- किसी ने सच ही कहा है कि जिस तरह पौधरोपण के सही तरीकों द्वारा पादपों को आकार दिया जाता है उसी तरह से इंसान को सही आकार देने का उचित और एकमात्र माध्यम शिक्षा है। किसी भी देश की तरक्की के विभिन्न चरणों में मानव संसाधनों के विकास और उसके सशक्तिकरण में शिक्षा का अहम स्थान है।
- किसी भी शिक्षा प्रणाली में उच्च शिक्षा व्यापक रूप में प्रबंधन, इंजीनियरिंग, मेडिसिन इत्यादि ज्ञान, मूल्य और कौशल को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हैं और इस पूरी प्रक्रिया में देश की तरक्की और उत्पादकता बढ़ती है।
- ज्ञान की संपत्ति और कौशल को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक ले जाने में हमारे शिक्षा के मंदिरों का उल्लेखनीय स्थान है। हालांकि आधुनिक युग की जरूरतों नवोन्मेष और तकनीकी विकास के चलते इनका कार्य बहुत चुनौतीपूर्ण हो चुका है।
- किसी भी देश की आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास को संचालित करने वाली ताकतें कौशल और ज्ञान होती हैं। यदि अर्थव्यवस्था 8 से 9 फीसद की दर से विकास करती है तो इसके लिए जरूरी होता है कि द्वितीय और तृतीय क्षेत्र क्रमश: 10 और 11 फीसद की दर से आगे बढ़ें। यह संकल्पना प्राथमिक क्षेत्र के रूप में कृषि के चार फीसद विकास को मानकर की गई है।
- ऐसी परिस्थिति में यह स्वाभाविक है कि बड़े पैमाने पर प्राथमिक क्षेत्र (कृषि)में लगी श्रमशक्ति उसे छोड़कर द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों से जुड़े। यहां पर यह सबसे बड़ी चुनौती है कि कृषि क्षेत्र के लिए किसी व्यक्ति में जो हुनर और कौशल होने चाहिए, मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में उससे अलग कौशल की जरूरत होगी।
- इसका मतलब यह होगा कि ऐसे किसी बदलाव की स्थिति में देश में कौशल की कमी बड़े पैमाने पर आड़े आएगी। ऐसे दृश्य कौशल विकास की जरूरत को बताने के लिए काफी हैं।
- एक अध्ययन के मुताबिक 2022 तक देश में कुशल श्रमशक्ति की तादाद करीब 50 करोड़ होगी। हर साल डेढ़ करोड़ लोगों का श्रमशक्ति में जुडऩे का अनुमान है। इस टैलेंट के जखीरे को जरूरत होगी पर्याप्त रुप से कौशल युक्त बनाने की। देश के सभी स्कूलों में छात्रों का नामांकन करीब 22.70 करोड़ है।
- उच्च शिक्षा और और व्यावसायिक प्रशिक्षण को संयुक्त रूप से मिलाकर नामांकन संख्या 1.53 करोड़ है। अगर इसे तकनीकी और व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित और कुशल श्रमशक्ति (आइटीआइ व आइटीटी के दस लाख, बीई के 17 लाख, पॉलीटेक्निक के 7 लाख) के रूप में देखें तो देश में कुशल प्रतिभाओं का मौजूदा पूल 34 लाख है। इस लिहाज से यह अनुमान है कि लक्ष्य को पाने के लिए देश को हर साल 1.5 करोड़ कुशल श्रमशक्ति तैयार करनी होगी।
- इसके लिए हमें मौजूद श्रमशक्ति को कौशलयुक्त करना होगा और नए श्रमशक्ति को कुशल बनाना होगा। इसके लिए हालांकि कई कदम उठाए गए हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास नीति, डिलीवरी ऑफ मॉड्युलर एंपल्वायेबल स्कीम्स, विश्वबैंक और सरकार के वित्तीय मदद से वर्तमान संस्थानों का उन्नयन, सार्वजनिक-निजी सहभागिता के तहत प्रशिक्षण संस्थानों का उन्नयन, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम की स्थापना और पचास हजार कौशल विकास केंद्रों के स्थापित किए जाने की योजना है। इसके अलावा कुछ मंत्रालयों-विभागों और राज्य सरकारों के स्तर पर भी कौशल विकास से जुड़ी पहल की जा रही है।
- आधुनिक जरूरतों के मुताबिक मानव संसाधन को तैयार करने के लिए अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाना बहुत जरूरी है। परंपरागतरूप से प्रशिक्षण देने के तरीकों से आज की चुनौतियों से पार नहीं पाया जा सकता है।