~ मानव विकास के इतिहास में महिलाएं पुरुषों जितना ही आवश्यक रही हैं। वास्तव में किसी समाज में महिलाओं की हैसियत, रोजगार और किया जाने वाला काम देश के समग्र विकास के सूचकांक होते हैं।
- राष्ट्रीय गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी के बिना किसी भी राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक विकास ठहर जाता है। भले ही दुनिया की मानवता में महिलाओं की हिस्सेदारी आधी हो लेकिन दुनिया के कुल कामकाज के घंटों में उनकी दो तिहाई हिस्सेदारी होती है।
- दुनिया की कुल आय में महिलाओं की एक तिहाई हिस्सेदारी है जबकि कुल संसाधनों के दसवें हिस्से पर ही वे काबिज हैं। वैश्विक स्तर पर आर्थिक आधार पर महिलाओं की यह दयनीय दशा भारत में और भी खराब स्थिति में है। संयुक्त राष्ट्र के लैंगिक संबंधी विकास सूचकांक में देश की खराब स्थिति है।
- महिला कार्य सहभागिता के मामले में भी हम ब्राजील, श्रीलंका और इंडोनेशिया जैसे देशों से पिछड़े हुए हैं। 1970-71 के दौरान महिला कार्य सहभागिता का प्रतिशत 14.2 से बढ़कर 2010-11 में 31.6 ही हो सका है। जबकि अमेरिका में 45, ब्रिटेन में 43, कनाडा में 42, इंडोनेशिया में 40 और ब्राजील में 35 प्रतिशत है। सीएमआइई की 2011 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में महिला उद्यमियों का प्रतिशत 32.82 है। बड़े राज्यों में बिहार सबसे नीचे और उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है।
- ऐसे में महिलाओं का सशक्तिकरण किए बिना विकसित राष्ट्र बनने का ख्वाब पूरा नहीं हो सकता है। दरअसल सशक्तिकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है। इसके द्वारा किसी महिला या समूह को इस लायक बनाया जा सकता है कि वे जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पूर्ण पहचान और शक्ति को महसूस कर सकें।
- यह तभी संभव होगा जब हम उन्हें बड़े पैमाने पर ज्ञान और संसाधन मुहैया कराएंगे। निर्णय लेने में व्यापक पैमाने पर उन्हें स्वायत्ता देने से वे अपने जीवन को सही तरीके से जीने के प्रति सक्षम हो सकती हैं। महिलाओं के सशक्तिकरण सही शिक्षा देकर, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मुहैया कराकर, परिवार और समुदाय में उनकी प्रतिष्ठा बढा़कर किया जा सकता है।
- इसी क्रम में स्वयंसेवी संस्थाओं (एसएचजी) को महिला सशक्तिकरण के लिए ही जाना जाता है। 10-20 महिलाओं का यह एक समूह होता है। एक दूसरे की समस्या को दूर करने की आपसी सहमति से बने महिलाओं के इस संगठन को गरीबी दूर करने महिलाओं के सशक्तिकरण का धारदार हथियार माना जाता है।