what is the current nuclear policy of India
नो फर्स्ट यूज (NFU) न्यूक्लियर यूज के लिए भारत द्वारा अपनाई गई एक पॉलिसी है। इसके मुताबिक:
- भारत तब तक सामने वाले पर परमाणु हमला नहीं करेगा जबतक उसकी (दुश्मन) तरफ से ऐसा कोई हमला नहीं हो जाए।
पहले यह ही पॉलिसी केमिकल और बायोलॉजिकल हथियारों पर लागू थी। पाकिस्तान ने ऐसी कोई पॉलिसी नहीं बना रखी है।
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रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल नहीं करने की भारतीय नीति को केवल कालभ्रम करार दिया। रक्षा मंत्री के मुताबिक यह केवल एक भ्रम है। उन्होंने कहा, 'मुझे क्यों मानना चाहिए कि मैं इन हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करने जा रहा? इस वक्तव्य ने भारत में फिर बहस छेड़ दी है की क्या भारत को अपनी निति की समीक्षा करनी चाहिए या नहीं
Why some are favouring change in Indias nuclear doctrine:
- अमेरिका के सामरिक विशेषज्ञों विपिन नारंग और क्रिस क्लैरी के अनुसार भारत की वर्तमान प्रचलित निति के चलते भविष्य में कभी कोई दुश्मन यह मानकर भारत पर परमाणु हमला कर सकता है कि कहीं भारत उस पर पहले परमाणु हथियारों का प्रयोग न कर दे
- किसी भी देश के रणनीतिक ढांचे को हमेशा गतिशील और लचीला होना चाहिए। 1999-2003 के दौर से लेकर अब तक परिस्थितियां काफी बदल गई हैं। राजनीतिक-सामाजिक बदलाव, तकनीकी और सैन्य सुधार तथा शक्ति समीकरणों में हुए हेरफेर ने पिछले एक दशक में देश के भीतर और बाहर सुरक्षा और राजनीतिक परिवेश में नए पहलू पैदा कर दिए हैं। पड़ोस में सेना के जेहादीकरण और नॉन-स्टेट ऐक्टर्स की भूमिका में लगातार और बेरोकटोक वृद्धि ने अपनी सुरक्षा तैयारियों और जवाबी कार्रवाई करने की अपनी कार्यप्रणाली को मजबूत करना हमारे लिए बेहद जरूरी बना दिया है।
- सुरक्षा वातावरण का आकलन लगातार किया जाना चाहिए, उसी के अनुरूप परमाणु सिद्धांत समेत अपने तमाम सुरक्षा सिद्धांतों का पुनर्परीक्षण भी किया जाना चाहिए। हमारा परमाणु सिद्धांत स्वयं ही हमारे लिए प्रक्षेपास्त्र सुरक्षा, रासायनिक, जैव और रेडियोधर्मी हथियारों जैसी उन सभी नई चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रहना जरूरी बनाता है, जिनका किसी न किसी किस्म प्रभाव इस सिद्धांत पर पड़ सकता है। इसके साथ ही हमारा परमाणु सिद्धांत स्पष्ट रूप से यह जरूरत भी हमारे सामने पेश करता है कि हम किसी भी समय उन सभी बुनियादी प्रस्थापनाओं की जांच-पड़ताल करें, जो परमाणु प्रतिरोधक क्षमता को लेकर देश के नजरिये के केंद्र में हैं। बदलते हुए सुरक्षा परिवेश में भारतीय हितों की रक्षा के लिए सभी प्रासंगिक सैद्धांतिक विचारों की खोजबीन करना भी हमारे लिए जरूरी है।
- भारत के परमाणु सिद्धांत पर बुनियादी एतराज इस बात को लेकर है कि ये परमाणु हथियार लड़ाई के लिए नहीं बल्कि दुश्मन को डराने के लिए हैं। इसी सोच से इन हथियारों का अपने दुश्मन पर पहले इस्तेमाल नहीं करने की नीति जन्म लेती है जिससे न केवल स्थिर डेटरेंस को संस्थागत आधार मिलेगा बल्कि भारत नैतिक रूप से भी उच्च धरातल पर खड़ा रहेगा। परन्तु इस नैयिकता और निति का क्या फ़ायदा जब इसका उपयोग हम तब करे जब हम पहले ही इसका attack झेल चुके हो
- डेटरेंस का अकल्पनीय सिद्धांत भारत को सुरक्षा नहीं प्रदान कर पाया है। पाकिस्तान स्थित जिहादी आतंकी संगठन अब भी भारत में हमलों को अंजाम दे रहे हैं। वे भारतीय युवाओं को बरगलाकर अपने साथ शामिल कर रहे हैं और उन्हें हथियारबंद कर रहे हैं। पाकिस्तान के आतंकी संगठन कश्मीर के भीतर अलगाववादी उपद्रव को खुलकर समर्थन दे रहे हैं और खालिस्तानी अलगाववादियों को भी उकसाने में लगे रहते हैं।
- अपनी अस्तित्वगत दुविधा के चलते पाकिस्तान अपने यहां भारत को स्थायी शत्रु की तरह देखने के राष्ट्रीय विचार को बनाए रखना चाहता है। इस्लामाबाद पर लगातार दबाव बनाए रखने वाली ताकतें कभी यह नहीं चाहेंगी कि दोनों देशों के रिश्ते सामान्य हो जाएं। शांति, व्यापार, वाणिज्य और उद्योग पर चर्चा के हर प्रयास के पहले और बाद में आतंकवादी हमले अनिवार्य रूप से होंगे, हालांकि पाकिस्तान का राजनीतिक प्रतिष्ठान और वहां की सिविल सोसायटी हर बार इन हमलों में अपना कोई हाथ होने से इनकार करेगी। ऐसे में सवाल यह बनता है कि ऐसे हमलों के बाद भारत के पास चारा क्या रहेगा?
भारत को अपने परमाणु सिद्धांत की हरेक चार-पांच साल में समीक्षा करनी होगी ताकि उसे उसे समय के साथ बदलती हुई सामरिक जरूरत के मुताबिक ढाला जा सके। यह एक तरह से capacity building का काम करे न की भारत को बस दर्शक बनाए रखने का |