राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति : नीति आयोग देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में चाहता है आमूलचूल बदला

★ नीति आयोग देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने वाला विजन डाक्यूमेंट तैयार कर रहा है. फिलहाल देश में 2002 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लागू है जो 1983 की स्वास्थ्य नीति का संशोधित रूप है. अभी तक भारत में दो स्वास्थ्य नीतियां ही लागू हो सकी हैं.
★नई योजना का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि चौदहवें वित्त आयोग की अनुशंसा में स्वास्थ्य मामलों में केंद्र की हिस्सेदारी बढ़ गई है.
★ नीति आयोग ने अभी इस नीति के मसौदा सार्वजनिक नहीं किया है लेकिन एक बैठक में आयोग ने प्राथमिक चिकित्सा सेवा को निजी डॉक्टरों को सौंपने और दूसरे स्तर की चिकित्सा सेवा के लिए सरकारी तथा निजी अस्पतालों के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने की बात कही.

★ प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों में आम तौर पर एक डॉक्टर होते हैं और वहां मामूली सर्जरी इत्यादि हो सकती है. दूसरे स्तर के चिकित्सा सेवा केंद्र में विशेषज्ञ डाक्टर उपलब्ध रहते हैं.
★ माना जा रहा है कि ये नीति ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की तर्ज पर बनाई गई है. ब्रिटेन में इस नीति के तहत साल-दर-साल जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं में सरकार की भूमिका सीमित होती गई.

=>प्रस्ताव :-
★नीति आयोग की बैठक में रखे गए कई सुझाव आकर्षक प्रतीत होते हैं, मसलन, एक सुझाव ये था कि ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले एमबीबीएस डॉक्टरों को फेमिली फिजिशियन के रूप में प्रशिक्षित किया जाए और वो जिन मरीजों का इलाज करें उनका खर्च सरकार उठाए.

★हर जिले में कई फैमिली डॉक्टर होंगे और मरीज उनमें से अपनी पसंद का डॉक्टर चुन सकेंगे. साथ ही डॉक्टरों का प्रमोशन भी उनसे जुड़े मरीजों की संख्या के आधार पर किया जाएगा. 
★सरकार द्वारा सहायता प्राप्त प्रयोगशालाएं और सभी प्राथमिक केंद्रों पर मुफ्त दवाएं देने का प्रस्ताव 

★दूसरे स्तर के चिकित्सा केंद्रों, चाहे वो सरकारी हों या प्राइवेट, को सरकार विशेष मदद देगी. मरीजों को सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में से जिसे चाहे उसे चुनने की आजादी रहेगी. इस प्रस्ताव के अनुसार जो केंद्र (सरकारी या प्राइवेट) ज्यादा अच्छी सुविधा देंगे उन्हें सरकार ज्यादा मदद देगी.

★ नीति आयोग द्वारा प्रस्तावित तीन स्तरीय चिकित्सा व्यवस्था में सरकारी अस्पतालों के अलावा कम खर्च वाले निजी अस्पतालों को बढ़ावा दिया जाएगा, मसलन विभिन्न एनजीओ या मिशनरी संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले अस्पताल.

=>"राह में रोड़े"
- नीति आयोग की नई नीति को अमली जामा पहनना आसान नहीं होगा. साल 2015 में नीति आयोग ने स्वास्थ्य मंत्रालय को एक खत लिखकर आम स्वास्थ्य सेवाओं और मुफ्त दवा तथा जांच पर निवेश बढ़ाने पर आपत्ति की थी. 
★रिपोर्ट के अनुसार दूसरे विकासशील देशों से तुलना की जाए तो सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च के मामले में भारत काफी पीछे है. इसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य की कमियों को दूर करने के लिए प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी की पैरवी की गई थी.
★नीति आयोग ने अपने पत्र में कहा कि एनएचपी 2014 से स्वास्थ्य क्षेत्र बुनियादी तौर पर प्राइवेट सेक्टर पर निर्भर हो जाएगा. 
★12वीं पंचवर्षीय योजना में सभी के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा का लक्ष्य रखा गया था. स्वास्थ्य राज्य का विषय है इसलिए केंद्र की स्वास्थ्य योजनाओं में सबसे बड़ी दिक्कत राज्य और केंद्र के बीच सहमति की होती है. नीति आयोग द्वारा तैयार किए जा रही नीति में भी यही दिक्कत आ सकती है.
★राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति पर एनएचए की स्टीयरिंग कमिटी और नीति आयोग के प्रस्ताव में जो अंतर है फिलहाल वो अंतिम नीति तय करने की राह में बड़ा रोड़ा है. और जब तक ये रोड़ा दूर नहीं होता सभी के लिए बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा का लक्ष्य पूरा करने की तरफ कदम बढ़ाना संभव नहीं.

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