- भारत में कृषि वैज्ञानिक पद्धतियों, मूल्यों, उर्वरकों और कीटनाशकों के इस्तेमाल की जानकारी तथा मौसम और कीटों से संबंधित संदेश सम्प्रेषित में आईसीटी एक कारगर और सशक्त माध्यम सिद्ध हुआ है।
- कृषि क्षेत्र में संचार प्रक्रिया के लिए एक समन्वित दृष्टिकोण विकसित करने हेतु कई नए उपाए शुरू किए गए हैं। इनमें कृषि वेब पोर्टल, मोबाइल एप्स और एक प्रतिबद्ध टीवी प्रसारण चैनल की शुरुआत शामिल है।
- देश में कृषि विपणन प्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-एनएएम) पोर्टल शुरू किया गया है, जो अखिल भारतीय इलेक्ट्रोनिक व्यापार की सुविधाएं प्रदान करता है। यह ई-मार्केटिंग प्लेटफार्म किसानों को एक सक्षम, पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक विपणन मंच के जरिए उपज के बेहतर दामों का पता लगाने; कृषि जिंसों के बेहतर विपणन; और बाजार से संबंधित जानकारी हासिल करने में मदद करेगा और पारदर्शी नीलामी प्रक्रियाओं के जरिए राज्य के भीतर और उससे बाहर बड़ी संख्या में खरीददारों तक किसानों की पहुंच कायम करने में सहायक होगा
- देश में सक्षम सिंचाई पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए 2015 में सरकार द्वारा एक प्रमुख सिंचाई कार्यक्रम शुरू किया गया जिसमें जल संरक्षण/वर्षा जल संग्रह और लघु सिंचाई के उपयोग के जरिए पानी के किफायती इस्तेमाल में सुधार लाने पर विशेष बल दिया गया। इस कार्यक्रम का लक्ष्य समूची सिंचाई
- आपूर्ति श्रृंखला अर्थात् जल स्रोतों, वितरण नेटवर्क और खेत स्तरीय अनुप्रयोगों तथा नई प्रौद्योगिकियों और सूचना संबंधी सेवाओं के विस्तार के लिए सभी मुद्दों का प्रारंभ से अंत तक समाधान करना है। यह कार्यक्रम एक अभियान की तरह लागू किया जा रहा है, जिसमें दिसम्बर, 2019 तक चरणबद्ध तरीके से 99 बड़ी और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करके 76.03 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता का विस्तार किया जाना है।
- सहयोगात्मक और समन्वित नीतियों के जरिए नवीन समाधानों की आवश्यक: स्थाई वैश्विक खाद्य सुरक्षा का लक्ष्य हासिल करने में जी-20 अर्थव्यवस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है और इस बात पर आम सहमति बढ़ रही है कि खाद्य और पोषण सुरक्षा बनाए रखने के लिए सदस्य देशों और गैर-सदस्य देशों के बीच सहयोगात्मक और समन्वित नीतियों के जरिए नवीन समाधानों की आवश्यकता है।
- विश्व अर्थव्यवस्था ने वैश्विक खाद्य उत्पादन बढ़ाने में व्यापक तरक्की की है, लेकिन जलवायु संबंधी जटिलताओं में वृद्धि, प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव, मृदा स्वास्थ्य विकृत होने और जोत क्षेत्रों के विखंडन जैसी नई चुनौतियां इस बढ़ोतरी को बनाए रखने के प्रति गंभीर जोखिम उत्पन्न कर रही हैं। विकासशील और अर्द्ध विकसित अर्थव्यवस्थाओं को, विशेष रूप से जिन अन्य प्रमुख मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है, उनमें विपणन ढांचे का अभाव, अनाज की हानि और बरबादी, बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा कृषि ऋण कवरेज में कमी, और बार बार होने वाले जलवायु परिवर्तनों से किसानों की उपज का बीमा जैसी समस्याएं शामिल है।