तिल- तिल मरता ‪‎बुंदेलखंड‬ :सूखा, अकाल और सरकारी उपेक्षा के चलते दम तोड़ता बुंदेलखंड"

बुंदेलखंड क्षेत्रफल और जनसंख्या के मामले में श्रीलंका के लगभग बराबर है. ये पूरा इलाक़ा अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी से गुजर रहा है. इलाक़े में लगातार तीसरे साल सूखा पड़ा है. अब चौथे साल इलाक़ा ख़राब पैदावार की समस्या से जूझ रहा है.

- साल 2015 में ख़राब मॉनसून के कारण पहले से ही विशेषज्ञों ने इसके लिए आगाह किया था लेकिन सरकार ने उसपर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया.

- बुंदेलखंड में कुल 13 ज़िले आते हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के छह ज़िले शामिल हैं. ये इलाक़ा अपने रजवाड़ों के लिए विख्यात है. इनमें सबसे मशहूर हैं झांसी की रानी. 1857 में ब्रितानी शासन के ख़िलाफ़ भारतीयों की आजादी की लड़ाई में रानी की बहादुरी के क़िस्से घर घर में मशहूर हैं.

- साल 2011 की जनगणना के अनुसार बुंदेलखंड की आबादी करीब एक करोड़ 83 लाख है. इसका क्षेत्रफल करीब 70 हज़ार वर्ग किलोमीटर है.

=>" विकट सूखे की स्थिति की चपेट में बुंदेलखंड :-
- ये इलाक़ा पहले भी सूखे की चपेट में आता रहा है लेकिन पिछले कुछ दशकों में सूखे की समस्या और गंभीर रूप धारण कर चुकी है. पिछले 15 सालों से ज्यादातर समय ये क्षेत्र सूखे के चपेट में रहा है.

- इसके अलावा बेमौसम की बरसात ने भी इलाक़े के किसानों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है. साल 2014 और 2015 में फ़सल ख़राब होने की प्रमुख वजह बेमौसम बरसात ही रही.

- इस इलाक़े की सबसे बड़ी समस्या पीने और सिंचाई के पानी की भयानक कमी है. हर ज़िले में आम लोगों ने बताया कि उनके गांवों के हैंडपंप और कुओं में पर्याप्त पानी नहीं है. ज्यादातर लोगों का कहना है कि ये स्रोत भी अगले दो-तीन महीनों में खत्म हो जाएंगे.

- एक समय इलाक़े में कई झीलें और तालाब थे. जिनमें से ज्यादातर सूख चुके हैं. कई जगहों पर इन झीलों और तालाबों में ट्यूबवेल लगाने के लिए खुदाई की जा रही थी ताकि जानवरों के लिए पीने के पानी की व्यवस्था की जा सके.

=>"बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन :-
- फ़सल ख़राब होने का पहला असर दिखने लगा है. इलाक़े से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन हो रहा है. गांववालों के अनुसार पलायन करने वालों की संख्या पिछले साल सो दोगुनी हो गयी है.
- कभी उड़द और गेहूं की खेती करने वाले किसान अभी यूपी, दिल्ली और मध्य प्रदेश में ईंट-भट्टों और इमारती कामों में काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं.

- ग़रीब तबके में पलायन की समस्या ज्यादा गंभीर है. टीकमगढ़ गांव के 80 फ़ीसदी आदिवासी पलायन कर चुके हैं. लेकिन पलायन से सबको राहत नहीं मिली. कई लोग दिल्ली और इंदौर जैसे शहरों से गांव वापस आ गए हैं क्योंकि उन्हें वहां नौकरी नहीं मिली.

- इंसानों के साथ जानवरों के लिए भी इस आपदा में भोजन मिलना मुश्किल होता जा रहा है. हमीरपुर चारे की कीमत एक हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुकी है. जबकि पिछले साल इसकी कीमत 500 रुपये प्रति क्विंटल थी. एक क्विंटल चारा चार जानवरों के लिए करीब दो हफ्ते का राशन हुआ.

- प्रकृति की मार को यूपी और एमपी सरकार की अनदेखी ने और त्रासद बना दिया है. दोनों राज्यों ने इलाक़े के सूखा पीड़ित किसानों के लिए जो कुछ किया है ऊंट के मुंह में जीरा ही कहा जा सकता है.
- एमपी में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू है जिसके तहत चिह्नित जरूरतमंदों को सस्ते दर पर अनाज दिया जाता है. लेकिन कई गांववालों ने शिकायत की कि स्थानीय अधिकारियों को घूस न दे पाने के कारण उन्हें ये सस्ता अनाज नहीं मिल पाया.

- साल 2014 में भी सूखा पीड़ित होने के बावजूद दोनों राज्यों ने पर्याप्त कार्रवाई नहीं की थी. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट में दोनों सरकारों को लताड़ लगायी थी. संस्थान ने इलाक़े में बार बार पड़ती सूखे की मार पर दोनों राज्यों के रवैये को 'नजरिये का सूखा' कहा था

- प्रकृति की मार और सरकारों की अनदेखी से धीरे धीरे स्थिति हाथ से बाहर निकलती जा रही है.

- प्रशासन की उपेक्षा के कारण इलाका अब पूरी तरह बारिश पर निर्भर है. अगर बारिश नहीं हुई तो सूखे की हालात और विकट हो जाएगी. बारिश न होने की स्थिति में अगली फसल के लिए अक्टूबर, 2016 तक इंतजार करना होगा.

- सूखा, बारिश और फ़सल के अलावा पिछले कुछ समय में इलाक़े में अपराध में बढ़ोतरी देखी जा रही है. शराबखोरी और आर्थिक तनाव के चलते घरेलू हिंसा की घटनाओं में वृद्धि देखी गयी है.

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download