- हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। हर भारतीय इस तथ्य से वाकिफ है, लेकिन बढ़ते उपभोक्तावाद ने तमाम वर्जनाओं को तोड़ दिया है। फैशन के इस दौर में गारंटी चाहने की जैसे किसी की इच्छा भी नहीं हो रही है।
- आज हर आदमी उपभोक्ता है। हर आदमी अपनी जरूरत की चीजें और सेवाएं खरीद रहा है। आर्थिक तरक्की के साथ उसके संकुचित उपभोक्तावाद का दायरा बढ़ने लगा है।
- बढ़ती हैसियत के अलावा भी तमाम कारक हैं जो उपभोक्तावाद की संस्कृति को हवा दे रहे हैं। जिसके चलते लोग अपने उपभोक्ता हितों की अनदेखी तक करते हुए खराब गुणवत्ता वाले उत्पादों को खरीद लेते हैं। इसमें उत्पादों का विज्ञापन करने वाले हमारे सेलेब्रिटी की भीअहम भूमिका होती है।
भले ही उत्पाद की गुणवत्ता खराब हो, लेकिन भारी-भरकम राशि पा रही ये हस्तियां उन्हें ऐसे प्रचारित करती हैं जैसे इससे अच्छी चीज इस धरती पर दूसरी नहीं है। आकर्षक कैचलाइनें और जनता के दिलों पर राज करने वाले हसीन चेहरे लोगों को लुभाने के लिए काफी होते हैं। यहीं उनका उपभोक्ता हित प्रभावित होता है,
और ग्राहक गुमराह होकर गलती कर बैठता है। अब ग्राहकों को गुमराह होने से बचाने के लिए ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर सेलेब्रिटी को जिम्मेदार ठहराने का प्रावधान किया जा रहा है।
- जेसी दिवाकर रेड्डी की अध्यक्षता में गठित एक संसदीय समिति उपभोक्ता संरक्षण कानून में बदलाव की संभावनाओं पर पड़ताल कर रही है। समिति द्वारा तैयार एक रिपोर्ट को अगर संसद में मंजूरी मिल जाती है तो भ्रामक विज्ञापनों में वास्तविकता से परे का दावा करने वाली सेलेब्रिटी के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
- यदि ऐसे मामलों में विज्ञापन में किए गए दावे झूठे पाए जाते हैं तो सेलेब्रिटी को अधिकतम पांच साल की सजा और पचास लाख रुपये का अर्थदंड हो सकता है। दुनिया के कई मुल्कों में ग्राहकों के हित को सुरक्षित रखने के तहत ऐसे कानून काम कर रहे हैं।
- उपभोक्ता हितों को देखते हुए यह स्वागतयोग्य कदम है लेकिन ग्राहकों में जागरूकता भी जरूरी है। ऐसे में भ्रामक विज्ञापनों के लिए सेलेब्रिटी को जिम्मेदार ठहराए जाने वाले प्रावधान की पड़ताल आज हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है।
=>भारतीय विधान
देश में उपभोक्ता हितों के सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए कई नियम कानून हैं।
1.फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट :-
- यदि कोई सेलेब्रेटी किसी खाद्य पदार्थ का भ्रामक विज्ञापन करता है तो उसे इसके लिए जिम्मेदार माना जाएगा। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड एक्ट (एफएसएसएआइ) 2006 की धारा 2 (जेडएफ) में पर्याप्त प्रावधान हैं।
- कानून का उल्लघंन करने पर दोषी को दस लाख रुपये तक का जुर्माना देना पड़ सकता है।
- यह एकमात्र ऐसा कानून है जिसमें भ्रामक विज्ञापनों के लिए सेलेब्रिटी को जिम्मेदार ठहराने की व्यवस्था की गई है।
2.ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट
- किसी ऐसी दवा का विज्ञापन नहीं किया जाएगा जो डायबिटीज, मोतियाबिंद जैसी बीमारियों के रोकथाम या इजाज का दावा करती हो। इस श्रेणी में मोटापा, गाल ब्लैडर में पथरी, कम लंबाई जैसी 50 बीमारियां शामिल हैं।
- ड्रग एंड मैजिकल रैमेडीज (ऑब्जेक्शनेबल एडवर्टीजमेंट) एक्ट इस कानून के अतंर्गत दवाओं के इस्तेमाल से संबंधित चार तरह के विज्ञापनों को प्रतिबंधित किया गया है। इसमें गर्भनिरोधक दवाएं और कैंसर, डायबिटीज, मोतियाबिंद, गठिया, ब्लडप्रेशर व एड्स जैसी बीमारियों के जांच व उपचार से संबंधित विज्ञापन शामिल हैं। उल्लंघन पर सजा का प्रावधान न होने की वजह से प्रभावशाली नहीं।
3. कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986
- यदि किसी उत्पाद के विषय में विज्ञापन के जरिए कुछ ऐसे दावे किए जाते हैं जिसपर यह खरा नहीं उतरता तो यह छलपूर्ण कारोबारी गतिविधियों में आएगा। इस तरह के भ्रामक विज्ञापन की शिकायत करने पर इसे हटाने का
- आदेश दिया जा सकता है। इससे यदि कोई क्षति होती है तो विज्ञापनदाता को इसके लिए मुआवजा देना पड़ सकता है।
- सबसे अहम बात यह है कि विज्ञापनदाता को कोर्ट के द्वारा इसके सुधार के लिए दूसरा विज्ञापन जारी करने का आदेश दिया जा सकता है।
4.भारतीय मानक ब्यूरो
- यदि कोई उत्पाद भारतीय मानक ब्यूरो से प्रमाणित है तो निर्माता इसके संबंध में किसी प्रकार का भ्रामक विज्ञापन नहीं चला सकता। यदि वह इसके संबंध में विज्ञापन चलाता है तो उत्पाद के विषय में वही बातें बतानी होंगी जिसके आधार पर इसे ब्यूरो का सर्टिफिकेशन मिला हुआ है।
भ्रामक विज्ञापन
- एफएसएसएआइ के मुताबिक किसी उत्पाद को तब भ्रामक माना जाता है जब उसे गलत तथ्यों, भ्रामक विज्ञापनों के सहारे प्रदर्शित या बेचा जाए। विज्ञापन में कही गई बातें उत्पाद लेबल पर दी गई जानकारी से मेल न खाए। लेबल पर खाद्य पदार्थ के विषय में जानकारी न उपलब्ध हो। इस श्रेणी में आने वाले सभी उत्पादों को भ्रामक माना जाता है।
=>किस्सा नूडल्स का:
हाल ही में मैगी नूडल्स में मोनोसोडियम ग्लूकामेट (एमएसजी) नामक तत्व की मात्रा सामान्य से कई गुना अधिक पाई गई जो इसे हानिकारक बनाती थी। जबकि इसकी सही मात्रा का जिक्र लेबल पर नहीं था। और तो और विज्ञापन में इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा बताया जा रहा था।
बस यहीं से नियम उल्लघंन का सारा किस्सा शुरू हुआ। इसके चलते नूडल्स का विज्ञापन करने वाली अभिनेत्री माधुरी दीक्षित और अभिनेता अमिताभ बच्चन भी विवादों में आ गए।
अनसुलझी गुत्थी: भ्रामक विज्ञापनों के लिए हस्तियों को जिम्मेदार मानने में कई दिक्कते हैं। मसलन कोई माधुरी दीक्षित या अमिताभ बच्चन से कैसे आशा कर सकता है कि वे लैब में जाकर उत्पाद की गुणवत्ता की जांच करेंगे। निश्चित रूप से गुणवत्ता के संबंध में कोई विशेषज्ञ ही बता सकता है। लिहाजा उत्पाद की गुणवत्ता भले ही कैसी भी हो पर हस्तियों को वही मानना पड़ेगा जो लैब की रिपोर्ट कह रही है।
=>सेलेब्रिटी के सामाजिक दायित्व:
- विज्ञापनों का हमारे समाज पर काफी असर होता है। यहां तक कि कई बार लोग सेलेब्रेटी को देख कर ही उत्पाद का चुनाव करते हैं। इन्हें उस मुकाम तक पहुंचाने वाले आम लोग ही हैं। फिल्मी हस्तियां फिल्म के जरिए करोड़ों इसलिए कमा पाती हैं क्योंकि उनके फैन अपनी गाढ़ी कमाई से टिकटें खरीद उनकी फिल्में देखते हैं।
- लिहाजा जब वे समाज से इतना लेते हैं तो समाज के प्रति उनका भी कुछ कर्तव्य बनता है। जिस प्रकार टीवी सीरियल में डिस्क्लेमर लगाया जाता है कि धारावाहिक के सभी पात्र काल्पनिक है, इस तरह का प्रावधान विज्ञापनों में नहीं होता है।
- यही वजह है कि लोग विज्ञापनों को गंभीरता से लेते हैं। आज कल विभिन्न सेलेब्रेटी के बीच विज्ञापनों को लेकर प्रतिस्पर्धा चल रही है। यह एक और वजह है कि बिना उत्पाद की गुणवत्ता जांच किए नामी गिरामी हस्तियां उत्पादों का विज्ञापन करती हैं।
परदेस में प्रावधान
अमेरिका: यहां का फेडरल ट्रे़ड कमीशन किसी भी उत्पाद के विज्ञापन को लेकर बहुत सख्त है। इसने उत्पादों के प्रचार और विज्ञापनों के विवरण को लेकर दिशानिर्देश जारी कर रखे हैं। हालांकि वहां सामान्य नियम है कि विज्ञापनों में विज्ञापन करने वाले की ईमानदार राय, तथ्य, नतीजे, भरोसे, मान्यताएं की झलक होनी चाहिए। कई मामलों में यहां विज्ञापन करने से पहले सेलेब्रिटी द्वारा उत्पाद के इस्तेमाल किए जाने का भी नियम है।
वास्तविकता से परे के दावे करने वाले विज्ञापनों के मामले में अगर जांच में झूठ पाया जाता है तो विज्ञापन करने वाला जिम्मेदार होता है। भारत में सेलेब्रिटी द्वारा विज्ञापन से पहले उत्पादों के खुद इस्तेमाल का कोई प्रावधान नहीं है। खुद के इस्तेमाल को भूल ही जाएं, वे उसकी उस वैज्ञानिक जांच को भी देखने की जहमत नहीं उठाते जिसके आधार पर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। उनके विज्ञापन का समझौता पत्र इस तरह से तैयार किया जाता है जिससे उत्पाद के चलते किसी प्रकार की उत्पन्न हुई दिक्कत के लिए उन्हें कठघरे में न खड़ा किया जा सके।
चीन:
यहां पर लागू किए गए नए उपभोक्ता संरक्षण कानून में भ्रामक विज्ञापनों पर सेलेब्रिटी पर नकेल कसने की व्यवस्था है। हाल ही में पूर्व एनबीए स्टार द्वारा फिश ऑयल कैप्सूल के लाभ को बढ़ा-चढ़ाकर किए गए विज्ञापन पर एक व्यक्ति ने मुकदमा कर दिया। चीन के फूड सेफ्टी लॉ में गुमराह करने वाले विज्ञापनों और सिफारिशों
के लिए निर्माता, विज्ञापनदाता और विज्ञापनकर्ता को जिम्मेदार ठहराए जाने की व्यवस्था है। अब चीन खाद्य उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों के भ्रामक विज्ञापनों पर सेलेब्रिटी को जिम्मेदार ठहराए जाने की ओर कदम बढ़ा रहा है।
=>दक्षिण कोरिया:
यहां की स्व नियमन संस्थाएं भारत की एएससीआइ की तुलना में बहुत ज्यादा सख्त हैं। इनके पास काफी सारे अधिकार हैं। इन संस्थाओं के पास यह तय करने की ताकत है कि निर्माताओं द्वारा किस उत्पाद का विज्ञापन किया जा सकता है और किसका नहीं। यहां पर मेडिकल दवाओं का कोई सेलेब्रिटी विज्ञापन नहीं कर सकता है। कानून के किसी भी उल्लंघन की सूरत में निर्माता और विज्ञापन करने वालों को दंडित करने के कड़े नियम हैं।