उच्चतम न्यायालय ने आज राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि प्राथमिकी दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर उन्हें अपनी-अपनी वेबसाइटों पर उन्हें डालें। यह फैसला देशभर में पुलिस की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता ला सकता है।
★बहरहाल, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति सी. नागप्पन की पीठ ने देशभर में पुलिस को ऐसे मामलों में प्राथमिकियों को वेबसाइट पर डालने से छूट दी जिनमें अपराध संवेदनशील प्रकृति के हैं और आतंकवाद, उग्रवाद और पॉक्सो कानून आदि के तहत दर्ज हैं।
★ फैसले में कहा गया कि दर्ज प्राथमिकी को वेबसाइट पर डालने से आरोपी या मामले से जुड़ा कोई व्यक्ति प्राथमिकी को डाउनलोड कर सकता है और शिकायत के निवारण के लिए कानून के मुताबिक अदालत में उचित आवेदन दाखिल कर सकता है।
★पीठ ने कहा कि आरोपी को शुरूआती स्तर पर ही प्राथमिकी की प्रति मिलने का अधिकार है। पीठ ने कहा, ‘यहां यह स्पष्ट समझा जा सकता है कि अगर किसी मामले में भौगोलिक स्थिति की वजह से कनेक्टिविटी की समस्या है या कोई दूसरी नहीं टाली जा सकने वाली कठिनाई है तो समय बढ़ाकर 48 घंटे तक किया जा सकता है।’
★इसमें कहा गया, ‘48 घंटे को बढ़ाकर अधिकतम 72 घंटे किया जा सकता है और यह केवल भौगोलिक स्थिति की वजह से कनेक्टिविटी की समस्या से संबंधित है।’ न्यायालय ने यह निर्देश यूथ लॉयर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की जनहित याचिका पर दिया। जनहित याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक फैसले का जिक्र किया गया है जिसमें दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज होने के 24 घंटे के अंदर उसे अपनी वेबसाइट पर लगाने का निर्देश दिया गया था।
★संगठन ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को पूरे देश में लागू करने की मांग की थी जिसे शीर्ष अदालत ने कुछ बदलावों के साथ मंजूर कर लिया। शीर्ष अदालत ने केंद्र की ओर से पक्ष रख रहे अतिरिक्त सालिसिटर जनरल तुषार मेहता की इस आशंका पर विचार किया कि आरोपी पुलिस के साथ सांठगांठ कर सकता है और सुनिश्चित कर सकता है कि प्राथमिकी अपलोड नहीं की जाए।
★वेबसाइटों पर प्राथमिकियों को अपलोड करने का समय बढ़ाने की अनुमति तब दी गयी जब मिजोरम और सिक्किम जैसे राज्यों के वकीलों ने कहा कि दुर्गम भूभाग और खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी की वजह से 24 घंटे के अंदर इसे वेबसाइट पर डालना मुश्किल होगा।
★दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा 2010 में पारित लगभग सभी निर्देशों से सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘यदि किसी आरोपी के पास यह संदेह करने की वजह है कि उसका नाम किसी आपराधिक मामले में दर्ज हुआ है और प्राथमिकी में उसका नाम हो सकता है तो वह अपने प्रतिनिधि-एजेंट के माध्यम से संबंधित पुलिस अधिकारी या पुलिस अधीक्षक के सामने सत्यापित प्रति के लिए आवेदन कर सकता है। वह अदालत से इस तरह की प्रति हासिल करने के लिए देय शुल्क का भुगतान करके प्रति प्राप्त कर सकता है। इस तरह का आवेदन करने के 24 घंटे के अदंर प्रति दी जाएगी।’
★पीठ ने यह भी कहा कि प्राथमिकी को वेबसाइट पर अपलोड नहीं करने का फैसला पुलिस उपाधीक्षक या इसके समकक्ष पद पर बैठे अधिकारी से कम दर्जे का अधिकारी नहीं करेगा।