपूर्ण आर्थिक सहयोगी देश भी है। जर्मनी काफी पहले से भारत व यूरोपीय संघ के बीच एफटीए की तरफदारी करता रहा है।
- सनद रहे कि भारत व ईयू के बीच वर्ष 2007 से ही एफटीए को लेकर बातचीत हो रही है। अभी तक 15 दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन कुछ महीने पहले भारत व ईयू में कई मुद्दों पर तनाव हो गया।
- ईयू की तरफ से भारत की कंपनियों की तरफ से निर्मित 700 उत्पादों पर प्रतिबंधित कर दिया और उसके बाद भारत की तरफ से अगस्त, 2015 में होने वाली एफटीए पर द्विपक्षीय बातचीत को रद्द कर दिया गया था।