प्रश्नः पर्यावरणीय नैतिकता से आपका क्या अभिप्राय है? इससे संबंधित प्रमुख मुद्दों का उल्लेख कीजिए तथा साथ ही इन मुद्दों के संभावित समाधान के बारे में भी बताइये।

उत्तरःपर्यावरणीय नैतिकता से तात्पर्य उन मुद्दों से है जो मनुष्य के जीवन और कल्याण के लिए बुनियादी हैं। इसका संबंध न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी से है बल्कि यह भावी पीढ़ी के अतिरिक्त पृथ्वी पर रहने वाले अन्य प्राणियों से भी संबंधित है। वस्तुतः पर्यावरणीय नैतिकता इस बात से संबंधित है कि हम संसाधनों का उपयोग और संसाधनों का वितरण किस प्रकार से करते हैं। यह विचारणीय है कि क्या हम संसाधनों का ऐसा उपयोग कर सकते हैं जिससे किसी को तो केवल जीवित रहने के लिए ही संसाधन मिले जबकि किसी को इतने संसाधन मिले जिससे दूसरा व्यक्ति संसाधनों का अत्यधिक उपयोग करे। संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण के अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं स्थानीय पहलू भी हैं जिन पर ध्यान देना जरूरी है। संसाधनों का समतामूलक वितरण नगरीय, ग्रामीण एवं निर्जनवासी समुदायों के निर्वहनीय विकास का आधार है।
वर्ष 1985 में स्टेटस ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट (Status of India's Environment) नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई। इसमें बताया गया कि अमीर लोग पर्यावरण का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं जबकि इसका खामियाजा गरीब, वंचित वर्ग विशेषकर आदिवासी एवं महिलाएँ भुगत रहे हैं। इसका कारण यह है कि इन लोगों की आजीविका ही पर्यावरण पर निर्भर करती है। अक्सर जब गरीब ग्रामीण समुदाय जलावन के लिए जंगलों से लकड़ी एकत्रित करते हैं तो कहा जाता है कि वनों का विनाश किया जा रहा है किंतु जब अमीर वर्ग भारी मात्रा में इमारती लकड़ी का प्रयोग करता है तो उनके विषय में कुछ नहीं कहा जाता है।
पर्यावरणीय नैतिकता से संबंधित कई मुद्दे हैं जिनमें उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच समानता एवं विषमता का मुद्दा, नगर-ग्राम समानता का मुद्दा, लैंगिक समानता की जरूरत का मुद्दा, भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों के संरक्षण का मुद्दा तथा पशुओं के अधिकार आदि के मुद्दे शामिल किए जाते हैं। उत्तर और दक्षिण के देशों के बीच समानता एवं विषमता से तात्पर्य संसाधनों के असमान स्वामित्व एवं वितरण से है। एक ओर उत्तरी अमेरीका और यूरोप के धनी राष्ट्र हैं तो दूसरी ओर दक्षिण के विकासशील देश हैं। उत्तर के धनी एवं औद्योगिक देश भारी मात्रा में पर्यावरणीय संसाधनों की खपत करते हैं जबकि दक्षिण के विकासशील देश अधिक जनसंख्या के बावजूद पर्यावरणीय संसाधनों का सीमित उपयोग ही करते हैं। इस अन्यायपूर्ण आर्थिक व्यवहार को बदलकर व्यापार का एक नया तथा अधिक न्यायपूर्ण प्रबंध करने की आवश्यकता है। इसके लिए अमीर देशों में रहने वाले लोगों में एक नई सोच का पैदा होना जरूरी है। इसी प्रकार नगर-ग्राम समानता का मुद्दा भी अहम् है। ज्ञातव्य है कि नगरों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ग्रामीण समुदायों की साझी सम्पत्ति का अधिकाधिक उपयोग होता आया है। इस समस्या के हल के लिए नगरवासी अमीरों को समझना होगा कि उनके संसाधन ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं तथा उन संसाधनों की वाजिब कीमत उन्हें ही चुकानी होगी।
लैंगिक समानता का मुद्दा भी पर्यावरणीय नैतिकता से संबंधित है। पूरे भारत में स्त्रियाँ, पुरुषों से अधिक कार्य करती हैं इससे यह प्रश्न उठता है कि एक ग्राम समुदाय के पर्यावरणीय साधनों पर किसका अधिकार होना चाहिए। इसके समाधान के लिए महिलाओं को अधिक अधिकार प्रदान करने होंगे क्योंकि महिलाएँ प्राकृतिक संसाधनों के महत्त्व को पुरुषों से अधिक गहराई से समझती हैं। चिपको आंदोलन जैसे पर्यावरणीय आंदोलनों में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
इसी प्रकार, भावी पीढ़ी के लिए संसाधनों के संरक्षण का मुद्दा है। इसके लिए वर्तमान पीढ़ी को यह समझना होगा कि वे पर्यावरणीय संसाधनों का इस प्रकार से प्रयोग करें ताकि भावी पीढ़ी को भी संसाधन उपलब्ध हो सकें। पर्यावरणीय नैतिकता से संबंधित मुद्दों में पशुओं के अधिकार का मुद्दा भी महत्त्वपूर्ण है। कहने का तात्पर्य यह है कि क्या मनुष्य जैसी केवल एक प्रजाति ही पृथ्वी के उन सभी संसाधनों का अकेले उपयोग और शोषण कर सकती है जिन पर मनुष्य के अतिरिक्त पौधों एवं पशुओं की अरबों प्रजातियों का भी हक हो। इसके लिए मनुष्य को समझना होगा कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग में उसे एकाधिकार नहीं प्राप्त है। उसके साथ अन्य प्राणियों एवं वनस्पतियों को भी प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग का अधिकार प्राप्त है। इसके समाधान में गांधी जी का दर्शन महत्त्वपूर्ण हो सकता है जिसके तहत "मनुष्य अन्य प्राणियों का स्वामी नहीं है, बल्कि वह निम्नतर पशु जगत का न्यासी मात्र है।

Download this article as PDF by sharing it

Thanks for sharing, PDF file ready to download now

Sorry, in order to download PDF, you need to share it

Share Download