गुजरात में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 फीसदी आरक्षण; एक मई को जारी होगी अधिसूचना

पटेल आरक्षण आंदोलन के दबाव के मद्देनजर गुजरात की बीजेपी सरकार ने सामान्य वर्ग में पाटीदारों सहित आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की।
- इस आरक्षण के लिए एक मई को अधिसूचना जारी की जाएगी। इस घोषणा के अनुसार छह लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवार आरक्षण के पात्र होंगे।

★ज्ञात हो कि इस फैसले के बाद गुजरात देश का पहला राज्य बन गया है जहां आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए आरक्षण का फैसला किया गया है। 
★सरकार इसके लिए ऑर्डिनेंस लेकर आएगी। सरकार का ऑर्डिनेंस आने से शिक्षा और नौकरी में सवर्णों को भी लाभ मिलेगा।
★ इस आदेश का फायदा पाटीदारों समुदाय को भी मिलेगा जो आरक्षण की मांग को लेकर काफी दिनों से आंदोलन कर रहे हैं।

★ राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। इस निर्णय से उच्चतम न्यायायल की ओर से तय की गई 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा का उल्लंघन होगा लेकिन राज्य सरकार ने कहा कि वह इस मुद्दे को लेकर ‘गंभीर’ है और इसके लिए कानूनी रूप से ‘लड़ेगी’।

★ अधिसूचना एक मई को गुजरात राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर जारी की जाएगी और सामान्य वर्ग के ईबीसी आगामी अकादमिक वर्ष से शिक्षा एवं नौकरियों में आरक्षण का लाभ लेने में सक्षम होंगे। उन्होंने कहा कि छह लाख रुपये या इससे कम वार्षिक आय वाले परिवार इस आरक्षण के पात्र होंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिमाह 50,000 रुपये तक की आय वाले लोग इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। 
★सरकार ने जिस आरक्षण की घोषणा की है वह उच्चतम न्यायालय की ओर से आरक्षण के लिए तय 50 प्रतिशत की सीमा से अधिक होगा। राज्य सरकार पहले की एससी/एसटी और ओबीसी को 50 प्रतिशत आरक्षण मुहैया कराती है।

क्या यह decision challenge किया जा सकता है

चुनौती देने का एक आधार यह बन सकता है कि संविधान आर्थिक आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता। यह सही है कि संविधान में आर्थिक आरक्षण की व्यवस्था नहीं है

विश्लेषण

  •  गुजरात सरकार का जो फैसला है, वह किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं है, बल्कि सभी समुदायों के गरीब वर्गो के लिए है। इस लिहाज से इस फैसले को अच्छा भी कहा जा सकता है
  • रोजगार का सृजन ही उपाय: पिछले कुछ समय से कई ऐसे समुदाय आरक्षण की मांग करने लग गए हैं, जो पहले खुद को पिछड़े वर्ग में शामिल किए जाने के विरोधी थे। इसकी एक वजह तो यह है कि रोजगार के अवसर बहुत कम पैदा हो रहे हैं। हाल ही में जारी हुए 22 साल के आंकड़े यह बताते हैं कि इस दौरान 30 करोड़ लोग रोजगार के लिए तैयार हुए, लेकिन इनमें से आधे से भी कम, यानी सिर्फ 14 करोड़ लोगों को रोजगार मिल सका। आरक्षण का ताजा दबाव बनाने के पीछे का एक कारण रोजगार न मिलने से उपजी हताशा भी है
  • हरित क्रांति का फायदा उठाने वाले जाट और पटेल समुदाय के लोगों का आरक्षण की मांग पर निकल पड़ना कृषि क्षेत्र की दुर्दशा की कहानी कह रहा है। कृषि क्षेत्र में मुनाफा कम होते जाने के कारण अब ये लोग अपने नौजवानों के लिए नौकरियां चाहते हैं, जो उन्हें लगता है कि सिर्फ आरक्षण के जरिये ही मिल सकती हैं। यानी इस समस्या के वास्तविक समाधान दो ही हैं, एक तो कृषि को संकट से उबारना और दूसरे औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के ढेर सारे अवसर पैदा करना। अगर हम सबको रोजगार दे सकें, तो आरक्षण के बहुत सारे दबाव अपने आप खत्म हो जाएंगे।
  • आरक्षण के मामले में नई सोच के साथ आगे बढ़ना वक्त की मांग है। समाज के सभी तबकों को संतुष्ट करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता पड़े तो इस पर विचार किया जाना चाहिए। ऐसी कोई व्यवस्था बने जिससे जातिगत आरक्षण के साथ-साथ आर्थिक आधार पर आरक्षण को भी संवैधानिक मान्यता मिल सके। समय के साथ समाज की जरूरत बदलती है। संविधान को भी इस जरूरत को पूरी करने में सहायक बनना चाहिए।

 

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