लोक मंच : तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ (LSTV)
Sarokaar - Religion Vs Gender Equality (RSTV)
Debate Summary By GShindi.com
तलाक एक ऐसा शब्द है जो ना सिर्फ हंसते-मुस्कुराते परिवार के टुकड़े कर देता है बल्कि रिश्तों के मायने भी बदल देता है। हमारे देश में तीन तलाक का ज़हर पीने वाली ना जाने कितनी मुस्लिम महिलाएं हैं जो किसी ना किसी डर की वजह से ख़ामोश रहती हैं और अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को सहती हैं।
Argument of government
- -केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट फाइल किया है जिसमें कहा गया है कि तीन तलाक, निकाह-हलाला और एक से ज़्यादा निकाह कानूनी रूप से सही नहीं है।
- सरकार का कहना है कि चाहे कोई व्यक्ति किसी भी धर्म का हो.. लेकिन उसके संवैधानिक अधिकार बराबर हैं। एक महिला के सम्मान और उसकी गरिमा के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। एफिडेविट में ये भी लिखा है कि अलग-अलग धर्मों के personal law महिलाओं की गरिमा से ऊपर नहीं हो सकते।
- अगर किसी धर्म का Personal law किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन करता है तो वो अवैध है।
तीन तलाक, निकाह-हलाला और एक से ज़्यादा निकाह करना धर्म की मूल भावना के लिए आवश्यक नहीं है।
- निकाह-हलाला की परंपरा के मुताबिक अगर तलाकशुदा दंपती दोबारा निकाह करना चाहे तो पत्नी को पहले दूसरा निकाह करना होगा और फिर उसके दूसरे पति को उसे तलाक देना होगा तभी वो अपने पहले पति से दोबारा निकाह कर सकती है।
- इसके अलावा तलाक-ए-बिदत का मतलब है तीन बार तलाक बोलने से ही तलाक हो जाना जिसको तीन तलाक़ या ट्रिपल तलाक भी कहा जाता है और तीसरी प्रथा है पुरुष एक से ज़्यादा निकाह करने की इजाज़त यानी बहुविवाह।
तीन तलाक़ का ये मुद्दा कुछ महीने पहले एक पीड़ित मुस्लिम महिला की वजह से चर्चा में आया था.. इस महिला का नाम शायरा बानो है और वो उत्तराखंड की रहने वाली हैं। शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी और तीन तलाक की परंपरा पर बैन लगाने की मांग की थी। 29 अप्रैल 2016 को हमने DNA में शायरा बानो की तकलीफ को देश के सामने रखा था और इसके बाद ये मामला आज यहां तक पहुंच गया।
- इस मामले में संविधान के Article 14 और 25 की भावना को समझना बहुत ज़रूरी है.. क्योंकि सरकार के एफिडेविट में संविधान के इन Articles का उल्लेख किया गया है।
- संविधान का Article 14 ये कहता है कि देश के हर नागरिक के अधिकार बराबर हैं जबकि संविधान का Article 25 कहता है कि हर व्यक्ति को अपनी मर्ज़ी से किसी धर्म को मानने और उसका अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है।
- आप ये भी कह सकते हैं कि Article 25 वो ढाल है जिसके पीछे तमाम Personal Laws छिपे हुए हैं लेकिन सरकार ने अपने हलफनामें में एक बात बिलकुल साफ कर दी है कि अगर संविधान के Article 14 और Article 25 के बीच टकराव की स्थिति आती है.. तो Article 14 को प्राथमिकता दी जाएगी।
- संविधान का Article 14 ये कहता है कि महिला हो या पुरुष देश के हर नागरिक के अधिकार बराबर हैं। यानी पर्सनल लॉ के तहत लागू करवाई जाने वाली कोई भी पद्धति या परंपरा किसी महिला या पुरुष से बराबरी का अधिकार नहीं छीन सकती।
- सरकार के 29 पन्ने के एफिडेविट का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि इस हिस्से में संविधान के आर्टिकल 14 और 21 को देश के हर नागरिक के लिए आपके लिए, मेरे लिए, हम सबके लिए.. सबसे महत्वपूर्ण बताया गया है।
- Point No. 6 में कहा गया है.. कि महिलाओं के सम्मान और गरिमा के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
- Point No. 12 में लिखा है देश में पर्सनल Laws की समीक्षा महिलाओं की गरिमा के आधार पर करने की ज़रूरत है।
- Point no. 14 में एक बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी है.. और वो ये है कि तीन तलाक, निकाह-हलाला और एक से ज़्यादा निकाह करना धर्म की मूल भावना को कायम रखने के लिए आवश्यक नहीं है। और ऐसी परंपराओं को संविधान के आर्टिकल 25 का इस्तेमाल एक ढाल की तरह करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।
- पाकिस्तान में 1961 के अध्यादेश के मुताबिक Arbitration Council की इजाज़त के बगैर कोई भी पुरुष दूसरा निकाह नहीं कर सकता।
- अफगानिस्तान में एक साथ तीन बार तलाक़ कहकर तलाक़ लेना गैरकानूनी है। मोरक्को में पहली पत्नी की रज़ामंदी और जज की इजाज़त लिए बगैर दूसरा निकाह नहीं हो सकता।
- ट्यूनीशिया में तीन तलाक़ पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। टर्की में एक से ज़्यादा निकाह करने पर 2 साल की सज़ा दी जाती है।
- इंडोनेशिया में दूसरे निकाह और तलाक के लिए धार्मिक अदालत से इजाज़त लेनी होती है और एल्जीरिया में पुरुष द्वारा तलाक देने के एकतरफा अधिकार को खत्म कर चुका है। वहां तलाक के मामले कोर्ट के ज़रिए ही निपटाए जाते हैं।
- अपने एफिडेविट में सरकार ने ये भी कहा है कि पाकिस्तान सहित कई मुस्लिम देशों ने इस समस्या का समाधान करने के लिए कानून बनाए हैं और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने की कोशिश की है।
- एफिडेविट में लिखा है कि ट्रिपल तलाक की भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में कोई जगह नहीं है। ये महिलाओं के प्रति बहुत बड़ा भेदभाव और अन्याय है।
- यहां शाह बानो केस का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है क्योंकि इससे हमारे देश के राजनीतिक सिस्टम की खोखली सोच का पता चलता है।
- शाह बानो एक 62 वर्ष की मुसलमान महिला थीं जिनके पांच बच्चे थे। शाह बानो को 1978 में उनके पति ने तालाक दे दिया था। शाह बानो ने पति से गुज़ारा भत्ता लेने के लिये अदालत में अपील की।
- इसके बाद जब तक ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, तब तक 7 साल बीत चुके थे। 1985 में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया और शाह बानो के पति को गुज़ारा भत्ता देने का आदेश दिया।
- भारत के रूढ़िवादी मुसलमानों ने इस फैसले का जमकर विरोध किया। उस दौर में ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड नाम की एक संस्था बनाई गई थी।
- पर्सनल लॉ के समर्थकों ने सभी प्रमुख शहरों में आंदोलन करने की धमकी दी थी.. इसके बाद 1986 में राजीव गांधी की सरकार ने एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया।
- अपने इस फैसले को राजीव गांधी की सरकार ने "धर्म-निरपेक्षता" के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया था।