जातीय संघर्ष में परिवर्तित होता जल संकट

पानी हजारों सालों से विभिन्न समाजों की अनिवार्य आवश्यकता रहा है। भारत में पिछले दो दशकों में यह बहुत विचित्र रूप में सामने आई है।

  • देश के विदर्भ क्षेत्र या अन्य इलाकों में जब बड़ी तादाद में किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो भारतीय समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह ऐसी बातों को सहजता से लेने लगा है।
  • जल प्रदूषण ने देश के कई इलाकों को बुरी तरह प्रभावित किया है। देश में अनाज का कटोरा कहा जाने वाला पंजाब प्रांत जो एक समय हरित क्रांति का घर और देश का गौरव हुआ करता था आज उसकी मिट्टी कीटनाशकों से त्रस्त है। उसके किसान गरीबी में दिन काट रहे हैं और वहां के लोगों को अपने आपको जिंदा रखने के लिए आय के अकल्पनीय स्रोत जैसे कि मादक पदार्थ आदि का सहारा लेना पड़ रहा है जिनकी तस्करी सीमा पार से की जाती है। एक ऐसा राज्य जो अपने जवानों के लिए देश में गौरव का विषय था वहां के युवा अब कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमेरिका जाने के लिए बेकरार रहते हैं।
  • पश्चिम बंगाल अपना पानी सांस्कृतिक रूप से साझा विरासत वाले बांग्लादेश के साथ बांटना नहीं चाहता। यह स्थिति तब है जब केंद्र सरकार ऐसा करने की इच्छुक है। शायद पश्चिम बंगाल को लगता है कि ऐसा करने से स्थानीय स्तर पर जल संकट का भय उत्पन्न होगा। ऐसे में दूर स्थित दिल्ली उदार हो सकता है लेकिन वह नहीं।
  • कर्नाटक में हाल ही में कावेरी जल संकट दोबारा पनपता दिखा। यह संकट कुछ हद तक अलग है क्योंकि कन्नड़ किसानों ने तब तक विद्रोह नहीं किया होता जब तक कि उनको यह भय और आशंका न होती कि अगर वे अपना पानी तमिलनाडु के साथ साझा करेंगे तो दिवालिया हो जाएंगे। ऐसे में मामला जातीय कम और आर्थिक अधिक था। इसलिए भी क्योंकि इस क्षेत्र में सदियों से कन्नड़, मलयालम, तमिल और तेलुगू भाषी लोग सहअस्तित्व में रह रहे हैं। 

Is this water problem is due to bad management

  •  स्थानीय धारणा तेजी से मजबूत हो रही है कि कर्नाटक में चल रहा मौजूदा विवाद अन्य राज्यों में बाढ़ और सूखे के खराब प्रबंधन का नतीजा है।
  • बेंगलूरु और उसके आसपास का इलाका केवल सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए नहीं बल्कि तमाम अन्य तरह के रोजगार का केंद्र बना हुआ है। इसमें बाल काटने वाले, बढ़ई, रसोइये, मूवर्स, सुरक्षा गार्ड और अन्य तमाम रोजगार शामिल हैं। इनमें बिहार, झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और अन्य तमाम इलाकों के कामगार शामिल हैं। सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति में आने वाली दिक्कतों और बेंगलुरु शहर में कचरे के भंडार का ठीकरा अक्सर इन प्रवासियों के सर पर फोड़ा जाता है  

Water crisis turning into a caste/class crisis

इस गलत यकीन के पनपते जाने के कारण आर्थिक तत्त्व अपने आप में समेटे यह विवाद जातीय संघर्ष में बदलता जा रहा है। खेदजनक बात यह है कि भारत इस प्रकार की आपातकालीन परिस्थितियों के लिए पूरी तरह तैयार ही नहीं है। याद करें तो भारत को विभाजन के वक्त अपने इतिहास के अत्यंत रक्तरंजित दौर से गुजरना पड़ा था। हालांकि उस वक्त धार्मिक मतभेद उजागर थे लेकिन वह इकलौती ऐसी चीज नहीं है जो लोगों में अलगाव पैदा करे। बेंगलूरु में केरल के लोगों के खिलाफ ऐसा जातीय संघर्ष देखने को मिल रहा है। 

 

International experience:

  • युगोस्लाविया में ऐसा ही संघर्ष देखने को मिला था जिसने आर्थिक से जातीय स्वरूप ग्रहण कर लिया था। यह सच है कि तत्कालीन सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका ने मिलकर दूसरे विश्वयुद्घ के बाद युगोस्लाविया का निर्माण किया था। इस प्रक्रिया में सर्ब, जर्मन, क्रोएट, स्लोव, रोमन, ग्रीक कैथलिक और मुस्लिम आदि तमाम समुदायों के लोग शामिल हुए थे। मार्शल जोसेफ टीटो ने एक आधुनिक अर्थव्यवस्था और मजबूत सामाजिक तानेबाने वाले देश का निर्माण किया था।
  • यहां अलग-अलग जातीय समूहों के बीच विवाह होना सामान्य प्रथा थी। आर्थिक मसलों को लेकर मतभेद तब शुरू हुए जर्मन स्लोवेनियाइयों ने यह शिकायत की कि शेष यूगोस्लाविया को सब्सिडी दी जा रही है। आर्थिक संसाधनों को लेकर द्वंद्व शुरू हो गया। अर्थव्यवस्था उच्च मुद्रास्फीति की शिकार हो गई। पश्चिमी प्रांत स्लोवेनिया ऑस्ट्रिया के निकट था और उसने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। जर्मनी ने अपनी जातीय प्राथमिकता का उदाहरण देते हुए तत्काल उसे मान्यता दे दी और उसे यूरोपीय संघ में शामिल कर लिया। यह उसके खुद के यूरोपव्यापी नजरिये के उलट था। एक अन्य निकटवर्ती पश्चिमी प्रांत क्रोएशिया ने भी स्लोवानिया के ही नक्शे कदम पर चलना पसंद किया।
  • यूगोस्लाविया का पतन हो गया। सर्ब जो रसूखदार नस्ल के थे, उन्होंने इसे अपना अपमान माना। आजाद होने वाले इससे आगे के प्रांतों से बहुत सख्ती से निपटा गया। बोस्निया-हर्जेगोबिना और उसकी राजधानी सरायेवो जो शीतकालीन ओलिंपिक के लिए तैयार हो रही थी वह मलबे में तब्दील हो गई। विभिन्न जातियों में हुए विवाह टूटने लगे। यहां तक कि पुराने विवाह भी खत्म हो गए। यातना शिविर तैयार किए गए जहां इस्लाम को खत्म करने के लिए पुरुषों और बच्चों को जान से मारा गया और प्रताडि़त किया गया। 
  • कोसोवो, मैसेडोनिया, मोंटेग्रो आदि बचेखुचे प्रांत रह गए। कुछ सर्ब नागरिकों को अंतररार्ष्ट्रीय  अदालत ले जाया गया ताकि उन पर नरसंहार का मामला चले। लेकिन युगोस्लाविया के मूल विचार का एक भयानक अंत हो चुका था। 

Lesson to be learnt from this event

इतिहास ने बार-बार दिखाया है कि आर्थिक संसाधनों को लेकर छिड़ी लड़ाइयां बहुत जल्दी जातीय संघर्ष में बदल जाती है और उसके परिणाम बहुत भयावह होते हैं। देश में जल को लेकर जो लड़ाइयां छिड़ी हैं उनको भी इसी परिदृश्य में देखना होगा। क्योंकि देश के लिए इनके भयावह परिणाम हो सकते हैं। 

Conclusion : How to solve twin problem of water and enviournment

जो लोग आर्थिक प्रगति का विरोध करते हैं उनको अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करना चाहिए। नर्मदा बांध और अन्य बांधों की भारत जैसे देश में आवश्यकता है। समस्या का हल इनका निर्माण रोकना नहीं है बल्कि उनको पर्यावरण के अनुकूल और तकनीकी सक्षमता से बनाना और पुनर्वास को व्यवस्थित ढंग से अंजाम देना है। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि यह प्रक्रिया भ्रष्टाचार  की भेंट न चढ़े। यह मानना होगा कि अंतररार्ष्ट्रीय   सूचकांकों में भारत का भ्रष्टïचार काफी ऊंचे स्तर पर है। ऐसे में यह सब आसान नहीं होगा।

Read also :https://gshindi.com/sites/default/files/downloads/ARC/ARC_7_Capacity_Building_for_Conflict_Resolution_Chap_2_summary_GSHindi.pdf

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