- पिछले दशक में देश में आर्थिक वृद्धि और रोजगार के बीच सीधा संबंध नहीं देखा गया है। देश में तेज आर्थिक वृद्धि तो हुई लेकिन इसके मुकाबले उच्च रोजगार सृजन नहीं हो पाया।
- श्रम मंत्रालय द्वारा इस संबंध में तैयार किए गए एक नोट के मुताबिक पिछले दशक में आर्थिक वृद्धि की वार्षिक दर आठ प्रतिशत रही लेकिन निराशाजनक रूप से रोजगार सृजन के मामले में यह वृद्धि एक फीसद से भी कम रही।
- श्रम शक्ति में लोगों का अनुपात 2004-05 के 43 प्रतिशत से घटकर 2011-12 में 39.5 प्रतिशत रह गया। उसी दौर में महिला सहभागिता दर में 29 प्रतिशत से 22.5 प्रतिशत की तेज गिरावट दर्ज की गई। कुल बेरोजगारी दर 2.2 प्रतिशत रही। कुल जीडीपी में विनिर्माण क्षेत्र की गतिहीन, स्थिर हिस्सेदारी इसकी सबसे बड़ी वजह रही।
- एक ओर जहां सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ी लेकिन विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत पर ही स्थिर रही। विनिर्माण क्षेत्र को काफी हद तक आधारभूत सेक्टर के जोर की जरूरत होती है।
- कच्चे माल और निर्मित उत्पादों का एक जगह से दूसरी जगह आवागमन सुगम बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही अबाध बिजली कनेक्शन होना चाहिए। इसके अलावा श्रम कानूनों को भी लचीला बनाए जाने की तत्काल जरूरत है।
- बिजनेस करने के मामले में अनुमति प्राप्त करने का जटिल तंत्र एक बड़ा अवरोधक है। वर्ल्ड बैंक की ‘ईजी ऑफ डूइंग बिजनेस’ रिपोर्ट में निचली रैंक इसको दर्शाता है। इसलिए नियमन प्रक्रिया और अनुमति प्रदान करने के तंत्र को सरल बनाने की जरूरत है।
- मध्यम से लेकर दीर्घकालिक आधारभूत ढांचे को वैश्विक स्तर का बनाया जाना चाहिए। सरकार के फ्लैगशिप कार्यक्रम ‘मेक इन इंडिया’ का मकसद निवेश, नवाचार और कौशल विकास को प्रोत्साहित करना है और वैश्विक स्तर का विनिर्माण बुनियादी ढांचे के जरिये इन चिंताओं से निपटा जा सकता है। इन सबका कोई तात्कालिक हल नहीं है।
- निवेश के लिए नियामक अनुमतियां, परमिट को व्यवस्थित करने की जरूरत है और बुनियादी ढांचे में मध्यम अवधि के निवेश से विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि होगी जिससे देश में रोजगार सृजन का मार्ग प्रशस्त होगा।