- नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में मरीजों के हित को केंद्रीय स्थान दिया गया है। इसमें अस्पतालों की जवाबदेही तय करने और मरीजों की शिकायतों पर गौर करने के लिए पंचाट के गठन की बात भी कही गयी है। स्पष्टत: इन बातों से देश के लोगों में नई उम्मीदें जगेंगी।
- उल्लेखनीय है कि नई नीति का उद्देश्य सभी नागरिकों को सुनिश्चित स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराना बताया गया है। भारत में स्वतंत्रता के बाद से सरकारी नीतियों में स्वास्थ्य एवं शिक्षा को अपेक्षित महत्व नहीं मिला। नतीजतन, इन दोनों मोर्चों पर देश पिछड़ी अवस्था में है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था इतनी लचर है कि इलाज के लिए निजी अस्पतालों पर निर्भरता बढ़ती चली गई है। इसकी वजह से एक तो स्वास्थ्य सेवाएं गरीबों से दूर हुई हैं, दूसरी तरफ उपचार संबंधी कई विकृतियां भी उभरी हैं। मसलन, निजी अस्पतालों में मरीजों की गैरजरूरी जांच तथा अनावश्यक दवाएं देने की शिकायतें बढ़ी हैं। ऐसे में सरकारी अस्पतालों का तंत्र फिर से खड़ा हो, तो उससे बेहतर बात कोई नहीं होगी।
- यह स्वागतयोग्य है कि नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में इस दिशा में बढ़ने का इरादा दिखाया गया है। नई नीति में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का दायरा बढ़ाने पर जोर है। अभी इन केंद्रों में रोग प्रतिरक्षण, प्रसव पूर्व निगरानी और कुछ ही अन्य रोगों की जांच होती है। लेकिन नई नीति के तहत इनमें गैर-संक्रामक रोगों की जांच भी होगी।
- साथ ही नई नीति में जिला अस्पतालों के पुनरुद्धार पर विशेष जोर है। कहा गया है कि स्वास्थ्य संबंधी सरकारी कार्यक्रमों को अमली जामा पहनाने की रूपरेखा तय की जाएगी। स्पष्टत: यह महत्वपूर्ण बदलाव है।
चुनौतियाँ
ध्यान में रखने योग्य है कि नीतियां सिर्फ इरादे का वक्तव्य होती हैं। असली चुनौती उनके अमल में आती है। मसलन, हाल में सरकार ने हृदय धमनियों को खोलने के लिए लगाए जाने वाले स्टेंट की कीमत घटाने का आदेश दिया था। मगर उसके बाद मुनाफाखोरों ने बाजार में इसकी सप्लाई घटा दी। जाहिर है, इस मामले में सरकार का मकसद तभी पूरा होगा, जब ऐसे बदनीयत तत्वों पर कड़ी कार्रवाई हो।
- इसी तरह स्वास्थ्य नीति के उद्देश्यों को पाना तभी संभव होगा, जब केंद्र और राज्य सरकारें अपना स्वास्थ्य बजट बढ़ाएं। स्वास्थ्य राज्य-सूची का विषय है। ऐसे में नई नीति का सफल होना राज्य सरकारों के उत्साह और उनकी गंभीरता पर निर्भर है।
- योजना आयोग के भंग होने, केंद्र प्रायोजित योजनाओं में कटौती और विकास मद के अधिक हिस्से का राज्यों को हस्तांरण होने की नई व्यवस्था अस्तित्व में आने के बाद स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में राज्यों की भूमिका और अहम हो गई है।
आशा है, केंद्र स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने के बारे में राज्य सरकारों के साथ उपयुक्त सहमति तैयार करेगा। इस बारे में साझा योजना और पहल से ही नई स्वास्थ्य नीति को सफल बनाया जा सकता है।