The Big Picture Cash crisis: What are the challenges in moving towards a largely cashless economy?

DEBATE SUMMERY:

सन्दर्भ :

RBI 26(2) की धारा में नोटों को अमान्य करने का प्रावधान है। सरकार ने अधिसूचना के ज़रिए पहली बार विमुद्रीकरण का फैसला लिया है। नोटबंदी के फैसले के बाद कैश की अचानक कमी से लोग जूझ रहे हैं, जिसकी मुख्य वजह 100 रुपए के नोटों की बैंक में उपलब्धता की कमी और 2000 के नए नोटों का एटीएम में उपलब्धता की कमी है।

Why cashless : वहीं कैशलेस इकोनॉमी को लेकर लोगों में अभी आदत नहीं है। कई लोग अभी भी बैंकिंग प्रणाली, ऑनलाइन शॉपिंग पर विश्वास नहीं करते है। वो कैश के ज़रिए लेन-देन की प्रक्रिया अपनाते हैं। उन्हें कैशलेस बिजनेस और ऑनलाइन शॉपिंग, ई कामर्स के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है।

नोट बंद होने से 86 फीसदी करेंसी बाजार से खत्म हो गई है, जिसकी भरपाई होने में कितना वक्त लगेगा, इसे लेकर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है-
कुछ का कहना है कि इसमें 7-8 महीने या 1 साल लग सकते हैं।

वहीं कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक नए नोटों की छपाई में वक्त लग सकता है। देश में नोटों की छपाई के लिए 4 प्रिटिंग प्रेस है। ऐसे में नए नोटों की छपाई का काम पूरा होने में मई तक का वक्त लग सकता है

3 शिफ्ट में प्रिटिंग प्रेस के काम करने पर भी 108 दिन लग सकते हैं। क्योंकी 23 बिलियन वैल्यू के नोट रिप्लेस करना है। ऐसे में 2 महीने से ज्यादा का वक्त लग सकता है, क्योंकी 1 महीने पहले काम शुरु हुआ है ऐसे में 2 महीने की कठिनाई है।

देश में 200000 एटीएम और 80000 ब्रांच है। ऐसे में नए नोटों की साइज के हिसाब से एटीएम रिकैलिब्रेट की जरूरत होगी, जिसमें भी कुछ वक्त लग सकता है।

हालांकि कुछ विशेषज्ञों की माने तो ये प्रिटिंग के बजाए लाजिस्टिक समस्या है। एटीएम रिकैलिब्रेटेशन में जितना वक्त लगेगा, उतने ही वक्त में कैश क्रंच की स्थिति खत्म हो जाएगी। कुछ लोगों की ओर से स्थिति को पैनिक बनाने की कोशिश हो रही है।

हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इस बारे में सरकार को सही अनुमानित वक्त की जानकारी देनी चाहिए और टाइमलाइन तय किए जाने की जरूरत है। हालांकि पीएम ने देश से 50 दिन का वक्त मांगा है।

वहीं इस फैसले के बाद व्यापार पर असर हो रहा है। मांग कम होने से उत्पादन पर असर पड़ रहा है। जिस वजह से अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।

इस फैसले के ज़रिए सिर्फ कैश के रुप में जमा किए गए काले धन पर लगाम लगाई जा सकती है। जो जीडीपी का 2 फीसदी है, लगभग 3.5 लाख करोड़। जबकि कुल काला धन जीडीपी का 20 फीसदी यानी लगभग 14 लाख करोड़ बताया जा रहा है। 

इस फैसले से काले धन के बहाव पर असर नहीं पड़ेगा। आने वाले दिनों में काले धन के बहाव पर लगाम लगाने की जरूरत है। ज्वेलरी, रियल एस्टेट के ज़रिए काले धन का बहाव होता है। 

वहीं चुनाव सुधार के ज़रिए काले धन के बहाव को रोको जा सकता है। क्योंकी राजनीतिक दलों को चंदा कैश में ही डोनेट किया जाता है। जो काले धन के रुप में होता है। चंदा डोनेट करने वाले की जानकारी सार्वजनिक फिलहाल नहीं की जा सकती है। ऐसे में इसे चुनाव सुधार के तहत इसे सार्वजनिक करने की जरूरत है। वहीं एक साथ चुनाव कराने पर चर्चा हो रही है। जिससे राजनीति में काले धन के बहाव पर रोक लग सकेगी।
हालांकि सरकार ने आने वाले दिनों में और भी कदम उठाने के संकेत  दिए हैं।

हालांकि हर नागरिक की जिंदगी को प्रभावित करने वाले इस फैसले के असर को लेकर अभी थोड़ा इंतजार करना होगा।

साभार : सुमित कुमार झा  

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