न्याय की अवधारणा की बाबत अकसर कहा जाता है कि विलंबित न्याय दरअसल न्याय से इनकार ही है।
- मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर ने न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की अपील की। वर्तमान में देश भर की अदालतों में लगभग सवा तीन करोड़ मुकदमे लंबित हैं।
- न्याय की अवधारणा की बाबत अकसर कहा जाता है कि विलंबित न्याय दरअसल न्याय से इनकार ही है, फिर इन सवा तीन करोड़ मुकदमों की बाबत क्या कहा जाये? ऐसा भी नहीं है कि देश की अदालतों में बढ़ते लंबित मुकदमों की संख्या पर पहले चर्चा नहीं हुई।
किसी न किसी संदर्भ में इन लंबित मुकदमों और भारतीय न्याय प्रक्रिया की रफ्तार पर चिंता समय-समय पर जतायी जाती रही है, लेकिन स्थिति से निपटने के लिए शायद ही कभी कोई ठोस कदम उठाये गये हों।
- ऐसा लग सकता है कि न्याय प्रक्रिया की सुस्त रफ्तार के चलते ही लंबित मुकदमों की संख्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती जा रही है, लेकिन जब अदालतों में स्वीकृत संख्या में जज ही नहीं होंगे तो मुकदमों का निपटारा होगा कैसे?
- देश भर की अदालतों में जजों के खाली पदों की संख्या से कई असहज सवाल उठते हैं। निचली अदालतों में साढ़े चार हजार से भी ज्यादा जजों के पद रिक्त हैं तो उच्च न्यायालयों में यह आंकड़ा 462 का है। इस समस्या से अछूता सर्वोच्च न्यायालय भी नहीं है, जहां छह पद रिक्त हैं।
- बेशक उच्च न्यायपालिका में नियुक्ति की धीमी रफ्तार के लिए नियुक्ति प्रक्रिया पर न्यायपालिका और केंद्र सरकार में मतभेद एक बड़ा कारण हो सकते हैं।
- कॉलेजियम द्वारा की जा रही इन नियुक्तियों की कमान अपने हाथ में लेने के लिए केंद्र सरकार ने जो कानून बनाया था, उसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के लिए भेजे गये 170 नाम केंद्र सरकार दबाये बैठी है। निश्चय ही वर्चस्व के इस संघर्ष का भी समाधान निकलना ही चाहिए, लेकिन निचली अदालतों में बड़ी संख्या में रिक्तियों की बाबत क्या बहाना बनाया जा सकता है।
★1987 में विधि आयोग ने 10 लाख की आबादी पर 50 जजों की जरूरत बताते हुए 40 हजार जजों की नियुक्तियां करने को कहा था, लेकिन आज तक उस दिशा में कुछ नहीं किया गया।
★ इस बीच आबादी अवश्य 30 करोड़ बढ़ गयी।
* मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिये गये इस आंकड़े से कि एक जज साल में 2600 केस निपटाता है, भारतीय न्याय प्रक्रिया की सुस्त छवि सुधर सकती है, लेकिन जरूरत त्वरित और बेहतर न्याय