#Navbharat_Times
ऐतिहासिक महत्व की इमारतों और ढांचों का जो हाल अपने देश में है उसे कतई संतोषजनक नहीं माना जा सकता। पुरातात्विक महत्व के 24 स्मारक अतिक्रमण और शहरीकरण की भेंट चढ़ गए हैं।
- नष्ट हुए इन अनमोल स्मारकों में पुराने शिव मंदिर, बौद्ध खंडहर, कब्रिस्तान, मीनारें आदि तरह-तरह की चीजें हैं।
- अगर अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमा को तालिबानी ताकतें ध्वस्त कर देती हैं तो पूरी दुनिया चीत्कार कर उठती है। उसकी निंदा करने में हम भी आगे रहते हैं।हम उन्हें असभ्य करार देते हैं।
- हमारे इस 5000 साल पुरानी संस्कृति वाले लोकतांत्रिक देश में ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्मारक देखते-देखते विलुप्त हो जाते हैं तो हमारे कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
- जानते-बूझते किसी चीज को तोड़ना और अपनी उपेक्षा या लापरवाही से किसी अनमोल चीज को नष्ट होने देना – इन दोनों में क्या सचमुच इतना ज्यादा अंतर है कि एक हमें बर्बर बनाता है और दूसरा सुसंस्कृत बने रहने देता है? एक दलील यह दी जाती है कि इन स्मारकों की देखरेख करने वाली आर्कियोलॉजिलक सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के पास न तो ज्यादा कानूनी ताकत है और न ही पर्याप्त स्टाफ।
What needs to be done
मगर हर मामले में लाचारी का यह तर्क चलने वाला नहीं होता। एएसआई सरकार से अलग कोई ढांचा नहीं है। वह हमारे पूरे सरकारी तंत्र का एक हिस्सा है और जरूरत पड़ने पर सरकार और प्रशासन के अन्य हिस्सों की ताकत उसके काम आ सकती है। ऐसे स्मारकों के क्षेत्रों का अतिक्रमण करने वालों को एएसआई कारण बताओ नोटिस जारी कर सकती है और संबंधित जिला मजिस्ट्रेट अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई कर सकता है। इसके बावजूद अगर बिना किसी कार्रवाई के ये धरोहर नष्ट होती जा रही है तो यह हमारी सरकार, प्रशासन और पूरे समाज की आपराधिक संवेदनहीनता का उदाहरण है। सरकार संसद को सिर्फ सूचना देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाती। उसे इस स्थिति को बदलने के लिए अविलंब प्रभावी कदम उठाने चाहिए