विधेयक के प्रमुख प्रावधान* :----
- इस विधेयक में अंतर्राज्यीय जल विवाद निपटारों के लिए अलग अलग अधिकरणों की जगह एक स्थायी अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव है जिसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य तक होंगे।
- अध्यक्ष के कार्याकाल की अवधि पांच वर्ष अथवा उनके 70 वर्ष की आयु होने तक होगी। अधिकरण के उपाध्यक्ष के कार्याकाल की अवधि तथा अन्य सदस्यों का कार्यकाल जल विवादों के निर्णय के साथ सह-समाप्ति आधार पर होगा।
- यह भी प्रस्ताव है कि अधिकरण को तकनीकी सहायता देने के लिए आकलनकर्ताओं की नियुक्ति की जाएगी जाएगा, जो केन्द्रीय जल अभियांत्रिकी सेवा में सेवा में सेवारत विशेषज्ञों में से होंगे और जिनका पद मुख्य इंजीनियर से कम नहीं होगा।
- जल विवादों के निर्णय के लिए कुल समयवधि अधिकतम साढ़े चार वर्ष तय की गई है। अधिकरण की पीठ का निर्णय अंतिम होगा और संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी होगा। इसके निर्णयों को सरकारी राजपत्र में प्रकाशित करने की आवश्यकता नहीं होगी।
- अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवादों के न्याय निर्णयन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और वर्तमान कानूनी तथा संस्थागत संरचना को सुदृढ़ करने का विचार है। विधेयक में विवाद को अधिकरण को भेजने से पहले एक विवाद समाधान समिति के माध्यम से बातचीत द्वारा जल विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से निपटाने के लिए एक तंत्र बनाने का भी प्रस्ताव है। यह तंत्र केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किया जाएगा जिसमें संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2017 की आवश्यकता क्यों?:---
उल्लेखनीय है कि राज्यों द्वारा जल की मांग बढ़ने के कारण अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद बढ़ रहे हैं। हालांकि, अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 (1956 का 33) में ऐसे विवादों के समाधान के कानूनी ढांचे की व्यवस्था है, फिर भी इसमें कई कमियां हैं। उक्त अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के लिए एक अलग अधिकरण स्थापित किया जाता है। आठ अधिकरणों में से केवल तीन ने अपने निर्णय दिए हैं जो राज्यों ने मंजूर किए हैं। हालांकि, कावेरी और रावी-व्यास जल विवाद अधिकरण क्रमशः 26 और 30 वर्षों से बने हुए हैं फिर भी ये अभी तक कोई सफल निर्णय देने में सक्षम नहीं हो पाए हैं। इसके अतिरिक्त मौजूदा अधिनियम में किसी अधिकरण द्वारा निर्णय देने की समय-सीमा तय करने अथवा अधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य की अधिकतम आयु तय करने का कोई प्रावधान नहीं है। अधिकरण के अध्यक्ष के कार्यालय में कोई पद रिक्त होने या सदस्य का पद रिक्त होने की स्थिति में कार्य को जारी रखने की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही अधिकरण की रिपोर्ट प्रकाशित करने की कोई निश्चित समय-सीमा है। इन सभी कमियों के चलते जल विवादों के विषय में निर्णय देने में विलंब होता रहा है।
साभार : विशनाराम माली