विश्व सामाजिक न्याय दिवस के अवसर पर भारत निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए दृढ़ संकल्प

The principle of social justice

मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि जहां भी अन्याय होता है वहां न्याय को खतरा है। यह केवल वैधानिक न्याय के बारे में ही नहीं है। विवेकपूर्ण समाज से समावेशी प्रणाली के लिए रंग, नस्ल, वर्ग, जाति जैसी किसी भी प्रकार की सामाजिक बाधा से परे न्याय सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है, ताकि कोई भी व्यक्ति न्याय से वंचित न हो।               

  • किसी को भी न्याय से वंचित रखना भी सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। समावेशी समाज से समान अवसर, निष्पक्ष कार्य और किसी को भी वंचित न रखना सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है।                                              -
  • यह विश्व सामाजिक न्याय दिवस (डब्ल्यूडीएसजे) में अंतरनिहित है। सामाजिक विकास के लिए विश्व सम्मेलन के उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र आम सभा में प्रतिवर्ष 20, फरवरी को डब्ल्यूडीएसजे के तौर पर मनाये जाने का फैसला किया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने 26 नवम्बर, 2007 को इस निर्णय को मंजूरी दे दी और 2009 से यह दिवस मनाया जाने लगा।                                                      
  • डब्ल्यूडीएसजे मनाने से गरीबी उन्मूलन, पूर्ण रोजगार और समुचित कार्य को बढ़ावा, लैंगिक समानता, सामाजिक कल्याण तक पहुंच और सभी के लिए न्याय के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों को सहायता मिलेगी।   
  •  यह दिवस गरीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को मान्यता देने का दिन होता है। हमने पाया कि नरेन्द्र मोदी सरकार इन सामाजिक बुराइयों को जड़ से समाप्त करने के लिए सक्रियतापूर्वक कई कार्य कर रही है। हाल ही में वेतन भुगतान अधिनियम में संशोधन किया गया है, जिससे चेक द्वारा या बैंक खाते में सीधे वेतन ड़ालने के जरिये भुगतान सुनिश्चित किया जाता है। श्रमिकों के लिए तय किये गये वेतन का पूरा भुगतान सुनिश्चित करना इसका प्रत्यक्ष कारण बताया गया है।                                                    -
  • संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि देशों में और राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण और समृद्ध सह अस्तित्व के लिए सामाजिक न्याय निहित सिद्धांत है। ‘लैंगिक समानता या स्वदेशी लोगों और प्रवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देते समय हम सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर कायम रहते हैं। लिंग, आयु, जाति, नस्ल, धर्म, संस्कृति या विकलांगता के कारण लोगों द्वारा झेली जा रही असमानता की बाधा को दूर कर हम सामाजिक न्याय की ओर बढ़ सकते हैं।                                    
  •  नये अर्थशास्त्र की मान्यता है कि अर्थव्यवस्था समाज और संस्कृति में घुली-मिली होती है जो पारिस्थितिकी, जीवन रक्षक प्रणाली से जुड़ी होती है और इस अपरिमित ग्रह पर अर्थव्यवस्था हमेशा बढ़ नहीं सकती है।        

 *Social Justice in India*  :---         

  • भारतीय समाज वर्षों से समानता और न्याय सुनिश्चित करने के प्रयास कर रहा है। देश के इतिहास में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में सबसे समर्पित कुछ लोगों में चैतन्य महाप्रभु, स्वामी रविदास, स्वामी विवेकानन्द, एम जी रानाडे, वीर सावरकर, के एम मुंशी, महात्मा गांधी, बाबा साहेब अम्बेडकर, ताराबाई शिंदे, बहरामजी मलाबारी शामिल हैं। इन समाज सुधारकों के दृढ़ निश्चय और साहस के साथ ही लोगों के प्रबल समर्थन से उन्हें अन्याय के खिलाफ मजबूत कार्रवाई करने का बल मिला।                 
  • भारत सरकार सतत विकास, उचित काम और स्वच्छ नौकरी से संबंधित केवल परिवर्तन के लिए नीतिगत ढांचे को आगे बढ़ाने के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के 2013 के संकल्प के अनुरूप कार्य कर रही है। आईएलओ के अनुसार महत्वपूर्ण नीतिगत क्षेत्र मेक्रो इक्नॉमिक्स और प्रगति नीतियां, औद्योगिक तथा क्षेत्रीय नीतियां, उद्यम नीतियां, कौशल विकास, व्यवसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, श्रम बाजार नीतियां, अधिकार, सामाजिक संवाद और त्रिपक्षीय नीतियां हैं।
  • देश के संविधान में सामाजिक न्याय शब्द का उपयोग व्यापक अर्थों में किया गया है जिसमें सामाजिक और आर्थिक न्याय दोनों ही शामिल हैं। जैसा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी बी गजेन्द्रगड़कर ने कहा ‘इस मायने में सामाजिक न्याय का उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के मामले में प्रत्येक नागरिक को समान अवसर उपलब्ध कराना और असमानता रोकना है।‘       

  *Government efforts for social justice*    :-----                              

  1. 67वीं संयुक्त राष्ट्र आम सभा की तीसरी समिति की बैठक में संसदीय कार्य मंत्री श्री अनन्त कुमार ने दोबारा कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों का पूरा समर्थन करेगा। वह विशेष रूप से ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ का समर्थन करेगा, जिसने अपने गठन के दो वर्ष के भीतर ही महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं।      
  2. भारत सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के सभी प्रयासों में भी उनकी सहायता करेगा। गौरतलब है कि ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ लैंगिक समानता, विकास तथा मानक कायम करने के लिए काम करने तथा ऐसा माहौल तैयार करने में विश्व चैंपियन है जहां प्रत्येक महिला और लड़की अपने मानवाधिकार का प्रयोग कर सकती है और अपनी पूरी क्षमता से जी सकती है।
  3. सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने के उपाय के तौर पर भारत ने घरेलू हिंसा से महिला की सुरक्षा अधिनियम लागू किया है। जिसमें कहा गया है कि शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सहित कई रूपों में हिंसा हो सकती है। इस अधिनियम में महिलाओं को परिवार के भीतर-वैवाहिक और पारिवारिक दुर्व्यवहार जैसी हिंसा के खिलाफ लड़ाई लड़ने के वैधानिक प्रावधान है। कानून के अंतर्गत आश्रय, चिकित्सीय सहायता, रखरखाव के आदेश और बच्चों का अस्थायी संरक्षण के रूप में घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं की सहायता की जाती है।
  4.  काम का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा सबसे बड़ा कार्यक्रम है। कंपनी अधिनियम में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी लाभ साझा करने में नया पहलू है।
  5. केंद्र सरकार के आम बजट में सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय को किए गए वर्ष 2016-17 के लिए बजटीय आवंटन में से लगभग 54 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) के लगभग 60 लाख लोगों और 53 लाख अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की छात्रवृत्ति पर खर्च किया गया। ‘मंत्रालय का बजट 2014-15 के 54.52 करोड़ रूपये से लगातार बढ़ते हुए 2017-18 में 69.08 करोड़ रूपये हो गया है।
  6. ‘अत्याचार’ की परिभाषा को और व्यापक किया गया है तथा  अनुसूचित जाति की सुरक्षा के लिए जून 2016 में संशोधन किये गए हैं।

संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक मामला विभाग का कहना है कि वैश्विक प्रयासों के बावजूद अमीरों का अमीर होना और गरीबों का गरीब बने रहना एक सच्चाई है। इसके अलावा अत्यधिक कम आय पाने वाले अति या पूर्ण गरीब व्यापक पैमाने पर हैं।अब समय आ गया है कि अवसरों के परिणामों पर चर्चा करने से आगे विकास की दिशा में बढा़ जाये और अवसरों के स्वतंत्र वातावरण की रूपरेखा तथा सुसंगत पुनर्वितरण नीतियां सुनिश्चित की जाये, ताकि वैश्विक समाज न्याय संगत बन सके।

साभार : विशनाराम माली

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