अनुसंधान कार्यक्रमों में किसानों के हितों को सर्वोच्च स्थान पर रहते हुए संसाधन उपयोग कुशलता को अधिक से अधिक इस्तेमाल करने की जरूरत है।
जल, कृषि के लिए अन्य महत्वपूर्ण आदानों जैसे मृदा से भी अधिक महत्वपूर्ण संसाधन है और कृषि और गैर कृषि प्रयोजनों के लिए जल के अधिक प्रयोग, अकुशल सिंचाई पद्धति, कीटनाशकों के अनुचित उपयोग, खराब संरक्षण अवसंरचना तथा अभिशासन के अभाव ने पूरे विश्व में जल की कमी और प्रदूषण पर प्रभाव डाला है|
असमान जल वितरण भारत में :
भारत के विस्तृत क्षेत्र में जल संसाधनों का वितरण असमान है। अत: ज्यों ज्यों आय बढ़ती है त्यों-त्यों जल की आवश्यकता भी बढ़ती जा रही है।उन्होंने बताया की यदि प्रति व्यक्ति/वर्ष जल उपलब्धता 1700 घन मीटर, और 1000 घनमीटर से कम हो जाती है तो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार देश को जल के दबाव एवं विरल जल वाले क्षेत्र में वर्गीकृत किया जाता है। श्री सिंह ने जानकारी दी की 1544 घनमीटर प्रति व्यक्ति/वर्ष जल उपलब्धता के साथ भारत पहले से ही जल के दबाव वाला देश है और जल विरल वाले क्षेत्र में यह परिवर्तित हो रहा है।
क्या आवश्यक
सिंचाई हेतु जल के कुशल उपयोग के लिए यह आवश्यक है कि जल को उचित समय और पर्याप्त मात्रा में फसल में उपयोग किया जाए और मुख्य कार्य होगा
- सिंचित क्षेत्रों में उपयोगित जल संसाधनों के कुशल उपयोग द्वारा कम जल से अधिक उत्पादन करना।
- पारिस्थितिक प्रणाली अर्थात् वर्षा सिंचित और जलमग्न क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाना।
- सतत ढंग से कृषि उत्पादन हेतु ग्रे जल के भाग का उपयोग करना।
अधिकतर सिंचाई परियोजनाएं 50 प्रतिशत से भी अधिक की प्राप्त करने योग्य क्षमता से नीचे के स्तरों पर चल रही हैं और सिंचाई प्रणाली की उत्पादकता और कुशलता में सुधार करने की भावी संभावना है जिसे प्रौद्योगिकीय और सामाजिक हस्तक्षेपों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। श्री सिंह ने कहा की यह अनुमान लगाया गया है कि सिंचाई परियोजनाओं में कुशलता के वर्तमान स्तर पर 10 प्रतिशत वृद्धि करने से विद्यमान सिंचाई क्षमता से अतिरिक्त 14 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्र की सिंचाई होगी। अत: हमें अधिक संरक्षण और वर्धित जल उपयोग क्षमता पर बल देने के साथ समेकित दृष्टिकोण अपनाना होगा।