भारत और पानी की समस्या

यदि पौधों को बेहतर ढंग से पानी दिया नहीं जाता है तो बेहतर बीज एवं उर्वरक भी अपनी पूरी क्षमता दिखाने में असफल होते हैं। जल के असंतुलित उपयोग से इस महत्वपूर्ण संसाधन की बर्बादी नहीं होनी चाहिए अतः इसका समूचित उपयोग कर पर्यावरण को अनुकूल बनाना चाहिए।    

विभिन्न क्षेत्रों में पानी का उपयोग भारत में                    

भारत में कृषि में लगभग 86%, उद्योग के लिए 6% व घरेलू उपयोग के लिए 8% जल का उपयोग किया जाता है।

पानी की पर्याप्त उपलब्धता फिर भी कमी

  • विश्व में सर्वाधिक सिंचित क्षेत्रफल होने के बावजूद भारत को पानी की कमी का सामना कर रहा है।
  • भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में तेजी से गिरावट आ रही है।
  • वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 5,177 क्यूबिक मीटर थी जो 2025 व 2050 में क्रमश: घटकर 1341 व 1140 क्यूबिक मीटर हो जाएंगी जिससे हमारा देश जल अल्पता के श्रेणी में आ जाएगा।                                     

जल की समस्याए भारत में

  • वर्तमान में भारत और अन्य देश जल प्रबंधन से संबंधित समस्याओं का सामना कर रहा है । इनमें भूमिगत जल संसाधन का अत्यधिक दोहन; उचित फसल चक्र की कमी; कमजोर जल उपयोग दक्षता (डब्लयूई); किसानों में जागरूकता की कमी; जल का अनुचित पुन:चक्रण कर उसका पुन: उपयोग व उद्योगों से जुड़ी समस्याएं शामिल हैं।                           -

 भारत सरकार द्वारा कुशल जल प्रबंधन के लिए अपनाई गई कार्यनीतियां/schemes* :-

 (क) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) :- स्त्रोत सृजन, वितरण, प्रबंधन, फील्ड उपयोग व विस्तार कार्यकलापों के लिए समग्र समाधान के साथ-साथ संकेंद्रित ढ़ंग से सिंचाई कवरेज-‘ हर खेत को पानी’ (अर्थात् प्रत्येक खेत को पानी) को बढ़ाने तथा जल उपयोग कुशलता बढाने से 1 जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना लागू की गई। इस स्कीम से प्रत्येक खेत में जल पहुंचाने व जल का कुशल उपयोग सुनिश्चित होना प्रत्याशित है, जिससे कृषि उत्पादन व उत्पादकता में वृद्धि होगी।                                    

(ख) राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन: - इसका लक्ष्य स्थान विशिष्ट समेकित/मिक्षित कृषि पद्धतियों; मृदा व नमी सरंक्षण उपायों; व्यापक मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन; कुशल जल प्रबंधन पद्धतियों को बढ़ावा देकर व वर्षांसिचित प्रौद्योगिकियों को मुख्य धारा में लाकर कृषि का अधिक उत्पादक, सतत व लाभप्रद तथा जलवायु अनुकूल बनाना है।                                

(ग) राष्ट्रीय जल मिशन योजना:- का लक्ष्य "जल संरक्षण करना तथा इसकी बर्बादी को न्यूनतम स्तर पर लाने के लिए समेकित जल संसाधन विकास व प्रबंधन के जरिए राज्यों के बाहर व अंदर दोनों स्थानों पर अधिक समान वितरण सुनिश्चित करना” है।                              

और क्या कदम आवश्यक

 (क) सिंचाई में अधिक दक्षता लाने पर जोर दिया जाना चाहिए । इसे जल पहुंचाने, पानी की बर्बादी रोकने के लिए सिंचाई पद्धति में उचित डिजाइन बनाकर प्राप्त किया जा सकता है। स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई पद्धति के उपयोग कर जल बचत पद्धियों को अपनाने से न केवल जल सरक्षण में प्रभावी वृद्दि हुई है बल्कि पादप जो कि इसे ग्रहण करता है, को निंयत्रित तरीके से जल प्रदान करके बेहतर गुणवत्ता उत्पाद के साथ अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।

(ख) जल के विविध एवं पुनः उपयोग दृष्टिकोण से अधिक विविधिकृत आजीविका रणनीति बनाने और परिस्थितिक तंत्र में सुधार करके अधिक लाभ, प्राप्त किया जा सकता है तथा पर्यावरण संवेदनशीलता को कम भी कम किया जा सकता है।

(ग) सतत क्षेत्रों में पनधारा विकास और वर्षा जल संचयन हेतु सूक्ष्म जल संरचना के विकास के माध्यम से जल संसाधन संचयन पर जोर दिया जाना चाहिए।

(घ) कम जल वाले क्षेत्रों में, विशिष्ट समाधान खोजे जाने चाहिए जहां सामान्य उपाय ज्यादा प्रभावी नहीं है वहां उसे अपनाया जाना चाहिए। नदियों अथवा जल संसाधनों के माध्यम से जल के बारहमासी स्रोतों के साथ कम जल वाले क्षेत्रों को जोड़ना एक विकल्प है।

(ड) मोटे अनाज विशिष्टत: कदन्न की खेती जो पोषक अनाज के रूप में जाना जाता है एवं इसमें कम जल की आवश्यकता होती है तथा यह जलवायु सहिष्णु भी होता है, को विश्वभर में सुरक्षित एवं पौषक भोजन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

साभार : विसनाराम माली 

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