भारत में शिक्षा की समस्या और क्या कदम हो सकते है कारगर

क्या मायने है शिक्षा के

  • इसकी सहायता से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायता मिलती है, पर इससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि यह समाज के मानस का एक किस्म का आनुवंशिक चरित्र तय करती है।
  •  शिक्षा के सहारे समाज में एक तरह का बौद्धिक-मानसिक डीएनए आकार लेता है, जो चीजों के होने न होने और सोचने के तरीकों की खास तरह की समझदारी विकसित करता है।
  • शिक्षा की संस्थाओं के सहारे यह सब पीढ़ी दर पीढ़ी आगे चलता जाता है।

Effect of British policy

  • शिक्षा एक प्रकार की बौद्धिक अभियांत्रिकी (मेंटल इंजीनियरिंग) जैसी होती है। अंग्रेजों ने इस बात को समझ कर इसका प्रभावशाली उपयोग किया और जरूरी तरीकों का इस्तेमाल करते हुए शिक्षा के उद्देश्य, उसकी विषयवस्तु, उसकी प्रक्रिया और उपयोग को ऐसे सांचे में ढाल सकने में समर्थ हो गए कि हमारे पास जो कुछ ज्ञान के रूप में था उसकी स्मृति का लोप शुरू हो गया। उसे अप्रासंगिक ही नहीं करार दिया गया, बल्कि हम उसे हिकारत की नजर से देखने लगे
  • । धीरे-धीरे भारतीय ज्ञान परंपरा बोझ और ग्लानि का कारण बनती गई। उसे अतीत या इतिहास की वस्तु मानते हुए ज्ञान के संग्रहालय को सुपुर्द करने योग्य मान लिया। उसे कभी-कभी पूजनीय जरूर माना जाता रहा, पर अक्सर उससे छुटकारा पाने में ही भलाई समझी जाने लगी।
  •  यह सब जिस तरह से हुआ और जिस मजबूती से स्थापित किया गया वह अद्भुत किस्म का सफल बौद्धिक उपनिवेशीकरण था, जिसके जाल से निकलना असंभव-सा हो गया।

क्या परम्पराएँ आधुनिकरण के खिलाफ है

आधुनिक होने की जरूरत तो स्वाभाविक है, पर इसके रास्ते अपनी परंपरा से भी निकलते हैं। परंपरा सिर्फ पुराने को ज्यों का त्यों ढोना नहीं है, जैसा हम अक्सर मान बैठते हैं, उसमें जो पहले से है उससे आगे जाना भी शामिल है। इस तरह परंपरा आधुनिकता के विरुद्ध नहीं है। साथ ही आधुनिकीकरण को हमने सिर्फ पश्चिमीकरण मान लिया और बिना किसी आलोचना और समीक्षा के परंपरा और आधुनिकता को परस्पर विरोधी मान लिया। परंपरा यानी भारतीयता आधुनिकता की विरोधी ठहरा दी गई। और हमने अपनी राह सीधे-सीधे पश्चिम के अंधानुकरण में खोज ली

शिक्षा की सतत उपेक्षा

स्वतंत्रता मिलने के बाद भी शिक्षा के प्रति कामचलाऊ सोच ही चलती रही। सतत उपेक्षा का परिणाम यह हुआ कि अभी तक हमारा देश शतप्रतिशत साक्षरता का लक्ष्य भी नहीं प्राप्त कर सका है

  • देश में 75 प्रतिशत तक साक्षरता पहुंच सकी है, पर निरक्षरता में कमी जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में नहीं हो पायी है।
  •  2001 से 2011 के बीच सात वर्ष से ऊपर की जनसंख्या में 18.65 करोड़ का इजाफा हुआ, पर निरक्षरता में कमी 3.11 करोड़ की ही दर्ज की गई।
  • शिक्षा का अधिकार कानून 2010 में पास हुआ था। संविधान की व्यवस्था के अनुसार 6 से 14 वर्ष की आयु के बीच के सभी बच्चों को अनिवार्य तथा नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध करना आवश्यक है, पर हम सफल नहीं हो पा रहे हैं। जनसंख्या वृद्धि के समानांतर नामांकन में वृद्धि दर्ज नहीं होती और साक्षरता ज्यादातर सिर्फ दस्तखत करना सीखने तक सीमित है।
  •  इसी से जुड़ी समस्या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देने वालों की है। गांवों में हजार में से 326 और शहरों में 383 लोग पढ़ाई छोड़ देते हैं।
  • 2014 में 61 लाख बच्चे स्कूल से बाहर थे। पूर्व प्राथमिक शिक्षा का विस्तार बहुत सीमित है। जो है वह भी अधिकतर शहरों में है। मात्र एक प्रतिशत बच्चे ही इसमें जा पाते हैं। 
  • माध्यमिक और उच्च शिक्षा के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं। इनमें छात्र-अध्यापक अनुपात, अपेक्षित संसाधनों की कमी तथा अच्छे शिक्षक-प्रशिक्षण का अभाव प्रमुख हैं। इनसे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

New current to reform education system in India

इस समय भारत में शिक्षा की प्रकृति और उसके संचालन को लेकर गंभीर विचार-विमर्श सरकारी प्रतिष्ठान, गैर-सरकारी संगठन और अकादमिक क्षेत्र आदि में कई स्तरों पर बड़े पैमाने पर चल रहा है। इस विमर्श की चिंताओं के मोटे तौर पर चार प्रमुख आयाम पहचाने जा सकते हैं।

  •  बच्चों और युवाओं की देश की जनसंख्या में बढ़ते अनुपात की चुनौती के समाधान के लिए शिक्षा मुहैया कराने वाले अवसरों को बढ़ाना।
  • शिक्षा को रोजगार की ओर उन्मुख करना ताकि समाज में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निपटा जा सके।
  •  शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना ताकि वह विश्व में किसी से पीछे न रहे।
  • भारतीय शिक्षा को सामाजिक-सांस्कृतिक दृष्टि से प्रासंगिक और मूल्यवान बनाना। 

But failed to have impact

ये न केवल व्यावहारिक हैं, बल्कि इनके महत्वपूर्ण सैद्धांतिक परिप्रेक्ष्य और प्रक्रियागत आशय भी हैं। इन आयामों को औपचारिक विचार का विषय तो जरूर बनाया गया, जैसा कि अनेक शिक्षा आयोगों की रिपोर्टो से पता चलता है, पर कार्य के स्तर पर पंचवर्षीय योजनाओं में हाथ में लिए गए कामों की वरीयताओं में नीचे होने के कारण कुछ विशेष हासिल न हो सका। इसके लिए आवश्यक सुविधाओं को जुटाने के लिए संसाधनों की कमी और शैक्षिक प्रस्तावों के बारे में संशय के कारण प्रस्तावों को लागू करने में उपेक्षा ही बरती जाती रही।

 Need of hour is

21वीं सदी में हमें शिक्षा की चुनौती पर विशेष ध्यान देना होगा और पर्याप्त संसाधनों की व्यवस्था करनी होगी। तभी देश की युवा ऊर्जा को देश निर्माण के कार्य में संलग्न किया जा सकेगा। 

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